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हो करम सरकार अब तो हो गए ग़म बे-शुमार / Ho Karam Sarkar Ab To Ho Gaye Gham Beshumar

हो करम, सरकार ! अब तो हो गए ग़म बेशुमार जान-ओ-दिल तुम पर फ़िदा, ऐ दो जहाँ के ताजदार ! मैं अकेला और मसाइल ज़िंदगी के बेशुमार आप ही कुछ कीजिए ना, ऐ शह-ए-'आली-वक़ार ! याद आता है तवाफ़-ए-ख़ाना-ए-का'बा मुझे और लिपटना मुल्तज़म से वालिहाना बार-बार संग-ए-अस्वद चूम कर मिलता मुझे कैफ़-ओ-सुरूर चैन पाता देख कर दिल मुस्तजाब-ओ-मुस्तजार या ख़ुदा ! दिखला हतीम-ए-पाक-ओ-मीज़ाब-ओ-मक़ाम और सफ़ा-मरवा मुझे बहर-ए-रसूल-ए-ज़ी-वक़ार जा रहा है क़ाफ़िला तयबा नगर रोता हुआ मैं रहा जाता हूँ तन्हा, ऐ हबीब-ए-किर्दगार ! जल्द फिर तुम लो बुला और सब्ज़-गुंबद दो दिखा हाज़िरी की आरज़ू ने कर दिया फिर बे-क़रार चूम कर ख़ाक-ए-मदीना झूमता फिरता था मैं याद आते हैं मदीने के मुझे लैल-ओ-नहार गुंबद-ए-ख़ज़रा के जल्वे और वो इफ़्तारियाँ याद आती है बहुत रमज़ान-ए-तयबा की बहार या रसूलल्लाह ! सुन लीजे मेरी फ़रियाद को कौन है जो कि सुने तेरे सिवा मेरी पुकार हाल पर मेरे करम की इक नज़र फ़रमाइए दिल मेरा ग़मगीन है, ऐ ग़म-ज़दों के ग़म-गुसार ! क़ाफ़िले वालो ! सुनो, याद आए तो मेरा सलाम 'अर्ज़ करना रोते रोते हो सके तो बार-बार ग़म-ज़दा यूँ ना हुआ होता

काश इक बार दयार-ए-शह-ए-बतहा देखूँ / Kash Ik Baar Dayar-e-Shah-e-Bat.ha Dekhun

काश ! इक बार दयार-ए-शह-ए-बतहा देखूँ रौज़ा-ए-शाह-ए-उमम, गुंबद-ए-ख़ज़रा देखूँ काश ! इक बार दयार-ए-शह-ए-बतहा देखूँ अपनी ग़ुर्बत पे बहुत आता है रोना उस दम जब किसी शख़्स को जाते हुए तयबा देखूँ काश ! इक बार दयार-ए-शह-ए-बतहा देखूँ उन के दर की जो ग़ुलामी का शरफ़ मिल जाए फिर पलट कर न कभी घर का मैं रस्ता देखूँ काश ! इक बार दयार-ए-शह-ए-बतहा देखूँ किस लिए, ऐ दिल ! तुझे फ़िक्र-ए-ग़म-ओ-आलाम है चल मदीना चल वहाँ आराम ही आराम है जो निगाहों की है ठंडक और मेरे दिल का क़रार वो मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्ले-'अला का नाम है ढूँडने वाला कमी प्यारे नबी की ज़ात में कल भी था हारा हुआ और आज भी नाकाम है देख कर शहर-ए-नबी जन्नत की याद आने लगी कितनी प्यारी सुब्ह इस की, क्या मुनव्वर शाम है काश ! इक बार दयार-ए-शह-ए-बतहा देखूँ मेरे मौला ! मेरी नज़रों की हिफ़ाज़त फ़रमा अब किसी तौर बुराई का न चेहरा देखूँ काश ! इक बार दयार-ए-शह-ए-बतहा देखूँ अब तो दे दे मुझे तौफ़ीक़-ए-ज़ियारत, या रब ! कब तलक चश्म-ए-तसव्वुर से मदीना देखूँ काश ! इक बार दयार-ए-शह-ए-बतहा देखूँ अपनी नापाक निगाहों से, ऐ ताबिश ! आख़िर कैसे सरकार का पाकीज़ा मैं

मेरी धड़कन में या नबी | मेरी साँसों में या नबी / Meri Dhadkan Mein Ya Nabi | Meri Sanson Mein Ya Nabi

मेरी धड़कन में या नबी मेरी साँसों में या नबी या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! कोई गुफ़्तुगू हो लब पर तेरा नाम आ गया है तेरा ज़िक्र करते करते ये मक़ाम आ गया है मेरी धड़कन में या नबी मेरी साँसों में या नबी या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! दर-ए-मुस्तफ़ा का मंज़र, मेरी चश्म-ए-तर के अंदर कभी सुब्ह आ गया है, कभी शाम आ गया है मेरी धड़कन में या नबी मेरी साँसों में या नबी या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! ये तलब थी अंबिया की रुख़-ए-मुस्तफ़ा को देखें ये नमाज़ का वसीला उन्हें काम आ गया है मेरी धड़कन में या नबी मेरी साँसों में या नबी या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! जो सख़ी हैं दुनिया भर के, वो गदा हैं उन के दर के कि करम का उन के हाथों में निज़ाम आ गया है मेरी धड़कन में या नबी मेरी साँसों में या नबी या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! या नबी ! बलग़ल-'उला बि-कमालिहि कशफ़-द्दुजा बि-जमालिहि हसुनत जमी'उ ख़िसालिहि सल्लू 'अलैहि व आलिहि जिसे पी के शैख़ सा'दी बलग़ल-'उला पुकारे मेरे

कोई गुफ़्तुगू हो लब पर तेरा नाम आ गया है / Koi Guftugu Ho Lab Par Tera Naam Aa Gaya Hai

कोई गुफ़्तुगू हो लब पर तेरा नाम आ गया है तेरी मदह करते करते ये मक़ाम आ गया है कोई गुफ़्तुगू हो लब पर तेरा नाम आ गया है तेरा ज़िक्र करते करते ये मक़ाम आ गया है दर-ए-मुस्तफ़ा का मंज़र, मेरी चश्म-ए-तर के अंदर कभी सुब्ह आ गया है, कभी शाम आ गया है ये तलब थी अंबिया की रुख़-ए-मुस्तफ़ा को देखें ये नमाज़ का वसीला उन्हें काम आ गया है जो सख़ी हैं दुनिया भर के, वो गदा हैं उन के दर के कि करम का उन के हाथों में निज़ाम आ गया है दो जहाँ की ने'मतों से तेरे दर पे जो भी माँगा मेरे दामन-ए-तलब में वो तमाम आ गया है जिसे पी के शैख़ सा'दी बलग़ल-'उला पुकारे मेरे दस्त-ए-ना-तवाँ में वही जाम आ गया है वो, अदीब ! जिस ने महशर में बपा किया है महशर वो कहेंगे आओ देखो वो ग़ुलाम आ गया है शायर: अदीब रायपुरी ना'त-ख़्वाँ: क़ारी वहीद ज़फ़र क़ासमी ओवैस रज़ा क़ादरी ज़ुल्फ़िक़ार अली हुसैनी koi guftugu ho lab par tera naam aa gaya hai teri mad.h karte karte ye maqaam aa gaya hai koi guftugu ho lab par tera naam aa gaya hai tera zikr karte karte ye maqaam aa gaya hai dar-e-mustafa ka manzar, meri

या इलाही रहम फ़रमा मुस्तफ़ा के वासिते | शजरा-ए-क़ादिरिय्या / Ya Ilahi Rahm Farma Mustafa Ke Waste | Shajra e Qadria

या इलाही ! रहम फ़रमा मुस्तफ़ा के वासिते या रसूलुल्लाह ! करम कीजे ख़ुदा के वासिते मुश्किलें हल कर शह-ए-मुश्किल कुशा के वासिते कर बलाएँ रद शहीद-ए-कर्बला के वासिते सय्यिद-ए-सज्जाद के सदक़े में साजिद रख मुझे 'इल्म-ए-हक़ दे बाक़िर-ए-'इल्म-ए-हुदा के वासिते सिदक़-ए-सादिक़ का तसद्दुक़ सादिक़-उल-इस्लाम कर बे-ग़ज़ब राज़ी हो काज़िम और रज़ा के वासिते बहर-ए-मा'रूफ़-ओ-सरी मा'रूफ़ दे बे-ख़ुद-सरी जुन्द-ए-हक़ में गिन जुनैद-ए-बा-सफ़ा के वासिते बहर-ए-शिब्ली शेर-ए-हक़ दुनिया के कुत्तों से बचा एक का रख 'अब्द-ए-वाहिद बे-रिया के वासिते बुल-फ़रह का सदक़ा कर ग़म को फ़रह दे हुस्न-ओ-सा'द बुल-हसन और बू-स'ईद-ए-सा'द-ए-जाँ के वासिते क़ादिरी कर, क़ादिरी रख, क़ादिरिय्यों में उठा क़दर-ए-'अब्दुल-क़ादिर-ए-क़ुदरत-नुमा के वासिते अहसनल्लाहु लहुम रिज़्क़न से दे रिज़्क़-ए-हसन बंदा-ए-रज़्ज़ाक़ ताज-उल-अस्फ़िया के वासिते नस्र अबी-सालेह का सदक़ा सालेह-ओ-मंसूर रख दे हयात-ए-दीं मुहिय्य-ए-जाँ-फ़िज़ा के वासिते तूर-ए-'इरफ़ान-ओ-'उलुव्व-ओ-हम्द-ओ-हुस्ना-ओ-बहा दे 'अली, मूसा, हसन, अहमद, बहा के वासि

जा कर कोई तयबा में ये आक़ा को बताए / Ja Kar Koi Taiba Mein Ye Aaqa Ko Bataye

जा कर कोई तयबा में ये आक़ा को बताए गुज़रे हुए लम्हों की बहुत याद सताए मत छेड़, सबा ! मुझ को अभी ज़ख़्म हरे हैं ऐसा न हो फिर आँख से आँसू निकल आए दुनिया में फ़क़त आप की हस्ती है वो हस्ती जिस से कि उजाला ही उजाला नज़र आए फिर माँ सी मुझे गोद की ठंडक हुई हासिल है याद मुझे,गुंबद-ए-ख़ज़रा ! तेरे साए मुजरिम हूँ, चला आया हूँ मैं आप के दर पर बिन आप के मुजरिम को भला कौन बचाए जब से सू-ए-बतहा का ये शैदाई हुआ है तब से दिल-ए-बेताब कहीं चैन न पाए मुझ से कोई ये माल, ये दौलत सभी ले कर लौटा दे वो पल जो थे मदीने में बिताए फिर आए बुलावा मुझे दरबार-ए-नबी से अल्लाह कभी ख़ैर से ये दिन भी दिखाए ईमान किसी शख़्स का कामिल नहीं होता जब तक कि वो सरकार पे ईमान न लाए अहमद रहे ता-'उम्र इसी दर का ही नौकर ऐ काश ! इसी दर पे इसे मौत भी आए शायर: मलिक अदनान अहमद और अन्य ना'त-ख़्वाँ: ख़ालिद हसनैन ख़ालिद सय्यिद हस्सानुल्लाह हुसैनी मुहम्मद उसामा ख़ालिद मुहम्मद हम्ज़ा ख़ालिद jaa kar koi tayba me.n ye aaqa ko bataae guzre hue lamho.n ki bahut yaad sataae mat chhe.D, saba ! mujh ko abhi z

या नबी बस इक इशारा कीजिए / Ya Nabi Bas Ek Ishara Kijiye

या नबी ! बस इक इशारा कीजिए सूरत-ए-मह चाक सीना कीजिए आमद-ए-सरकार की आई घड़ी ने'मत-ए-'उज़मा का चर्चा कीजिए आप पर जन्नत फ़िदा हो जाएगी बस मदीना ही मदीना कीजिए ज़िंदगी का लूटना है गर मज़ा उन पे मरने की तमन्ना कीजिए मेरे रब ने उन को मालिक कर दिया मुस्तफ़ा से आप माँगा कीजिए या रसूलल्लाह ! मदीने में रहूँ ख़्वाब देरीना है पूरा कीजिए सुन्नत-ए-असग़र समझ कर आप भी ज़ख़्म खा कर मुस्कुराया कीजिए कर के सिद्दीक़-ओ-'उमर का तज़्किरा राफ़िज़ियों का सफ़ाया कीजिए बात गर नज्दी से करनी ही पड़े अपने हर जुमले को जूता कीजिए पहले हो शैख़ैन का ज़िक्र-ए-जमील बा'द में ज़िक्र-ए-बलाग़ा कीजिए हम को ले जाएँगे जन्नत बिल-यकीं आ'ला हज़रत पे भरोसा कीजिए जानते हैं मुँह की खाएँगे मियाँ आ'ला हज़रत से न उलझा कीजिए पिलपिलापन छोड़िए अब, शैख़जी ! अज़हरी तेवर में बोला कीजिए सुल्ह-ए-कुल्ली या तो समझे या मरे कुछ मेरे, ताजुश्शरी'आ ! कीजिए ज़िंदगी क्यूँ दी गई मत भूलिए दर्स-ए-अख़्तर याद रक्खा कीजिए आप से कुछ भी नहीं हो पाएगा बे-वज्ह मत आप गर्जा कीजिए मसलक-ए-अहमद रज़ा ख़ाँ ज़िंदाबाद आम हर जानिब ये ना'

हर नज़र काँप उट्ठेगी महशर के दिन | ख़ौफ़ से हर कलेजा दहल जाएगा / Har Nazar Kanp Uthegi Mehshar Ke Din | Khauf Se Har Kaleja Dahal Jayega

हर नज़र काँप उट्ठेगी महशर के दिन, ख़ौफ़ से हर कलेजा दहल जाएगा पर ये नाज़ उन के बंदे का देखेंगे सब, थाम कर उन का दामन मचल जाएगा मौज कतरा के हम से चली जाएगी, रुख़ मुख़ालिफ़ हवा का बदल जाएगा जब इशारा करेंगे वो नाम-ए-ख़ुदा, अपना बेड़ा भँवर से निकल जाएगा यूँ तो जीता हूँ हुक्म-ए-ख़ुदा से मगर, मेरे दिल की है उन को यक़ीनन ख़बर हासिल-ए-ज़िंदगी होगा वो दिन मेरा, उन के क़दमों पे जब दम निकल जाएगा रब्ब-ए-सल्लिम वो फ़रमाने वाले मिले, क्यूँ सताते हैं, ऐ दिल ! तुझे वसवसे पुल से गुज़रेंगे हम वज्द करते हुए, कौन कहता है पाँव फिसल जाएगा अख़्तर -ए-ख़स्ता ! क्यूँ इतना बेचैन है ? तेरा आक़ा शहंशाह-ए-कौनैन है लौ लगा तो सही शाह-ए-लौलाक से, ग़म मसर्रत के साँचे में ढल जाएगा शायर: मुफ़्ती अख़्तर रज़ा ख़ान ना'त-ख़्वाँ: सय्यिद अब्दुल वसी क़ादरी रज़वी ओवैस रज़ा क़ादरी असद इक़बाल कलकत्तवी har nazar kaanp uTThegi mehshar ke din KHauf se har kaleja dahal jaaega par ye naaz un ke bande ka dekhenge sab thaam kar un ka daaman machal jaaega mauj katra ke ham se chali jaaegi ruKH muKHaalif hawa ka badal jaaega

क्या करूँ कि याद आती हैं सुनहरी जालियाँ / Kya Karoon Ke Yaad Aati Hain Sunehri Jaliyan

दूर कब तक रहूँ मदीने से शर्म आती है अब तो जीने से क्या करूँ कि याद आती हैं सुनहरी जालियाँ दिल में इक हलचल मचाती हैं सुनहरी जालियाँ फूटने लगती हैं फिर उम्मीद की किरनें नई ख़्वाब आँखों में जगाती हैं सुनहरी जालियाँ दिल में इक हलचल मचाती हैं सुनहरी जालियाँ ज़िंदगी भर की थकन को दूर कर देती हैं वो प्यार से जब मुस्कुराती हैं सुनहरी जालियाँ दिल में इक हलचल मचाती हैं सुनहरी जालियाँ अपनी पलकों से उन्हें मैं चूमता हूँ देर तक दिल मे जब भी जगमगाती हैं सुनहरी जालियाँ दिल में इक हलचल मचाती हैं सुनहरी जालियाँ पूछने वाले ! मैं लफ़्ज़ों में बयाँ कैसे करूँ ? क्या बताऊँ, क्या दिखाती हैं सुनहरी जालियाँ दिल में इक हलचल मचाती हैं सुनहरी जालियाँ जो यहाँ पहुँचा वो आक़ा की शफ़ा'अत पा गया राह जन्नत की दिखाती हैं सुनहरी जालियाँ दिल में इक हलचल मचाती हैं सुनहरी जालियाँ ना'त-ख़्वाँ: ख़ालिद हसनैन ख़ालिद सय्यिद हस्सानुल्लाह हुसैनी door kab tak rahu.n madine se sharm aati hai ab to jeene se kya karu.n ki yaad aati hai.n sunehri jaaliyaa.n dil me.n ik halchal machaati hai.n suneh

मैं बहक सकूँ ये मजाल क्या मेरा रहनुमा कोई और है / Main Behak Sakoon Ye Majal Kya | Mera Rehnuma Koi Aur Hai

मैं बहक सकूँ ये मजाल क्या, मेरा रहनुमा कोई और है मुझे ख़ूब जान लें मंज़िलें, ये शिकस्ता-पा कोई और है जो तुम्हारी जाली से मुत्तसिल, है सुतूँ के पीछे ख़जिल ख़जिल नहीं मैं नहीं वो मरीज़-ए-दिल, न मेरे सिवा कोई और है मेरी इल्तिजा है ये, दोस्तो ! कभी तुम जो सू-ए-हरम चलो तो बना के सर को क़दम चलो, कि ये रास्ता कोई और है है तुझे ख़बर, शह-ए-'ईन-ओ-आँ ! मेरी वजह-ए-राहत-ए-क़ल्ब-ओ-जाँ न तेरे सिवा कोई और था, न तेरे सिवा कोई और है ये गुमान था कई साल से, ये यक़ीन है कई रोज़ से मेरे दिल से गुंबद-ए-सब्ज़ का, ये मु'आमला कोई और है वो हबीब-ए-रब्ब-ए-करीम हैं, वो रऊफ़ हैं, वो रहीम हैं उन्हें फ़िक्र है मेरी आप की, उन्हें चाहता कोई और हैं मैं जो दूर अर्ज़-ए-हरम से था, हुई ख़ुल्द-ए-गोश हसीं सदा है इसी में माजिद -ए-बे-नवा, कि ये क़ाफ़िला कोई और है ना'त-ख़्वाँ: सय्यिद फ़सीहुद्दीन सोहरवर्दी mai.n bahak saku.n ye majaal kya mera rahnuma koi aur hai mujhe KHoob jaan le.n manzile.n ye shikasta-pa koi aur hai jo tumhaari jaali se muttasil hai sutoo.n ke peechhe KHajil KHajil nahi.n mai.n nah

या नबी नज़र-ए-करम फ़रमाना | ऐ हसनैन के नाना / Ya Nabi Nazr-e-Karam Farmana | Aye Hasnain Ke Nana (Part 1 | Part 2)

या नबी ! नज़र-ए-करम फ़रमाना ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! ज़हरा पाक के सदक़े हम को तयबा में बुलवाना ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! तयबा नगर के चँदा ! मोरी क़िस्मत को चमकाओ कब से नैना तरस रहे हैं, सूरत तो दिखलाओ दोनों जगत के वाली ! मोरी नय्या पार लगाना ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! आप की रहमत का सदक़ा है ये 'इज़्ज़त-अफ़ज़ाई आप से तर्बियत ली हम ने, माँ से दु'आएँ पाई हसन हुसैन का नौकर हम को कहता है ज़माना ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! आप ने जिस को मौला बनाया, वो मेरा मौला हो नस-नस बोले 'अली 'अली कुछ ऐसा जाम 'अता हो देखने वाले मुझ को बोले हैदर का दीवाना ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! वक़्त-ए-नज़ा' है, दीद को, आक़ा ! हैं ये आँखें प्यासी हुस्न-ए-'अमल कुछ पास नहीं है, हूँ मैं अरशद -ए-'आसी बख़्शिश मेरी हो जाए बस एक झलक दिखलाना ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! ऐ हसनैन के नाना ! शायर: अरशद हबीबी न

ऐ सल्ले-अला हुस्न-ए-दिल-आरा-ए-मदीना / Aye Salle Ala Husn-e-Dilara-e-Madina

ऐ सल्ले-'अला हुस्न-ए-दिल-आरा-ए-मदीना क़ुदसी भी दिल-ओ-जाँ से है शैदा-ए-मदीना इस तरह निगाहों में समा जाए मदीना जिस सम्त नज़र उट्ठे नज़र आए मदीना जब सामने आँखों के मेरी आए मदीना आते ही मेरे दिल में उतर जाए मदीना अब मुझ को बुला लीजिए, मौला-ए-मदीना ! रह रह के मचलती है तमन्ना-ए-मदीना फ़िरदौस तेरे रंग ओ तेरी बू पे निछावर ऐ रश्क-ए-चमन लाला-ए-सहरा-ए-मदीना उम्मत को है इक आप की रहमत का सहारा रहमत की नज़र, ऐ शह-ए-वाला-ए-मदीना ! हासिल न मुझे क्यूँ हो, 'अज़ीज़ ! औज-ए-तख़य्युल वल्लाह मेरे सर में है सौदा-ए-मदीना ना'त-ख़्वाँ: ख़ालिद हसनैन ख़ालिद ai salle-'ala husn-e-dil-aara-e-madina qudsi bhi dil-o-jaa.n se hai shaida-e-madina is tarha nigaaho.n me.n sama jaae madina jis samt nazar uTThe nazar aae madina jab saamne aankho.n ke meri aae madina aate hi mere dil me.n utar jaae madina ab mujh ko bula lijiye, maula-e-madina ! reh reh ke machalti hai tamanna-e-madina firdaus tere rang o teri boo pe nichhaawar ai rashk-e-chaman laala-e-sehra-e-madina ummat k

ऐ दीन-ए-हक़ के रहबर तुम पर सलाम हर दम / Aye Deen-e-Haq Ke Rehbar Tum Par Salam Har Dam

ऐ दीन-ए-हक़ के रहबर ! तुम पर सलाम हर दम मेरे शफ़ी'-ए-महशर ! तुम पर सलाम हर दम इस बेकस-ओ-हज़ीं पर जो कुछ गुज़र रही है ज़ाहिर है सब वो तुम पर, तुम पर सलाम हर दम दुनिया-ओ-आख़िरत में जब मैं रहूँ सलामत प्यारे ! पढ़ूँ न क्यूँकर तुम पर सलाम हर दम दिल-तफ़्तग़ान-ए-फ़ुर्क़त प्यासे हैं मुद्दतों से हम को भी जाम-ए-कौसर, तुम पर सलाम हर दम बंदा तुम्हारे दर का आफ़त में मुब्तला है रहम, ऐ हबीब-ए-दावर ! तुम पर सलाम हर दम बे-वारिसों के वारिस ! बे-वालियों के वाली ! तस्कीन-ए-जान-ए-मुज़्तर ! तुम पर सलाम हर दम लिल्लाह अब हमारी फ़रियाद को पहुँचिए बे-हद है हाल अब्तर, तुम पर सलाम हर दम जल्लाद-ए-नफ़्स-ए-बद से दीजे मुझे रिहाई अब है गले पे ख़ंजर, तुम पर सलाम हर दम दरयूज़ा-गर हूँ मैं भी अदना सा इस गली का लुत्फ़-ओ-करम हो मुझ पर, तुम पर सलाम हर दम कोई नहीं है मेरा, मैं किस से दाद चाहूँ ? सुल्तान-ए-बंदा-परवर ! तुम पर सलाम हर दम ग़म की घटाएँ घिर कर आई हैं हर तरफ़ से ऐ मेहर-ए-ज़र्रा-परवर ! तुम पर सलाम हर दम बुलवा के अपने दर पर अब मुझ को दीजे 'इज़्ज़त फिरता हूँ ख़्वार दर दर, तुम पर सलाम हर दम मोहताज से तुम्हारे क