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कर्बला की ख़ाक पर क्या आदमी सज्दे में है / Karbala Ki Khaak Par Kya Aadmi Sajde Mein Hai

कर्बला की ख़ाक पर क्या आदमी सज्दे में है मौत रुस्वा हो चुकी है, ज़िंदगी सज्दे में है कर्बला की ख़ाक पर क्या आदमी सज्दे में हैं वो जो इक सज्दा 'अली का बच रहा था वक़्त-ए-फ़ज्र फ़ातिमा का लाल शायद अब उसी सज्दे में है कर्बला की ख़ाक पर क्या आदमी सज्दे में हैं वो जो 'आशूरा की शब गुल हो गया था इक चराग़ अब क़यामत तक उसी की रौशनी सज्दे में है कर्बला की ख़ाक पर क्या आदमी सज्दे में हैं हश्र तक जिस की क़सम खाते रहेंगे अहल-ए-हक़ एक नफ़्स-ए-मुतमइन उस दाइमी सज्दे में है कर्बला की ख़ाक पर क्या आदमी सज्दे में हैं नोक-ए-नेज़ा पर भी होनी है तिलावत बा'द-ए-'अस्र मुसहफ़-ए-नातिक़ तह-ए-ख़ंजर अभी सज्दे में है कर्बला की ख़ाक पर क्या आदमी सज्दे में हैं इस पे हैरत क्या लरज़ उट्ठी ज़मीन-ए-कर्बला राकिब-ए-दोश-ए-पयम्बर आख़िरी सज्दे में है कर्बला की ख़ाक पर क्या आदमी सज्दे में हैं सुन्नत-ए-पैग़म्बर-ए-ख़ातिम है सज्दे का ये तूल कल नबी सज्दे में थे, आज इक वली सज्दे में है कर्बला की ख़ाक पर क्या आदमी सज्दे में हैं शायर: इफ़्तिख़ार आरिफ़ ना'त-ख़्वाँ: ज़ोहैब अशरफ़ी karbala ki KHaak par kya a...

काबा उदास गुंबद-ए-ख़ज़रा उदास है / Kaba Udas Gumbad-e-Khazra Udas Hai

का'बा उदास गुंबद-ए-ख़ज़रा उदास है जब से मेरे हुसैन का चेहरा उदास है पीने को एक क़तरा भी पानी नहीं मिला अफ़सोस तीन दिन का वो प्यासा उदास है आल-ए-नबी के ग़म में फ़रिश्ते हैं बे-क़रार मक्का तड़प रहा है, मदीना उदास है जो शीर-ख़्वार बच्चा तड़पता था गोद में उस के लिए फ़ुरात का दरिया उदास है हूरें भी रो रही हैं खड़ी आसमान में गुलशन उदास, दोस्तो ! सहरा उदास है काँधे पे जिन को अपने बिठाया हुज़ूर ने कर्ब-ओ-बला में उन का नवासा उदास है ना'त-ख़्वाँ: रहीम रज़ा बलरामपुरी kaa'ba udaas gumbad-e-KHazra udaas hai jab se mere husain ka chehra udaas hai peene ko ek qatra bhi paani nahi.n mila afsos teen din ka wo pyaasa udaas hai aal-e-nabi ke Gam me.n farishte hai.n be-qaraar makka ta.Dap raha hai, madina udaas hai jo sheer-KHwaar bachcha ta.Dapta tha god me.n us ke liye furaat ka dariya udaas hai hoore.n bhi ro rahi hai.n kha.Di aasmaan me.n gulshan udaas, dosto ! sehra udaas hai kaandhe pe jin ko apne biThaaya huzoor ne karb-o-bala me.n un ka nawaasa udaas hai Naa...

क़ुर्बान ख़ुद को कर के मुसल्ला बचा लिया / Qurban Khud Ko Kar Ke Musalla Bacha Liya

क़ुर्बान ख़ुद को कर के मुसल्ला बचा लिया सर दे दिया हुसैन ने, सज्दा बचा लिया दीन-ए-नबी बचा लिया इतना ही मत कहें कहिए 'अली के लाल ने का'बा बचा लिया रोज़ा, नमाज़, दीन-ए-मुहम्मद की 'अज़मतें तन्हा मेरे हुसैन ने क्या क्या बचा लिया गिर गिर के शह-सवार ने नहर-ए-फ़ुरात पर दीन-ए-रसूल-ए-पाक का झंडा बचा लिया शायर: राही बस्तवी ना'त-ख़्वाँ: राही बस्तवी qurbaan KHud ko kar ke musalla bacha liya sar de diya husain ne, sajda bacha liya deen-e-nabi bacha liya itna hi mat kahe.n kahiye 'ali ke laal ne kaa'ba bacha liya roza, namaaz, deen-e-muhammad ki 'azmate.n tanha mere husain ne kya kya bacha liya gir gir ke shah-sawaar ne nehr-e-furaat par deen-e-rasool-e-paak ka jhanda bacha liya Poet: Rahi Bastavi Naat-Khwaan: Rahi Bastavi Qurban Khud Ko Kar Ke Musalla Bacha Liya Lyrics in English | Sar De Diya Hussain Ne Sajda Bacha Liya Lyrics in Hindi | Muharram Kalam Lyrics in Hindi | Kurban karke | lyrics of naat | naat lyrics in hindi | islamic l...

ज़मीन-ए-कर्बला तुझ पर अली का लाल आया है / Zameen-e-Karbala Tujh Par Ali Ka Laal Aaya Hai

ज़मीन-ए-कर्बला तुझ पर 'अली का लाल आया है दिखाने हैदरी तेवर 'अली का लाल आया है अगर तुम बे-नमाज़ी हो, हुसैनी हो नहीं सकते यही सज्दे में बतला कर 'अली का लाल आया है चले जब ज़ुलफ़िक़ार-ए-हैदरी मैदान में ले कर यज़ीदी भाग उठे कह कर 'अली का लाल आया है नबी के दीन की ख़ातिर मदीने से सफ़र कर के लुटाने घर कटाने सर 'अली का लाल आया है क़दम उन के पड़े तो यूँ लगा हैदर उतर आए ज़मीं भी काँप उठी थर थर, 'अली का लाल आया है ना'त-ख़्वाँ: नूर अली नूर कानपुरी zameen-e-karbala tujh par 'ali ka laal aaya hai dikhaane haidari tewar 'ali ka laal aaya hai agar tum be-namaazi ho, husaini ho nahi.n sakte yahi sajde me.n batla kar 'ali ka laal aaya hai chale jab zulfiqaar-e-haidari maidaan me.n le kar yazeedi bhaag uThe keh kar 'ali ka laal aaya hai nabi ke deen ki KHaatir madine se safar kar ke luTaane ghar kaTaane sar 'ali ka laal aaya hai qadam un ke pa.De to yu.n laga haidar utar aae zamee.n bhi kaanp uThi thar thar, 'ali ka laal aaya ...

रात दिन और सुब्ह-ओ-शाम तुम पे करोड़ों सलाम / Raat Din Aur Subh-o-Shaam Tum Pe Karodon Salam

रात दिन और सुब्ह-ओ-शाम, तुम पे करोड़ों सलाम या हुसैन 'आली-मक़ाम ! तुम पे करोड़ों सलाम पा-ए-'आबिद चूम कर, बेड़ी बोली झूम कर मैं न डालूँगी निशान, तुम पे करोड़ों सलाम बाप है शेर-ए-ख़ुदा, नाना है ख़ैर-उल-वरा तुम हो जन्नत के मेहमान, तुम पे करोड़ों सलाम सूखा गला शीर का, ज़ख़्म खाया तीर का नन्हें असग़र भी क़ुर्बान, तुम पे करोड़ों सलाम असग़र को भी दे दिया, अकबर को भी दे दिया नाना की उम्मत के नाम, तुम पे करोड़ों सलाम ना'त-ख़्वाँ: फ़ारूक़ रज़ा बरकाती देहलवी raat din aur sub.h-o-shaam, tum pe karo.Do.n salaam ya husain 'aali-maqaam ! tum pe karo.Do.n salaam paa-e-'aabid choom kar, be.Di boli jhoom kar mai.n na Daalungi nishaan, tum pe karo.Do.n salaam baap hai sher-e-KHuda, naana hai KHair-ul-wara tum ho jannat ke mehmaan, tum pe karo.Do.n salaam sookha gala sheer ka, zaKHm khaaya teer ka nanhe.n asGar bhi qurbaan, tum pe karo.Do.n salaam asGar ko bhi de diya, akbar ko bhi de diya naana ki ummat ke naam, tum pe karo.Do.n salaam Naat-Khwaan: Farooq Raza Bar...

या हुसैन इक करम की नज़र चाहिए / Ya Hussain Ek Karam Ki Nazar Chahiye

या हुसैन ! इक करम की नज़र चाहिए हम भी कर्बल की जानिब निकल जाएँगे आप की गर निगाह-ए-तवज्जोह पड़ी हम ग़ुलामों के दिन भी बदल जाएँगे गुलशन-ए-फ़ातिमा की है निकहत मिली आप को, या हुसैन ! ऐसी शौकत मिली खोटे सिक्के भी बाज़ार-ए-कौनैन में आप का नाम लेने से चल जाएँगे किस-क़दर आप की है ज़माने में धूम कह रहा है यही 'आशिक़ों का हुजूम आप के रौज़ा-ए-पाक पर, या हुसैन ! पाँव क्या चीज़ हैं सर के बल जाएँगे दर्द-ए-दिल को दवा-ए-ज़रूरी मिले अब तो कर्बल की इज़्न-ए-हुज़ूरी मिले तेरे परवाने अब, ऐ इमाम-ए-हुसैन ! आतिश-ए-हिज्र में वर्ना जल जाएँगे क्या कहूँ किस-क़दर ग़म का मारा हूँ मैं गर्दिश-ए-दहर से पारा पारा हूँ मैं आप अपने लबों को हिला दें अगर सारे रंज-ओ-अलम मेरे टल जाएँगे ज़िक्र-ए-असहाब जब भी किया जाएगा सुन्नियों के कलेजे को चैन आएगा छेड़ कर तज़्किरा अहल-ए-बैत का हम फिर मसर्रत के साँचे में ढल जाएँगे महव-ए-तूफ़ान, अय्यूब ! मुस्काइए रंज-ओ-कुल्फ़त से ऐसे न घबराइए आप पर जब वो डालेंगे नज़र-ए-करम आप के रोज़-ओ-शब भी बदल जाएँगे शायर: अय्यूब रज़ा अमजदी ना'त-ख़्वाँ: साबिर रज़ा अज़हरी सुरत ya ...

या नबी नुस्ख़ा-ए-तस्ख़ीर को मैं जान गया / Ya Nabi Nuskha-e-Taskheer Ko Main Jaan Gaya

या नबी ! नुस्ख़ा-ए-तस्ख़ीर को मैं जान गया उस को सब मान गए, आप को जो मान गया हर मकाँ वाले को करता हुआ हैरान गया ला-मकाँ में मेरा पैग़ंबर-ए-ज़ीशान गया डूबते डूबते जब उन की तरफ़ ध्यान गया ले के साहिल की तरफ़ ख़ुद मुझे तूफ़ान गया हर बुलंदी मुझे पस्ती की तरह आई नज़र जब मेरा गुंबद-ए-ख़ज़रा की तरफ़ ध्यान गया ग़ैब का जानने वाला उन्हें जब मैं ने कहा बात ईमान की थी कुफ़्र बुरा मान गया 'इश्क़-ए-सरकार-ए-दो-'आलम के सिवा कुछ भी नहीं ज़िंदगी ! तेरी हक़ीक़त को मैं पहचान गया बस इरादे ही से मौजों का हुआ काम तमाम या नबी कहना ही चाहा था कि तूफ़ान गया शुक्र सद-शुक्र कि मौत आई दर-ए-अहमद पर अब मदीने से कहीं जाने का इमकान गया जैसे बरसों की मुलाक़ात रही हो उन से क़ब्र में देखते ही मैं उन्हें पहचान गया हाथ मलती ही रही देख के दोज़ख़, यारो ! ले के जन्नत में हमें तयबा का सुलतान गया देखो किस शान से कर्बल का वो मेहमान गया नेज़े की नोक पे पढ़ता हुआ क़ुरआन गया ना'त-गोई का मैं ममनून-ए-करम हूँ, ए'जाज़ ! ख़ुल्द में ले के मुझे ना'तिया-दीवान गया शायर: मौलाना स'ईद ए'जाज़ कामटवी ना'त-ख़्वाँ: अ...

या रसूलल्लाह या हबीबल्लाह इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना / Ya Rasoolallah Ya Habiballah Ek Nazar-e-Karam Farma Jana

या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना दिन रात तड़पता हूँ लिल्लाह दीदार का जाम पिला जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना तेरे हिज्र में दिल भी जलता है आँखों से ख़ून उबलता है कहीं डूब न जाऊँ तूफ़ाँ में बेकस को पार लगा जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना जीना भी सज़ा है बिन तेरे मरना भी सज़ा है बिन तेरे दुनिया के ग़मों से, मेरे नबी ! बिस्मिल की जान छुड़ा जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना जिस वक़्त नज़ा' का 'आलम हो तक़दीर का चेहरा बरहम हो उस वक़्त अपने दीवाने को अपना दीदार करा जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना मेरी हर कोशिश नाकाम हुई राह तकते 'उम्र तमाम हुई जब मर जाऊँ तो तुर्बत में इक अपनी झलक दिखला जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना ऐ मेरे यारो ग़म-ख़्वारो ! इक मेरी नसीहत लिख लेना मुझे जब दफ़ना के जाने लगो सरकार की ना'त सुना जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना तेरी ना'त कहाँ, मेरी बात कहाँ लाचार श...

वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं / Wo Shehr-e-Mohabbat Jahan Mustafa Hain

वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है वो सोने से कंकर, वो चाँदी सी मिट्टी नज़र में बसाने को जी चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है क़दम जिस ज़मीं पर रखे हैं नबी ने वहाँ खोल रक्खे हैं दर रौशनी ने वो गलियाँ जहाँ चलते थे मेरे आक़ा वहाँ दिल बिछाने को जी चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है जो पूछा नबी ने कि कुछ घर भी छोड़ा तो सिद्दीक़-ए-अकबर के होंटों पे आया वहाँ माल-ओ-दौलत की क्या है हक़ीक़त जहाँ दिल लुटाने को जी चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है जो देखा है रू-ए-जमाल-ए-रिसालत तो बोले 'उमर, मुस्तफ़ा जान-ए-रहमत ! बड़ी आप से दुश्मनी थी मगर अब ग़ुलामी में आने को जी चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है जिहाद-ए-मोहब्बत की आवाज़ गूँजी कहा हन्ज़ला ने ये दुल्हन से अपनी इजाज़त अगर दो तो जाम-ए-शहादत लबों से लगाने को जी चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है उधर दीद-ए-आक़ा में हर-दम...

मर्तबा ऐसा है आलीशान ज़ुन्नूरैन का / Martaba Aisa Hai Aalishaan Zunnoorain Ka

मर्तबा ऐसा है 'आलीशान ज़ुन्नूरैन का ख़ुद ख़ुदा है मदह-गो 'उस्मान ज़ुन्नूरैन का अल्लाह अल्लाह मर्तबा 'उस्मान ज़ुन्नूरैन का मुस्तफ़ा उन के हैं, ख़ुद रहमान ज़ुन्नूरैन का सारे 'आलम में जिधर, जिस सम्त भी डालो नज़र बट रहा है चार-सू फ़ैज़ान ज़ुन्नूरैन का मन्क़बत की शक्ल में नज़्र-ए-'अक़ीदत के लिए मैं ने, अर्फ़क़ ! चुन लिया 'उनवान ज़ुन्नूरैन का शायर: अर्फ़क़ मियाँ ना'त-ख़्वाँ: मीलाद रज़ा अत्तारी martaba aisa hai 'aalishaan zunoorain ka KHud KHuda hai mad.h-go 'usmaan zunoorain ka allah allah martaba 'usmaan zunoorain ka mustafa un ke hai.n, KHud rahmaan zunoorain ka saare 'aalam me.n jidhar, jis samt bhi Daalo nazar baT raha hai chaar-soo faizaan zunoorain ka manqabat ki shakl me.n nazr-e-'aqeedat ke liye mai.n ne, Arfaq ! chun liya 'unwaan zunoorain ka Poet: Arfaq Miyan Naat-Khwaan: Milad Raza Attari Martaba Aisa Hai Aalishaan Zunnoorain Ka Lyrics | Martaba Aisa Hai Aalishaan Zunnoorain Ka Lyrics in Hindi | Manqabat...

उस्मान उस्मान दिल आप पे क़ुर्बान | अल्लाह का प्यारा है जो दामाद-ए-नबी है / Usman Usman Dil Aap Pe Qurban | Allah Ka Pyara Hai Jo Damad-e-Nabi Hai

ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! 'उस्मान ! उस्मान ! दिल आप पे क़ुर्बान 'उस्मान ! उस्मान ! दिल आप पे क़ुर्बान 'उस्मान बिन 'अफ़्फ़ान मेरी जान मेरी जान है कामिलुल-हयाइ-वल-ईमान तेरी शान अल्लाह का प्यारा है, जो दामाद-ए-नबी है 'उस्मान-ए-ग़नी है मेरा 'उस्मान-ए-ग़नी है ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी 'उस्माँ ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी 'उस्माँ ग़नी सरकार-ए-मदीना भी हया करते थे तुझ से ऐ हज़रत-ए-'उस्मान ! तेरी शान बड़ी है 'उस्मान बिन 'अफ़्फ़ान मेरी जान मेरी जान है कामिलुल-हयाइ-वल-ईमान तेरी शान 'उस्मान ! उस्मान ! दिल आप पे क़ुर्बान 'उस्मान ! उस्मान ! दिल आप पे क़ुर्बान करता है ज़माने पे हमेशा वो हुकूमत ख़ैरात जिसे हज़रत-ए-'उस्माँ से मिली है 'उस्मान बिन 'अफ़्फ़ान मेरी जान मेरी जान है कामिलुल-हयाइ-वल-ईमान तेरी शान ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी 'उस्माँ ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी 'उस्माँ ग़नी ये राफ़ज़ी क्या जाने भला शान-ए-ग़नी को हैदर से ज़रा पूछो कि क्या शान-ए-ग़नी है 'उस्मान बिन 'अफ़्फ़ान मेरी जान मेरी जान है काम...

फ़िदा कर इश्क़-ए-नबी पर जान | ज़माना याद करेगा / Fida Kar Ishq-e-Nabi Par Jaan | Zamana Yaad Karega

फ़िदा कर 'इश्क़-ए-नबी पर जान मुकम्मल कर ले तू ईमान ज़माना याद करेगा, ज़माना याद करेगा दिन-रात तड़प ये रहती है, ऐ काश ! मदीना जाऊँ मैं अल्ताफ़-ओ-करम की वादी से ता-'उम्र न वापस आऊँ मैं मेरे दिल का है यही अरमान निछावर कर दूँ उन पर जान ज़माना याद करेगा, ज़माना याद करेगा जब याद नबी की आती है, इक कैफ़ का 'आलम होता है जब ज़िक्र-ए-नबी छिड़ जाता है, इक वज्द का मौसम होता है यही तो कहता है क़ुरआन कि आक़ा हैं जान-ए-ईमान ज़माना याद करेगा, ज़माना याद करेगा सरकार से तू है दूर मगर, सरकार तो तुझ से दूर नहीं क्यूँ खोया खोया रहता है, मुख़्तार है तू मजबूर नहीं नबी को पहले दिल से मान नबी पे सब कुछ कर क़ुर्बान ज़माना याद करेगा, ज़माना याद करेगा अस्लाफ़ की है तारीख़ यही, साहिल पे जला दी है कश्ती दौड़ाए हैं घोड़े दरिया पर, क्या 'इश्क़-ए-नबी की मस्ती थी तुम्ही हो वो मर्द-ए-मैदान ज़रा ढूँडो अपनी पहचान ज़माना याद करेगा, ज़माना याद करेगा जो बात थी आ'ला हज़रत में, वो आज किसी हज़रत में नहीं वो 'इश्क़-ए-नबी का पैकर थे, थर्राते थे उन से दुश्मन भी दिया हम को कंज़ुल-ईमान ये है हम पर उन का एहसान ज़मा...

तेरे होते जनम लिया होता / Tere Hote Janam Liya Hota

तेरे होते जनम लिया होता फिर कभी तो तुझे मिला होता काश ! मैं संग-ए-दर तेरा होता तेरे क़दमों को चूमता होता तू चला करता मेरी पलकों पर काश ! मैं तेरा रास्ता होता ज़र्रा होता जो तेरी राहों का तेरे तलवों को छू लिया होता लड़ता फिरता मैं तेरे आ'दा से तेरी ख़ातिर मैं मर गया होता तेरे मस्कन के गिर्द शाम-ओ-सहर बन के मँगता मैं फिर रहा होता तू कभी तो मुझे भी तक लेता तेरे तकने पे बिक गया होता तू कभी तो मेरी ख़बर लेता तेरे कूचे में घर किया होता तू जो आता मेरे जनाज़े पर तेरे होते मैं मर गया होता चाँद होता मैं आसमानों पर तेरी उँगली से कट गया होता होता ताहिर तेरे फ़क़ीरों में तेरी दहलीज़ पर पड़ा होता शायर: डॉ. मुहम्मद ताहिर-उल-क़ादरी ना'त-ख़्वाँ: मीलाद रज़ा क़ादरी मुहम्मद अफ़ज़ल नोशाही अज़मत रज़ा भागलपुरी सक़लैन रशीद tere hote janam liya hota phir kabhi to tujhe mila hota kaash ! mai.n sang-e-dar tera hota tere qadmo.n ko choomta hota tu chala karta meri palko.n par kaash ! mai.n tera raasta hota zarra hota jo teri raaho.n ka tere talwo.n ko chhoo liya hota l...