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फूलों की है महकार मगर तेरी कमी है | चिड़ियों की है चहकार मगर तेरी कमी है / Phoolon Ki Hai Mehkar Magar Teri Kami Hai | Chidiyon Ki Hai Chehkar Magar Teri Kami Hai

फूलों की है महकार मगर तेरी कमी है चिड़ियों की है चहकार मगर तेरी कमी है गुलशन में गुलाबों की कमी कोई नहीं है कहता है दिल-ए-ज़ार मगर तेरी कमी है हर दर्द में, तक़लीफ़ में और रंज-ओ-अलम में ऐ मेरी मददगार ! मगर तेरी कमी है क़िस्मत ने किया दौलत-ए-ममता से है महरूम दौलत का है अँबार मगर तेरी कमी है हर आन मेरे सर पे दु'आओं के वो साए है साया-ए-अश्जार मगर तेरी कमी है रमज़ान की रौनक़ थी तेरे दम से दो-बाला है सहरी-ओ-इफ़्तार मगर तेरी कमी है बहलीम के अमराज़ की तश्ख़ीस करे कौन ? ऐ वाक़िफ़-ए-आज़ार ! मगर तेरी कमी है ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी असद रज़ा अत्तारी phoolo.n ki hai mehkaar magar teri kami hai chi.Diyo.n ki hai chehkaar magar teri kami hai gulshan me.n gulaabo.n ki kami koi nahi.n hai kehta hai dil-e-zaar magar teri kami hai har dard me.n, taqleef me.n aur ranj-o-alam me.n ai meri madadgaar ! magar teri kami hai qismat ne kiya daulat-e-mamta se hai mahroom daulat ka hai ambaar magar teri kami hai har aan mere sar pe du'aao.n ke wo saae hai saaya-e-ashjaar

है क़ौल-ए-मुहम्मद क़ौल-ए-ख़ुदा फ़रमान न बदला जाएगा / Hai Qaul-e-Muhammad Qaul-e-Khuda Farman Na Badla Jayega

है क़ौल-ए-मुहम्मद क़ौल-ए-ख़ुदा, फ़रमान न बदला जाएगा बदलेगा ज़माना लाख मगर क़ुरआन न बदला जाएगा शाहों को बदलते देखा है, शाहीं को बदलते देख लिया इस्लाम की कश्ती का लेकिन सुल्तान न बदला जाएगा सर लाख उठाएगा ज़ालिम, होगी न फ़तह हरगिज़ हासिल हक़ वाले रहेंगे हक़ पे सदा, ईमान न बदला जाएगा सब दुनिया होगी फ़ौत इक दिन, आएगी मौत को मौत इक दिन क़ानून अटल है क़ुदरत का, इक आन न बदला जाएगा आज़ाद ! ये कह दो दुनिया से, जब तक ये मुसलमाँ ज़िंदा हैं इस्लाम की ज़ेब-ओ-ज़ीनत का सामान न बदला जाएगा नशीद-ख़्वाँ: हाफ़िज़ मुनीर अहमद hai qaul-e-muhammad qaul-e-KHuda farmaan na badla jaayega badlega zamaana laakh magar qur.aan na badla jaayega shaaho.n ko badalte dekha hai shaahee.n ko badalte dekh liya islam ki kashti ka lekin sultaan na badla jaayega sar laakh uThaaega zaalim hogi na fatah hargiz haasil haq waale rahenge haq pe sada imaan na badla jaayega sab duniya hogi faut ik din aayegi maut ko maut ik din qaanoon aTal hai qudrat ka ik aan na badla jaayega Aazad ! ye keh do duniya se ja

शब की आहें न गईं सुब्ह के नाले न गए / Shab Ki Aahen Na Gain Subh Ke Naale Na Gaye

शब की आहें न गईं, सुब्ह के नाले न गए उन की यादों से परे उन के जियाले न गए सब्ज़ गुंबद पे नज़र पड़ते ही वो हाल हुआ अपने जज़्बात किसी तरह सँभाले न गए ऐसी दिल-जूई ज़माने में कहीं देखी है ? उन से मुझ जैसे गुनहगार भी टाले न गए इक तुम्ही हो कि निभाते हो हमेशा हम को वर्ना हम जैसे किसी और से पाले न गए रह गई लाज मेरी उन के सबब महशर में लिल्लाहिल-हम्द मेरे 'ऐब खँगाले न गए उन के रस्ते में वो हालत हो कि दुनिया देखे ज़िंदगी जाती रही, पाँव के छाले न गए वाह क्या शान है आक़ा की ! कि कहते हैं सभी चाहे दो ज़ख़्म उन्हें, चाहने वाले न गए ना'त-ख़्वाँ: मुहम्मद अली फ़ैज़ी shab ki aahe.n na gai.n, sub.h ke naale na gaye un ki yaado.n se pare un ke jiyaale na gaye sabz gumbad pe nazar pa.Dte hi wo haal huaa apne jazbaat kisi tarha sambhaale na gaye aisi dil-jooi zamaane me.n kahi.n dekhi hai ? un se mujh jaise gunahgaar bhi Taale na gaye ik tumhi ho ki nibhaate ho hamesha ham ko warna ham jaise kisi aur se paale na gaye reh gai laaj meri un ke sabab mehshar me.n lillahil-ha

दरबार-ए-मुस्तफ़ा में ज़ार-ओ-क़तार रोया / Darbar-e-Mustafa Mein Zaar-o-Qatar Roya

दरबार-ए-मुस्तफ़ा में ज़ार-ओ-क़तार रोया अपनी जफ़ाएँ सोचीं, मैं बार-बार रोया दरबार-ए-मुस्तफ़ा में ज़ार-ओ-क़तार रोया तयबा में फिर रहा था, मुजरिम बना हुआ था सोचे नबी के एहसाँ, मैं बे-शुमार रोया दरबार-ए-मुस्तफ़ा में ज़ार-ओ-क़तार रोया कैसे बताऊँ तुम को किस वक़्त चुप हुआ था ? आक़ा के शहर में मैं लैल-ओ-नहार रोया दरबार-ए-मुस्तफ़ा में ज़ार-ओ-क़तार रोया अपने नबी के क़दमों को ढूँडता रहा मैं तयबा की गलियों में मैं पैदल सवार रोया दरबार-ए-मुस्तफ़ा में ज़ार-ओ-क़तार रोया प्यारे नबी के दर पर जज़्बात ही अलग थे रोया वहाँ ख़ुशी से और सोगवार रोया दरबार-ए-मुस्तफ़ा में ज़ार-ओ-क़तार रोया दामन था मेरा ख़ाली, रब का बना सवाली उन की शफ़ा'अतों का उम्मीदवार रोया दरबार-ए-मुस्तफ़ा में ज़ार-ओ-क़तार रोया मन मन का इक क़दम था, जब वापसी हुई थी अज़हर ! जुदाई उन की, मैं दिल-फ़िगार रोया दरबार-ए-मुस्तफ़ा में ज़ार-ओ-क़तार रोया अपनी जफ़ाएँ सोचीं, मैं बार-बार रोया शायर: डॉ. मुहम्मद अज़हर ख़ालिद ना'त-ख़्वाँ: अतहर जलाली अंज़र जलाली darbaar-e-mustafa me.n zaar-o-qataar roya apni zafaae.n sochi.n, mai.n baar-baar roya

मोहब्बत में अपनी गुमा या इलाही / Mohabbat Mein Apni Guma Ya Ilahi

मोहब्बत में अपनी गुमा, या इलाही ! न पाऊँ मैं अपना पता, या इलाही ! रहूँ मस्त-ओ-बेख़ुद मैं तेरी विला में पिला जाम ऐसा पिला, या इलाही ! मैं बेकार बातों से बच के हमेशा करूँ तेरी हम्द-ओ-सना, या इलाही ! मेरे अश्क बहते रहें, काश ! हर-दम तेरे ख़ौफ़ से, या ख़ुदा या इलाही ! तेरे ख़ौफ़ से, तेरे डर से हमेशा मैं थरथर रहूँ काँपता, या इलाही ! मेरे दिल से दुनिया की चाहत मिटा कर कर उल्फ़त में अपनी फ़ना, या इलाही ! तू अपनी विलायत की ख़ैरात दे दे मेरे ग़ौस का वासिता, या इलाही ! गुनाहों ने मेरी कमर तोड़ डाली मेरा हश्र में होगा क्या, या इलाही ! गुनाहों के अमराज़ से नीम-जाँ हूँ प-ए-मुर्शिदी दे शिफ़ा, या इलाही ! बना दे मुझे नेक नेकों का सदक़ा गुनाहों से हर-दम बचा, या इलाही ! मेरा हर 'अमल बस तेरे वासिते हो कर इख़्लास ऐसा 'अता, या इलाही ! 'इबादत में गुज़रे मेरी ज़िंदगानी करम हो करम, या ख़ुदा या इलाही ! मुसलमाँ है 'अत्तार तेरी 'अता से हो ईमान पर ख़ातिमा, या इलाही ! शायर: मुहम्मद इल्यास अत्तार क़ादरी ना'त-ख़्वाँ: हाजी मुश्ताक़ अत्तारी आसिफ़ अत्तारी mohabbat me.n

या रसूलल्लाह मैं कब तक करूँ अब इंतिज़ार / Ya Rasoolallah Main Kab Tak Karun Ab Intizar

या रसूलल्लाह ! मैं कब तक करूँ अब इंतिज़ार जल्द दिखला दीजिए ना सब्ज़-गुंबद की बहार या रसूलल्लाह ! मैं कब तक करूँ अब इंतिज़ार एक मैं हूँ हाज़िरी की आस सीने में लिए और कोई जा रहा है तेरे दर पर बार बार या रसूलल्लाह ! मैं कब तक करूँ अब इंतिज़ार बा-ख़बर हो तुम मेरे हालात से, मैं क्या कहूँ कैफ़ियत इस क़ल्ब-ए-मुज़्तर की है तुम पर आशकार या रसूलल्लाह ! मैं कब तक करूँ अब इंतिज़ार हाज़िरी की आरज़ू में रोता हूँ सुब्ह-ओ-मसा अब बुला लो जल्द मुझ को, ऐ शह-ए-'आली-वक़ार ! या रसूलल्लाह ! मैं कब तक करूँ अब इंतिज़ार मुफ़्लिसी की बेड़ियाँ बढ़ने नहीं देते क़दम कोई सूरत कीजिए ना, दो जहाँ के ताजदार ! या रसूलल्लाह ! मैं कब तक करूँ अब इंतिज़ार ऐ मदीने जाने वालो ! 'अर्ज़ कर देना सलाम और कहना हाज़िरी को है दीवाना बे-क़रार या रसूलल्लाह ! मैं कब तक करूँ अब इंतिज़ार मौत आए तेरे दर पर और मदफ़न हो बक़ी' आरज़ू शौक़-ए-फ़रीदी की है, ऐ 'आली-वक़ार ! या रसूलल्लाह ! मैं कब तक करूँ अब इंतिज़ार शायर: मुहम्मद शौक़ीन नवाज़ शौक़ फ़रीदी ना'त-ख़्वाँ: ज़ोहैब अशरफ़ी ya rasoolallah ! mai.n kab tak karu.n a

सर है ख़म हाथ मेरा उठा है | या ख़ुदा तुझ से मेरी दुआ है / Sar Hai Kham Haath Mera Utha Hai | Ya Khuda Tujh Se Meri Dua Hai

सर है ख़म, हाथ मेरा उठा है या ख़ुदा ! तुझ से मेरी दु'आ है फ़ज़्ल की, रहम की इल्तिजा है या ख़ुदा ! तुझ से मेरी दु'आ है क़ल्ब में याद, लब पर सना है मेरे हर दर्द की ये दवा है कौन दुखियों का तेरे सिवा है या ख़ुदा ! तुझ से मेरी दु'आ है हुब्ब-ए-दुनिया में दिल फँस गया है नफ़्स-ए-बद-कार हावी हुआ है हाए ! शैताँ भी पीछे पड़ा है या ख़ुदा ! तुझ से मेरी दु'आ है हर गुनह से बचा मुझ को, मौला ! नेक ख़स्लत बना मुझ को, मौला ! तुझ को रमज़ान का वासिता है या ख़ुदा ! तुझ से मेरी दु'आ है 'अफ़्व-ओ-रहमत का बख़्शिश का साइल हूँ निहायत गुनहगार-ओ-ग़ाफ़िल मेरा सब हाल तुझ पर खुला है या ख़ुदा ! तुझ से मेरी दु'आ है हूँ ब-ज़ाहिर बड़ा नेक सूरत कर भी दे मुझ को अब नेक सीरत ज़ाहिर अच्छा है, बातिन बुरा है या ख़ुदा ! तुझ से मेरी दु'आ है मग़्फ़िरत का हूँ तुझ से सुवाली फेरना अपने दर से न ख़ाली मुझ गुनहगार की इल्तिजा है या ख़ुदा ! तुझ से मेरी दु'आ है या ख़ुदा ! माह-ए-रमज़ाँ के सदक़े सच्ची तौबा की तौफ़ीक़ दे दे नेक बन जाऊँ जी चाहता है या ख़ुदा ! तुझ से मेरी दु'आ है मैं ने माना कि सब से बु

तेरा रुत्बा ख़दीज-तुल-कुबरा / Tera Rutba Khadija-Tul-Kubra

तेरा रुत्बा, ख़दीज-तुल-कुबरा ! ख़ूब आ'ला, ख़दीज-तुल-कुबरा ! रोज़ तोशा हिरा पे ले जाना वाह ! तेरा, ख़दीज-तुल-कुबरा ! सब से पहले क़ुबूल-ए-दीन किया ऐ मुसफ़्फ़ा ख़दीज-तुल-कुबरा ! वक़्फ़-ए-दीन-ए-रसूल था तेरा लम्हा लम्हा, ख़दीज-तुल-कुबरा ! हर क़दम मुस्तफ़ा के साथ रहीं ऐ मुज़क्का ख़दीज-तुल-कुबरा ! रब ने तुम पर सलाम भेजा है तुम हो यकता, ख़दीज-तुल-कुबरा ! 'ऐन-ए-सुन्नत रहा तेरा ला-रैब हर तरीक़ा, ख़दीज-तुल-कुबरा ! मुफ़्लिसों को नवाज़ते रहना तेरा शेवा, ख़दीज-तुल-कुबरा ! तुम को जन्नत का ज़र-निगार महल रब ने बख़्शा, ख़दीज-तुल-कुबरा ! बर-लब-ए-ख़ल्क़त-ए-दो-'आलम है तेरा चर्चा, ख़दीज-तुल-कुबरा ! पेश मिन-जानिब-ए-मुशाहिद है ये क़सीदा, ख़दीज-तुल-कुबरा ! शायर: डॉ. मुहम्मद हुसैन मुशाहिद रज़वी ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी tera rutba, KHadija-tul-kubra ! KHoob aa'la, KHadija-tul-kubra ! roz tosha hira pe le jaana waah ! tera, KHadija-tul-kubra ! sab se pehle qubool-e-deen kiya ai musaffa KHadija-tul-kubra ! waqf-e-deen-e-rasool tha tera lamha lamha, KHadija-tul-kubra ! har q

क़िस्मत मेरी चमकाइए चमकाइए आक़ा / Qismat Meri Chamkaiye Chamkaiye Aaqa

क़िस्मत मेरी चमकाइए चमकाइए, आक़ा ! मुझ को भी दर-ए-पाक पे बुलवाइए, आक़ा ! सीने में हो का'बा तो बसे दिल में मदीना आँखों में मेरी आप समा जाइए, आक़ा ! बेताब हूँ, बेचैन हूँ दीदार की ख़ातिर लिल्लाह ! मेरे ख़्वाब में आ जाइए, आक़ा ! हर सम्त से आफ़ात-ओ-बलिय्यात ने घेरा मजबूर की इमदाद को अब आइए, आक़ा ! सकरात का 'आलम है, शहा ! दम है लबों पर तशरीफ़ सिरहाने मेरे अब लाइए, आक़ा ! वहशत है, अँधेरा है मेरी क़ब्र के अंदर आ कर ज़रा रौशन इसे फ़रमाइए, आक़ा ! मुजरिम को लिए जाते हैं अब सू-ए-जहन्नम लिल्लाह ! शफ़ा'अत मेरी फ़रमाइए, आक़ा ! 'अत्तार पे, या शाह-ए-मदीना ! हो 'इनायत वीराना-ए-दिल आ के बसा जाइए, आक़ा ! शायर: मुहम्मद इल्यास अत्तार क़ादरी ना'त-ख़्वाँ: असद रज़ा अत्तारी आसिफ़ अत्तारी अल्लामा हाफ़िज़ बिलाल क़ादरी qismat meri chamkaaiye chamkaaiye, aaqa ! mujh ko bhi dar-e-paak pe bulwaaiye, aaqa ! seene me.n ho kaa'ba to base dil me.n madina aankho.n me.n meri aap sama jaaiye, aaqa ! betaab hu.n, bechain hu.n deedaar ki KHaatir lillah ! mere KHwaab me.n aa jaaiye

नबी सय्यिद-उल-अंबिया के बराबर | न पहले था कोई न अब है न होगा / Nabi Syed Ul Ambiya Ke Barabar | Na Pehle Tha Koi Na Ab Hai Na Hoga

कुल अंबिया से अफ़ज़ल 'आली मक़ाम हैं वो अल्लाह भेजता है जिस पर सलाम हैं वो अक़्सा में की इमामत सारे पयम्बरों की सारे पयम्बरों के बेशक इमाम हैं वो नबी सय्यिद-उल-अंबिया के बराबर न पहले था कोई न अब है न होगा मुहम्मद का सानी, मुहम्मद का हम-सर न पहले था कोई न अब है न होगा उन सा, पहले था कोई न अब है न होगा अगर है तो इक ज़ात अल्लाह की है  जो ज़ात-ए-मुहम्मद से आ'ला है वर्ना मुहम्मद से आ'ला, मुहम्मद से बढ़ कर न पहले था कोई न अब है न होगा उन सा, पहले था कोई न अब है न होगा न पहले था कोई न अब है न होगा जिसे हक़ ने बुलवाया 'अर्श-ए-'उला पर हुआ फ़ज़्ल-ए-हक़ से जो मेहमान-ए-दावर ख़ुदा की ख़ुदाई में ऐसा पयम्बर न पहले था कोई न अब है न होगा  उन सा, पहले था कोई न अब है न होगा न पहले था कोई न अब है न होगा ज़ुलैख़ा थीं जिस पे फ़िदा जान-ओ-दिल से वो यूसुफ़ बड़े ख़ूबसूरत थे लेकिन रुख़-ए-मुस्तफ़ा से हसीं रु-ए-अनवर न पहले था कोई न अब है न होगा उन सा, पहले था कोई न अब है न होगा न पहले था कोई न अब है न होगा नबी सारे महबूब हैं किब्रिया के मगर ये भी सच है ब-जुज़ मुस्तफ़ा के हबीब-

सब नबियों में आप मुक़र्रम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम | गुलाब की ताज़गी के जैसा मेरे नबी है शबाब तेरा / Sab Nabiyon Mein Aap Muqarram | Gulab Ki Tazgi Ke Jaisa Mere Nabi Hai Shabab Tera

सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम ! सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम ! सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम ! सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम ! सब नबियों में आप मुक़र्रम, सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम आप सरापा हुस्न-ए-मुजस्सम, सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम आप ने आ कर जीना सिखाया, सोया हुआ जग आ के जगाया आप से ही रौशन है ये 'आलम, सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम गुलाब की ताज़गी के जैसा, मेरे नबी ! है शबाब तेरा जवाब होंगे सभी के लेकिन कोई न होगा जवाब तेरा गुलाब की ताज़गी के जैसा, मेरे नबी ! है शबाब तेरा अँधेरी नगरी में बस रहे थे, कोई ख़बर ना थी रौशनी की लिए हिदायत 'अरब से हम पर तुलू' हुआ आफ़ताब तेरा गुलाब की ताज़गी के जैसा, मेरे नबी ! है शबाब तेरा क़ुरआँ की सूरत 'अमल की सीरत 'अयाँ है ज़ात-ए-रसूल में ही है बंदगी का कोई तो पैकर, जवाब देगी किताब तेरा गुलाब की ताज़गी के जैसा, मेरे नबी ! है शबाब तेरा सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम ! सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम ! सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम ! सल्लल्लाहु 'अलैहि व सल्लम ! नूर-ए-नुबुव्वत सब से पहला रब ने तुम्हारा ही तो बनाया आख़िर

जो मदीने हम भी जाते तो कुछ और बात होती / Jo Madine Hum Bhi Jaate To Kuchh Aur Baat Hoti

जो मदीने हम भी जाते तो कुछ और बात होती कभी लौट कर न आते तो कुछ और बात होती मय-ए-'इश्क़-ए-मुस्तफ़ा हम वहीं पी के मस्त रहते सर-ए-हश्र लड़खड़ाते तो कुछ और बात होती मेरी ज़ीस्त के 'अनासिर दर-ए-मुस्तफ़ा पे चल के मेरा साथ छोड़ जाते तो कुछ और बात होती मेरे आँसुओं पे ना-हक़ न सितारो मुस्कुराओ ये जो तयबा देख पाते तो कुछ और बात होती ये सितारों का तबस्सुम है नज़र-नवाज़ लेकिन जो हुज़ूर मुस्कुराते तो कुछ और बात होती मुझे ज़हर देने वाले बड़े कम-नज़र हैं, आक़ा ! तेरे नाम पर पिलाते तो कुछ और बात होती ये हवा के मस्त झोंके जो इरम से आ रहे हैं यही तयबा हो के आते तो कुछ और बात होती ये फ़रोग़-ए-'इल्म-ओ-दानिश, ये मता-ए-रंग-ए-'आलम यहाँ मुस्तफ़ा न आते तो कुछ और बात होती ये जो ना'त-ए-पाक, बेकल ! सर-ए-बज़्म पढ़ रहे हो कहीं तयबा में सुनाते तो कुछ और बात होती शायर: बेकल उत्साही ना'त-ख़्वाँ: प्रोफ़ेसर अब्दुर्रउफ़ रूफ़ी साबिर रज़ा अज़हरी सुरत jo madine ham bhi jaate to kuchh aur baat hoti kabhi lauT kar na aate to kuchh aur baat hoti mai-e-'ishq-e-mustafa ham wahi.n pee ke m

हाज़िर है दर-ए-दौलत पे गदा सरकार तवज्जोह फ़रमाएँ / Hazir Hai Dar-e-Daulat Pe Gada Sarkar Tawajjoh Farmaein

हाज़िर है दर-ए-दौलत पे गदा, सरकार ! तवज्जोह फ़रमाएँ मोहताज-ए-नज़र है हाल मेरा, सरकार ! तवज्जोह फ़रमाएँ मैं कर के सितम अपनी जाँ पर, क़ुरआन से "जाऊका" सुन कर आया हूँ बहुत शर्मिंदा सा, सरकार ! तवज्जोह फ़रमाएँ मैं कब आने के क़ाबिल था, रहमत ने यहाँ तक पहुँचाया सरकार पे तन-मन-जान फ़िदा, सरकार ! तवज्जोह फ़रमाएँ आँसू आँसू है फ़रियादी और 'अर्ज़-ए-करम हिचकी हिचकी धड़कन धड़कन देती है सदा, सरकार ! तवज्जोह फ़रमाएँ इक मैं ही नहीं, पूरी उम्मत, सारी दुनिया, सारी ख़ल्क़त तकती है रस्ता रहमत का, सरकार ! तवज्जोह फ़रमाएँ शायर: हफ़ीज़ ताइब ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी मुहम्मद आसिफ़ अत्तारी मुहम्मद आरिफ़ अत्तारी haazir hai dar-e-daulat pe gada sarkaar ! tawajjoh farmaae.n mohtaaj-e-nazar hai haal mera sarkaar ! tawajjoh farmaae.n mai.n kar ke sitam apni jaa.n par qur.aan se "jaaooka" sun kar aaya hu.n bahut sharminda saa sarkaar ! tawajjoh farmaae.n mai.n kab aane ke qaabil tha rahmat ne yahaa.n tak pahunchaaya sarkaar pe tan-man-jaan fida sarkaar ! tawajjoh farmaae

मदद कर मेरी दो जहानों के मालिक / Madad Kar Meri Do Jahanon Ke Malik

मदद कर मेरी, दो जहानों के मालिक ! मुसीबत में मैं ने पुकारा है तुझ को गुनाहों की दलदल में मैं फँस गया हूँ निकलने की राहें हुईं बंद सारी वो नय्या मेरी डूबती जा रही है बचा ले उसे तू, ख़ुदावंद-ए-बारी किसी से कोई वास्ता ही नहीं है तेरा जब से, ख़ालिक़ ! सहारा है मुझ को मदद कर मेरी, दो जहानों के मालिक ! मुसीबत में मैंने पुकारा है तुझ को तेरा नाम ह़य्य और क़य्यूम भी है तुझे नींद आती नहीं एक पल भी तू ही थामता है ज़मीं आसमाँ को हवाएँ भी हैं हुक्म से तेरे चलतीं मुझे थाम ले और बचा ले मुझे तू बहुत दूर लगता किनारा है मुझ को मदद कर मेरी, दो जहानों के मालिक ! मुसीबत में मैंने पुकारा है तुझ को तू राज़िक़ है सब का, जहानों के मालिक ! ज़मीं आसमाँ में तेरी बादशाही तू ही बख़्शता है दिनों को उजाले कि रातों को देता है तू ही सियाही क़ुशादा मेरा रिज़्क़ कर दे, ऐ मालिक ! ये कहने को दिल ने उभारा है मुझ को मदद कर मेरी दो जहाँनों के मालिक मुसीबत में मैंने पुकारा है तुझ को तेरी बंदगी तो मेरी ज़िंदगी है मेरी ज़िंदगी का तो हासिल यही है मैं सज्दे पे सज्दे किए जा रहा हूँ ये गर्दन मेरी तेरे दर पर झुकी है