मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा | जमाल-ए-नूर की महफ़िल से परवाना न जाएगा / Madina Chhod Kar Ab Un Ka Deewana Na Jayega | Jamal-e-Noor Ki Mehfil Se Parwana Na Jayega
मर के जीते हैं जो उन के दर पे जाते हैं, हसन ! और जी के मरते हैं जो आते हैं मदीना छोड़ कर मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा जमाल-ए-यार की महफ़िल से परवाना न जाएगा मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा जमाल-ए-नूर की महफ़िल से परवाना न जाएगा मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा बड़ी मुश्किल से आया है पलट कर अपने मर्कज़ पर मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा ये माना ख़ुल्द भी है दिल बहलने की जगह लेकिन मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा नशेमन बाँधना है शाख़-ए-तूबा पर मुक़द्दर का मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा जो आना है तो ख़ुद आए अजल 'उम्रे-ए-अबद ले कर मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा ठिकाना मिल गया है फ़ातिह-ए-महशर के दामन में मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा फ़राज़-ए-'अर्श से अब कौन उतरे फ़र्श-ए-गीती पर मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा दो 'आलम की उमीदों से कहो मायूस हो जाएँ मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा न हो गर दाग़-ए-'इश्क़-ए-मुस्तफ़ा की चाँदनी दिल में ग़ुलाम-ए-बा-वफ़ा महशर में पहचाना न जाएगा हबीब-ए