ज़ात पर उन की नाज़ाँ हैं अहल-ए-नज़र | ख़ूब-रू ख़ूब-सीरत हैं अख़्तर रज़ा | Zaat Par Un Ki Nazan Hain Ahl-e-Nazar | KHoob-roo KHoob-Seerat Hain Akhtar Raza
ज़ात पर उन की नाज़ाँ हैं अहल-ए-नज़र ख़ूब-रू, ख़ूब-सीरत हैं अख़्तर रज़ा पैकर-ए-ज़ोहद-ओ-तक़्वा ज़माना कहे और ताज-ए-शरी'अत हैं अख़्तर रज़ा जो हैं ख़ुद भी वली, जिन के वालिद वली ऐसे नाना कि है नाज़ तक़्वा को भी दादा हामिद रज़ा जिन का सानी नहीं और गुल-ए-आ'ला-हज़रत हैं अख़्तर रज़ा आए गुलशन में वो फूल खिलने लगे कोयल-ओ-क़ुमरी, मैना चहकने लगे डालियाँ, ग़ुंचा-ओ-गुल महकने लगे गुलशन-ओ-गुल की ज़ीनत हैं अख़्तर रज़ा जो भी उन से जुड़ा, रौशनी मिल गई उस के ईमान को ताज़गी मिल गई मिट गई है ख़ुदी, बेख़ुदी मिल गई रहबर-ए-दीन-ओ-मिल्लत हैं अख़्तर रज़ा वो मुसन्निफ़, मुहद्दिस, मुफ़क्किर भी हैं वो मुहक़्क़िक़, मुदब्बिर, मुफ़स्सिर भी हैं वो फ़क़ीह-ए-ज़माँ हैं, मुनाज़िर भी हैं और पीर-ए-तरीक़त हैं अख़्तर रज़ा वो जो महफ़िल में आए समाँ बन गया उन के नूरानी रुख़ से जो पर्दा उठा क्या 'अजम क्या 'अरब हर किसी ने कहा किस-क़दर ख़ूबसूरत हैं अख़्तर रज़ा उन के जैसा न पाओगे मुर्शिद यहाँ छान लो चाहे तुम मिल के सारा जहाँ फ़ख़्र-ए-अज़हर हैं वो, सुन्नियों की वो जाँ और सरापा करामत हैं अख़्तर रज़ा बात उन के जनाज़े की जब भी हुई अल्लाह अल्लाह ! है