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सुनो ये सपने की है बात | सुनाऊँ ख़्वाब की मैं ये बात | कि निंदिया टूट गई / Suno Ye Sapne Ki Hai Baat | Sunaun Khwab Ki Main Ye Baat | Ki Nindiya Toot Gayi

सुनो ये सपने की है बात मैं तयबा पहुँचा था कल रात कि निंदिया टूट गई, कि निंदिया टूट गई पढ़ा था जा के वहाँ पर ना'त मिली थी रहमत की सौग़ात कि निंदिया टूट गई, कि निंदिया टूट गई कल रात में इक सपना देखा सपने में हसीं जल्वा देखा इक नूर का बहता दरिया था दरिया में हसीं इक रौज़ा था रौज़े पे सुनहरी चादर थी वो जिस की रुपहली झालर थी कि जिस को देख उठा मैं झूम अदब से उस को लिया था चूम कि निंदिया टूट गई, कि निंदिया टूट गई रहमत की नूरानी छाँव में तयबा के मुक़द्दस गाँव में गुज़रा वो हसीं मक्का देखा मक्के में हसीं का'बा देखा का'बे में नूर की चादर थी वो जिस की सुनहरी झालर थी कुछ मेरी आँखें थी हैरान ख़ुदा की देख रहा था शान कि निंदिया टूट गई, कि निंदिया टूट गई फिर देखी छाँव खजूरों की जैसे हों क़तारें हूरों की कुछ लोग वहाँ पर बैठे थे वो जिन के नूरानी चेहरे थे अल्लाह की इता'अत करते थे क़ुरआँ की तिलावत करते थे की सोचा मैं भी पढ़ूँ क़ुरआन थी जिस पे जान मेरी क़ुर्बान कि निंदिया टूट गई, कि निंदिया टूट गई ज़फ़र ! वो समा था महशर का क्या हाल कहूँ उस मंज़र का इक भीड़ लगी थी ज़मज़म प...

तमन्ना मुद्दतों से है जमाल-ए-मुस्तफ़ा देखूँ / Tamanna Muddaton Se Hai Jamal-e-Mustafa Dekhun

तमन्ना मुद्दतों से है, जमाल-ए-मुस्तफ़ा देखूँ इमाम-उल-अंबिया देखूँ, हबीब-ए-किब्रिया देखूँ वो जिन के दम-क़दम से सुब्ह ने भी रौशनी पाई मुनव्वर कर दिया जिस ने फ़ज़ा, वो रहनुमा देखूँ वो जिन की बरकतों से अब्र-ओ-बाराँ बस्ते 'आलम में तमन्ना क़ल्ब-ए-मुज़्तर की, वो दुर्र-ए-बे-बहा देखूँ क़दम बाहर मदीने से, तसव्वुर में मदीना है इलाही या इलाही ! 'अज़्मतों की इंतिहा देखूँ ये दुनिया बे-सबात-ओ-बे-वफ़ा-ओ-ग़म का गहवारा ये है मतलूब, दार-ए-बे-वफ़ाई में वफ़ा देखूँ वो मब्दा ख़ल्क़-ए-'आलम का, दुरूद उन पर, सलाम उन पर मेरे मौला ! ये मौक़ा' दे कि ख़तमुल-अंबिया देखूँ कभी हो हुस्न की महफ़िल, कभी हो शौक़ का मंज़र कभी आँसू की ज़ंजीरों में 'आशिक़ की सदा देखूँ रसूलुन-क़ासिम-उल-ख़ैराति फ़ि-द्दुनिया व फ़िल-'उक़्बा शफ़ीक़ अज़ नफ़्स-ए-मा दर मा नबी-ए-मुजतबा देखूँ दर-ए-जन्नत पे हाज़िर हों रसूल-ए-पाक के हम-राह शफ़ा'अत का ये मंज़र या ख़ुदाया मैं रज़ा देखूँ शायर: मुफ़्ती रज़ा-उल-हक़ ना'त-ख़्वाँ: एहसान तहमीद आइशा अब्दुल बासित मुदस्सिर अब्दुल्लाह tamanna muddato.n se hai, jamaal-e-mustafa dekhu...

पेश-ए-हक़ मुज़्दा शफ़ाअत का सुनाते जाएँगे / Pesh-e-Haq Muzda Shafaat Ka Sunate Jayenge

पेश-ए-हक़ मुज़्दा शफ़ा'अत का सुनाते जाएँगे आप रोते जाएँगे, हम को हँसाते जाएँगे दिल निकल जाने की जा है, आह ! किन आँखों से वो हम से प्यासों के लिए दरिया बहाते जाएँगे कुश्तगान-ए-गर्मी-ए-महशर को वो जान-ए-मसीह आज दामन की हवा दे कर जिलाते जाएँगे गुल खिलेगा आज ये उन की नसीम-ए-फ़ैज़ से ख़ून रोते आएँगे, हम मुस्कुराते जाएँगे हाँ चलो, हसरत-ज़दो ! सुनते हैं वो दिन आज है थी ख़बर जिस की कि वो जल्वा दिखाते जाएँगे आज 'ईद-ए-'आशिक़ाँ है गर ख़ुदा चाहे कि वो अब्रू-ए-पैवस्ता का 'आलम दिखाते जाएँगे कुछ ख़बर भी है, फ़क़ीरो ! आज वो दिन है कि वो ने'मत-ए-ख़ुल्द अपने सदक़े में लुटाते जाएँगे ख़ाक-उफ़्तादो ! बस उन के आने ही की देर है ख़ुद वो गिर कर सज्दा में तुम को उठाते जाएँगे वुस'अतें दी हैं ख़ुदा ने दामन-ए-महबूब को जुर्म खुलते जाएँगे और वो छुपाते जाएँगे लो वो आए मुस्कुराते हम असीरों की तरफ़ ख़िरमन-ए-'इस्याँ पर अब बिजली गिराते जाएँगे आँख खोलो, ग़म-ज़दो ! देखो वो गिर्यां आए हैं लौह-ए-दिल से नक़्श-ए-ग़म को अब मिटाते जाएँगे सोख़्ता-जानों पे वो पुर-जोश-ए-रहमत आए हैं आब-ए-कौसर से लगी दिल की ब...

तेरी जनाब के जैसी कोई जनाब नहीं / Teri Janab Ke Jaisi Koi Janab Nahin

तेरी जनाब के जैसी कोई जनाब नहीं तू ला-जवाब है, तेरा कोई जवाब नहीं नबी तो और हसीन-ओ-जमील हैं लेकिन जो तुझ में आब है ऐसी किसी में आब नहीं बना के हुस्न-ए-सरापा ये कह दिया रब ने तेरे शबाब के आगे कोई शबाब नहीं तुम्हारे ज़ुल्फ़ है वल्लैल, वद्दुहा चेहरा तुम्हारी मस्त नज़र का कोई जवाब नहीं तुम्हारे नूर से शम्स-ओ-क़मर हुए रौशन वो कौन है जो तेरे दर से फ़ैज़याब नहीं ख़ुदा ने तूर पे मूसा से लन-तरानी कहा कहा हबीब से, तुम से कोई हिजाब नहीं हुज़ूर ! जिस को दिया तुम ने बे-हिसाब दिया तुम्हारी देन में, आक़ा ! कोई हिसाब नहीं कहाँ है मेरी नज़र उन की दीद के क़ाबिल वो मेरे दिल में हैं लेकिन नज़र को ताब नहीं तेरी नज़र ने मुझे क्या से क्या बना डाला तेरी 'इनायतें इतनी हैं कि हिसाब नहीं उन्हें ख़ुदा ने बनाया है रहमत-ए-'आलम जो उन के हो गए उन को कोई 'अज़ाब नहीं वो जिन को हाजत-ए-जन्नत है, या ख़ुदा ! दे दे मेरा तो उन के सिवा कोई इंतिख़ाब नहीं तुम्हारे नक़्श-ए-क़दम से जो हट गए हैं वही हज़ार सज्दे करें फिर भी कामयाब नहीं जो देख आए हैं, ए'जाज़ ! गुंबद-ए-ख़ज़रा मैं कैसे कह दूँ कि दिल उन के आफ़ताब नही...

मैं गुनाहगार हूँ ऐ ख़ुदा बख़्श दे / Main Gunahgar Hoon Aye Khuda Bakhsh De

मैं गुनाहगार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे उलझनों में हूँ मुद्दत से जकड़ा हुआ यूँ गिरिफ़्तार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे मैं गुनाहगार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे रात-ओ-दिन मैं मुलव्विस गुनाहों में हूँ इतना बेकार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे मैं गुनाहगार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे बस ख़ताएँ हैं और नेकियाँ कुछ नहीं लुक़मा-ए-नार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे मैं गुनाहगार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे नफ़्स-ओ-शैताँ के जालों में फँसता गया मैं वो बद-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे मैं गुनाहगार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे दे मु'आफ़ी मुझे, रख ले मेरा भरम मैं सज़ा-वार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे मैं गुनाहगार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे और ख़ता-कार हूँ, ऐ ख़ुदा ! बख़्श दे शाफ़ी ! दुनिया के सारे ही रिश्तों से अब काफ़ी बेज़...

अपनी निस्बत से मैं कुछ नहीं हूँ इस करम की बदौलत बड़ा हूँ / Apni Nisbat Se Main Kuchh Nahin Hoon Is Karam Ki Badaulat Bada Hoon

अपनी निस्बत से मैं कुछ नहीं हूँ, इस करम की बदौलत बड़ा हूँ उन के टुकड़ों से ए'ज़ाज़ पा कर, ताजदारों की सफ़ में खड़ा हूँ इस करम को मगर क्या कहोगे, मैं ने माना मैं सब से बुरा हूँ जो बुरों को समेटे हुए हैं, उन के क़दमों में मैं भी पड़ा हूँ देखने वालो ! मुझ को न देखो, देखना है अगर तो ये देखो किस के दामन से वाबस्ता हूँ मैं, कौन वाली है, किस का गदा हूँ देखता हूँ जब उन की 'अताएँ, भूल जाता हूँ अपनी ख़ताएँ सर नदामत से उठता नहीं है, जब मैं अपनी तरफ़ देखता हूँ या नबी ! अपने ग़म की कहानी, कह सकूँगा न अपनी ज़ुबानी बिन कहे ही मेरी लाज रख लो, मैं सिसकती हुई इल्तिजा हूँ शाफ़े'-ए-मुज़निबाँ के करम ने लाज रख ली मेरे खोटे-पन की निस्बतों का करम है ये, ख़ालिद ! खोटा होते हुए भी खरा हूँ शायर: ख़ालिद महमूद नक़्शबंदी ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी apni nisbat se mai.n kuchh nahi.n hu.n is karam ki badaulat ba.Da hu.n un ke Tuk.Do.n se e'zaaz pa kar taajdaaro.n ki saf me.n kha.Da hu.n is karam ko magar kya kahoge mai.n ne maana mai.n sab se bura hu.n jo buro.n ko sameTe hue ...

क्यूँकर न मेरे दिल में हो उल्फ़त रसूल की / Kyun Kar Na Mere Dil Mein Ho Ulfat Rasool Ki

क्यूँकर न मेरे दिल में हो उल्फ़त रसूल की जन्नत में ले के जाएगी चाहत रसूल की क्यूँकर न मेरे दिल में हो उल्फ़त रसूल की चलता हूँ मैं भी, क़ाफ़िले वालो ! रुको ज़रा मिलने दो बस मुझे भी इजाज़त रसूल की जन्नत में ले के जाएगी चाहत रसूल की क्यूँकर न मेरे दिल में हो उल्फ़त रसूल की पूछें जो दीन-ओ-ईमाँ नकीरैन क़ब्र में उस वक़्त मेरे लब पे हो मिदहत रसूल की जन्नत में ले के जाएगी चाहत रसूल की क्यूँकर न मेरे दिल में हो उल्फ़त रसूल की क़ब्र में सरकार आएँ तो मैं क़दमों में गिरूँ गर फ़रिश्ते भी उठाएँ तो मैं उन से यूँ कहूँ अब तो पा-ए-नाज़ से मैं, ऐ फ़रिश्तो ! क्यूँ उठूँ ? मर के पहुँचा हूँ यहाँ इस दिलरुबा के वास्ते तड़पा के उन के क़दमों में मुझ को गिरा दे शौक़ जिस वक़्त हो लहद में ज़ियारत रसूल की जन्नत में ले के जाएगी चाहत रसूल की क्यूँकर न मेरे दिल में हो उल्फ़त रसूल की सरकार ने बुला के मदीना दिखा दिया होगी मुझे नसीब शफ़ा'अत रसूल की जन्नत में ले के जाएगी चाहत रसूल की क्यूँकर न मेरे दिल में हो उल्फ़त रसूल की या रब ! दिखा दे आज की शब जल्वा-ए-हबीब इक बार तो 'अता हो ज़ियारत रसूल की इन आँखों का वर्ना ...

दुनिया जिस को माँ कहती है ज़ात बड़ी बा-बरकत है / Duniya Jis Ko Maa Kehti Hai Zaat Badi Ba-barkat Hai

दुनिया जिस को माँ कहती है, ज़ात बड़ी बा-बरकत है माँ ऐसी हस्ती है जिस के क़दम के नीचे जन्नत है माँ ने अपने ख़ून-ए-जिगर से दुनिया को सैराब किया ग़ौस-ओ-क़ुतुब और पीर-पयम्बर सब को माँ ने जनम दिया माँ के हसीं पैकर में देखो शान-ए-रब्बुल-'इज़्ज़त है माँ ऐसी हस्ती है जिस के क़दम के नीचे जन्नत है थपकी दे कर, नग़्मा गा कर माँ उस को बहलाती है दूध की सूरत में वो अपना दिल का ख़ून पिलाती है माँ के गोशे में पोशीदा इक पाकीज़ा शफ़क़त है माँ ऐसी हस्ती है जिस के क़दम के नीचे जन्नत है घर वाले सब सो जाते हैं, जागती माँ रह जाती है बच्चे के आराम की ख़ातिर हर दुख को सह जाती है माँ के आँचल के साए में चैन सुकूँ है राहत है माँ ऐसी हस्ती है जिस के क़दम के नीचे जन्नत है माँ की दु'आएँ ले कर जब मैं अपने घर से निकलता हूँ ऐसा लगता है कि जन्नत की वादी में टहलता हूँ माँ की दु'आ के सदक़े में हर-सू जहाँ में शोहरत है माँ ऐसी हस्ती है जिस के क़दम के नीचे जन्नत है माँ की इक छोटी सी हँसी से दिल का चमन खिल जाता है माँ की आँख में आँसू हो तो 'अर्श-ए-ख़ुदा हिल जाता है माँ की 'अज़मत जो न समझे उस पे ख़ुदा की ला...

फ़िलिस्तीनियों ने क़यामत में आक़ा को दुखड़ा सुनाया तो फिर क्या करोगे / Palestineo Ne Qayamat Mein Aaqa Ko Dukhda Sunaya To Phir Kya Karoge

फ़िलिस्तीनियों ने क़यामत में आक़ा को दुखड़ा सुनाया तो फिर क्या करोगे अगर मुस्तफ़ा ने भी नाराज़ हो कर रुख अपना फिराया तो फिर क्या करोगे फ़िलिस्तीनियों ने क़यामत में आक़ा को दुखड़ा सुनाया तो फिर क्या करोगे उड़ी जा रही हैं शहीदों की लाशें फ़ुग़ाँ बन के 'अर्श-ए-इलाही की जानिब अगर ये मनाज़िर तुम्हारे घरों में ख़ुदा ने दिखाया तो फिर क्या करोगे फ़िलिस्तीनियों ने क़यामत में आक़ा को दुखड़ा सुनाया तो फिर क्या करोगे जो तुम खा रहे हो ये लाशें हैं उन की, जो तुम पी रहे हो ये सब ख़ूँ है उन का ख़ुदा के लिए अपना ईमाँ बचा लो, अगर वक़्त गुज़रा तो फिर क्या करोगे फ़िलिस्तीनियों ने क़यामत में आक़ा को दुखड़ा सुनाया तो फिर क्या करोगे जो कर्बल की तारीख़ सुन कर ये कहते हो ऐ काश ! हम उस ज़माने में होते तुम्हीं को क़यामत में ग़ज़ा के बच्चों ने चेहरा दिखाया तो फिर क्या करोगे फ़िलिस्तीनियों ने क़यामत में आक़ा को दुखड़ा सुनाया तो फिर क्या करोगे हमारा ही क़िब्ला है बैत-उल-मुक़द्दस, हमारे ही नबियों की आरामगाह है अगर उन में तुम को किसी एक ने भी किया गर पराया तो फिर क्या करोगे फ़िलिस्तीनियों ने क़यामत में आक़ा को दुखड़ा सुनाया तो फिर क्या करोग...

अजब करम शह-ए-वाला तबार करते हैं / Ajab Karam Shahe Wala Tabar Karte Hain

'अजब करम शह-ए-वाला तबार करते हैं कि ना-उमीदों को उम्मीदवार करते हैं जमा के दिल में सफ़ें हसरत-ओ-तमन्ना की निगाह-ए-लुत्फ़ का हम इंतिज़ार करते हैं मुझे फ़सुर्दगी-ए-बख़्त का अलम क्या हो वो एक दम में ख़िज़ाँ को बहार करते हैं ख़ुदा सगान-ए-नबी से ये मुझ को सुनवा दे हम अपने कुत्तों में तुझ को शुमार करते हैं मलाइका को भी हैं कुछ फ़ज़ीलतें हम पर कि पास रहते हैं तौफ़-ए-मज़ार करते हैं जो ख़ुश-नसीब यहाँ ख़ाक-ए-दर पे बैठते हैं जुलूस-ए-मसनद-ए-शाही से 'आर करते हैं हमारे दिल की लगी भी वही बुझा देंगे जो दम में आग को बाग़-ओ-बहार करते हैं इशारा कर दो तो बाद-ए-ख़िलाफ़ के झोंके अभी हमारे सफ़ीने को पार करते हैं तुम्हारे दर के गदाओं की शान 'आली है वो जिस को चाहते हैं ताजदार करते हैं गदा गदा है, गदा तो किया ही चाहे अदब बड़े बड़े तेरे दर का वक़ार करते हैं तमाम ख़ल्क़ को मंज़ूर है रज़ा जिन की रज़ा हुज़ूर की वो इख़्तियार करते हैं सुना के वस्फ़-ए-रुख़-ए-पाक 'अंदलीब को हम रहीन-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार करते हैं हवा ख़िलाफ़ हो, चकराए नाओ, क्या ग़म हो वो एक आन में बेड़े को पार करते हैं अना लहा से वो बाज़ार-ए-कस्म-...

तू ने दीवाना बनाया तो मैं दीवाना बना / Tu Ne Deewana Banaya To Main Deewana Bana

तू ने दीवाना बनाया तो मैं दीवाना बना अब मुझे होश की दुनिया में तमाशा न बना 'इश्क़ में दीदा-ओ-दिल शीशा-ओ-पैमाना बना झूम कर बैठ गए हम वहीं मय-ख़ाना बना यूसुफ़-ए-मिस्री तमन्ना तेरे जल्वों के निसार मेरी बेदारियों को ख़्वाब-ए-ज़ुलैख़ा न बना ये तमन्ना है कि आज़ाद-ए-तमन्ना ही रहूँ दिल-ए-मायूस को मानूस-ए-तमन्ना न बना दिल-ए-बेताब को तस्कीन तबस्सुम से न दे चश्म-ए-मजनूँ के लिए महमिल-ए-लैला न बना ज़ौक़-ए-बर्बादी-ए-दिल को भी न कर तू बर्बाद दिल की उजड़ी हुई बिगड़ी हुई दुनिया न बना मुंकिर-ए-होश हूँ मैं मो'तक़िद-ए-होश न कर मस्त-ए-इमरोज़ को महव-ए-ग़म-ए-फ़र्दा न बना निगह-ए-नाज़ से पूछेंगे किसी दिन ये, ज़हीन ! तू ने क्या क्या न बनाया, कोई क्या क्या न बना शायर: ज़हीन शाह ताजी नशीद-ख़्वाँ: आबिदा परवीन सज्जाद सोलंगी tu ne deewana banaaya to mai.n deewana bana ab mujhe hosh ki duniya me.n tamaasha na bana 'ishq me.n deeda-o-dil sheesha-o-paimaana bana jhoom kar baiTh gae ham wahi.n mai-KHaana bana yusuf-e-misri tamanna tere jalwo.n ke nisaar meri bedaariyo...