हो करम सरकार अब तो हो गए ग़म बे-शुमार / Ho Karam Sarkar Ab To Ho Gaye Gham Beshumar
हो करम, सरकार ! अब तो हो गए ग़म बेशुमार जान-ओ-दिल तुम पर फ़िदा, ऐ दो जहाँ के ताजदार ! मैं अकेला और मसाइल ज़िंदगी के बेशुमार आप ही कुछ कीजिए ना, ऐ शह-ए-'आली-वक़ार ! याद आता है तवाफ़-ए-ख़ाना-ए-का'बा मुझे और लिपटना मुल्तज़म से वालिहाना बार-बार संग-ए-अस्वद चूम कर मिलता मुझे कैफ़-ओ-सुरूर चैन पाता देख कर दिल मुस्तजाब-ओ-मुस्तजार या ख़ुदा ! दिखला हतीम-ए-पाक-ओ-मीज़ाब-ओ-मक़ाम और सफ़ा-मरवा मुझे बहर-ए-रसूल-ए-ज़ी-वक़ार जा रहा है क़ाफ़िला तयबा नगर रोता हुआ मैं रहा जाता हूँ तन्हा, ऐ हबीब-ए-किर्दगार ! जल्द फिर तुम लो बुला और सब्ज़-गुंबद दो दिखा हाज़िरी की आरज़ू ने कर दिया फिर बे-क़रार चूम कर ख़ाक-ए-मदीना झूमता फिरता था मैं याद आते हैं मदीने के मुझे लैल-ओ-नहार गुंबद-ए-ख़ज़रा के जल्वे और वो इफ़्तारियाँ याद आती है बहुत रमज़ान-ए-तयबा की बहार या रसूलल्लाह ! सुन लीजे मेरी फ़रियाद को कौन है जो कि सुने तेरे सिवा मेरी पुकार हाल पर मेरे करम की इक नज़र फ़रमाइए दिल मेरा ग़मगीन है, ऐ ग़म-ज़दों के ग़म-गुसार ! क़ाफ़िले वालो ! सुनो, याद आए तो मेरा सलाम 'अर्ज़ करना रोते रोते हो सके तो बार-बार ग़म-ज़दा यूँ ना हुआ होता