जाम-ए-हक़ पिलाते हैं, हम हुसैन वाले हैं दिल को जगमगाते हैं, हम हुसैन वाले हैं राह-ए-हक़ दिखाते हैं, हम हुसैन वाले हैं 'इश्क़ हम सिखाते हैं, हम हुसैन वाले हैं फ़ातिमा के लालों का सदक़ा आज भी हम लोग कर्बला से पाते हैं, हम हुसैन वाले हैं सिद्दीक़-ओ-'उमर, 'उस्माँ का वज़ीफ़ा पढ़ पढ़ कर राफ़ज़ी भगाते हैं, हम हुसैन वाले हैं फ़ातिमा, हसन, हैदर का वज़ीफ़ा पढ़ पढ़ कर नासबी भगाते हैं, हम हुसैन वाले हैं अपनी महफ़िलों में हम ज़िक्र-ए-मु'आविया कर के शी'ओं को जलाते हैं, हम हुसैन वाले हैं लश्कर-ए-यज़ीदी ! हम कसरत के नहीं क़ाइल हम बहत्तर वाले हैं, हम हुसैन वाले हैं देख कर जवाँ-मर्दी मुर्तज़ा के शेरों की आ'दा थरथराते हैं, हम हुसैन वाले हैं 'अब्बास-ओ-'अली अकबर, ज़ैनब-ओ-'अली असग़र इन सभी के ना'रे हैं, हम हुसैन वाले हैं ग़ौस-ओ-ख़्वाजा-ओ-अशरफ़, साबिर-ओ-रज़ा, अख़्तर सब यही पुकारे हैं, हम हुसैन वाले हैं आज भी मुहर्रम में याद-ए-कर्बला में हम महफ़िलें सजाते हैं, हम हुसैन वाले हैं बातिलों की ज़ुल्मत से ख़ौफ़ हम नहीं खाते क़स्र-ए-ज़ुल्म ढाते हैं, हम हुसैन वाले हैं वक़्त के यज़ीदों से आ
Kalame Huzoor Mufti E Nanpara Alayhir Rahma
ReplyDelete