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ताजदार-ए-मदीना के जल्वे जिन के दिल में समाए हुए हैं / Tajdar-e-Madina Ke Jalwe Jin Ke Dil Mein Samae Hue Hain

ताजदार-ए-मदीना के जल्वे जिन के दिल में समाए हुए हैं दूर रह कर वो क़ुर्ब-आश्ना हैं, दिल मदीना बनाए हुए हैं मेरे आक़ा की जिन पर नज़र है, दोनों 'आलम की उन को ख़बर है जिन का मक़्सूद उन का ही दर है, सारे असरार पाए हुए हैं जिन को उन की तवज्जोह ने पाला, उन की रहमत ने जिन को नवाज़ा उन गदाओं का क्या पूछते हो, वो ज़माने पे छाए हुए हैं आल-ए-अतहर का सदक़ा 'अता हो, मुफ़्लिसी का हमारी भला हो ऐ सख़ी ! आप के दर पे हम भी दामन-ए-दिल बिछाए हुए हैं मेरी औक़ात कुछ भी नहीं है, ख़ुद मेरी ज़ात कुछ भी नहीं है मेरे सरकार का ये करम है, बात मेरी बनाए हुए हैं आरज़ू-ए-करम दिल में ले कर, ख़ालिद ! उन के सख़ी आस्ताँ पर अग़निया, औलिया, अस्फ़िया सब अपने कासे बढ़ाए हुए हैं शायर: ख़ालिद महमूद नक़्शबंदी ना'त-ख़्वाँ: ज़ुल्फ़िक़ार अली हुसैनी हसनैन रज़ा अत्तारी taajdaar-e-madina ke jalwe jin ke dil me.n samaae hue hai.n door reh kar wo qurb-aashna hai.n, dil madina banaae hue hai.n mere aaqa ki jin par nazar hai, dono 'aalam ki un ko KHabar hai jin ka maqsood un ka hi dar hai, saare asraar paae h

मुझ को तयबा नगर का पता मिल गया / Mujh Ko Taiba Nagar Ka Pata Mil Gaya

मुझ को तयबा नगर का पता मिल गया जब बरेली का अहमद रज़ा मिल गया नार-ए-दोज़ख़ का खटका नहीं अब मुझे हाथ में दामन-ए-मुस्तफ़ा मिल गया आ'ला हज़रत से, ख़्वाजा से और ग़ौस से निस्बतें क्या हुईं कि ख़ुदा मिल गया मुझ को भटका सकेगा न नज्दी कभी जब मेरा वो सनम रहनुमा मिल गया ग़ौस की जब निगाह-ए-विलायत पड़ी डूबी कश्ती मिली, क़ाफ़िला मिल गया मेरे माँ-बाप ने जब दु'आ दी मुझे ना'त पढ़ने का फिर हौसला मिल गया माँ तेरे क़दमों को रोज़ मैं चूम लूँ तेरा क़ुरआन में मर्तबा मिल गया याद आए बहुत असग़र-ए-शीर-ख़्वार जब तसव्वुर को कर्ब-ओ-बला मिल गया दामन-ए-अज़हरी मेरे हाथों में है अब मुझे ख़ुल्द का रास्ता मिल गया और क्या चाहिए बोलो बोलो, नदीम ! जब मुझे वो मुजाहिद मेरा मिल गया शायर: नदीम रज़ा फ़ैज़ी ना'त-ख़्वाँ: नदीम रज़ा फ़ैज़ी mujh ko tayba nagar ka pata mil gaya jab bareilly ka ahmad raza mil gaya naar-e-dozaKH ka khaTka nahi.n ab mujhe haath me.n daaman-e-mustafa mil gaya aa'la hazrat se, KHwaja se aur Gaus se nisbate.n kya hui.n ki KHuda mil gaya mujh ko bhaTka sakega na naj

दुख दर्द मुस्तफ़ा ने सारे मिटा दिए हैं | उन की महक ने दिल के ग़ुंचे खिला दिये हैं तज़मीन के साथ / Dukh Dard Mustafa Ne Sare Mita Diye Hain | Un Ki Mahak Ne Dil Ke Gunche Khila Diye Hain With Tazmeen

दुख-दर्द मुस्तफ़ा ने सारे मिटा दिए हैं आमद ने बुर्ज-ए-क़ैसर-किसरा गिरा दिए हैं वीरान बस्तियों को गुलशन बना दिए हैं उन की महक ने दिल के ग़ुंचे खिला दिए हैं जिस राह चल गए हैं कूचे बसा दिए हैं रूह-उल-अमीं ने देखी रिफ़'अत पे उन की आँखें असरा की शब लगी थी उम्मत पे उन की आँखें है, मोमिनो ! तुम्हारी ग़ुर्बत पे उन की आँखें जब आ गई हैं जोश-ए-रहमत पे उन की आँखें जलते बुझा दिए हैं, रोते हँसा दिए हैं अहमद रज़ा चले जब जन्नत कराने वाजिब आँखें थी सू-ए-का'बा, तयबा पे दिल था राग़िब तूफ़ाँ जो गिर के आया, बोले नबी के नाइब आने दो या डुबो दो अब तो तुम्हारी जानिब कश्ती तुम्हीं पे छोड़ी लंगर उठा दिए हैं महशर के दिन परेशाँ हर एक फ़र्द होगा दोज़ख़ के डर से चेहरों का रंग ज़र्द होगा शाह-ए-उमम के दिल में उम्मत का दर्द होगा अल्लाह क्या जहन्नम अब भी न सर्द होगा रो रो के मुस्तफ़ा ने दरिया बहा दिए हैं अहमद रज़ा की लिक्खी ना'त-ए-रसूल-ए-अकरम जब दाग़ ने पड़ी है मबहूत थे मुजस्सम अपना कलम उठाया, लिक्खा शरर ये उस दम मुल्क-ए-सुख़न की शाही तुम को, रज़ा ! मुसल्लम जिस सम्त आ गए हो सिक्के बिठा दिए हैं ना

ज़माने के हर इक वली ने कहा मुझे तो अली चाहिए / Zamane Ke Har Ek Wali Ne Kaha Mujhe To Ali Chahiye

ज़माने के हर इक वली ने कहा मुझे तो 'अली चाहिए जो हैं हर ज़माने के मुश्किल-कुशा मुझे तो 'अली चाहिए 'अली का है ईमान बचपन से कामिल वो मेरा 'अली पंज-तन में है शामिल मिलेगा जहाँ से नबी का पता मुझे तो 'अली चाहिए मैं सुन्नी हूँ, मुझ को ये निस्बत मिली है निगाहों में मेरे नजफ़ की गली है मुबारक हो तुझ को तेरा रहनुमा मुझे तो 'अली चाहिए 'अली की मोहब्बत है ईमाँ का हिस्सा वहाँ काम आएगा मेरा भरोसा उठूँगा लहद से ये कहता हुआ मुझे तो 'अली चाहिए ये ज़िक्र-ए-'अली है, नहीं बंद होगा मेरे बा'द सारा ज़माना कहेगा ये मीसम ने सूली पे चढ़ कर कहा मुझे तो 'अली चाहिए वो कर्बल की वा'दी, वो शहर-ए-नजफ़ हो कोई भी हो ख़ित्ता, किसी भी तरफ़ हो जलाया है जिस ने दिए से दिया मुझे तो 'अली चाहिए बने जब मुहाजिर और अन्सार भाई नबी की निगाहें 'अली पर फिर आईं तो फ़रमाया भाई 'अली है मेरा मुझे तो 'अली चाहिए मिटा क्या सकेगा हमें ये ज़माना हमारी तरफ़ है नबी का घराना इस उम्मत पे है सय्यिदा की दु'आ मुझे तो 'अली चाहिए ख़ुदाया ! मेरा भी मुक़द्दर जगा दे

क्यूँ आज चाँद तारे आँखें बिछा रहे हैं / Kyun Aaj Chand Tare Aankhen Bichha Rahe Hain

क्यूँ आज चाँद तारे आँखें बिछा रहे हैं मक्का-मदीने वाले तशरीफ़ ला रहे हैं राहों में उन की दुश्मन काँटे बिछा रहे हैं लेकिन हुज़ूर उन को सीने लगा रहे हैं गुलशन हरे भरे हैं, कलियाँ महक रही हैं ख़ुश्बू बता रही है सरकार आ रहे हैं यूसुफ़ की दिल-कशी पर अंगुश्त ही कटी है तेरे नाम पर सहाबा गर्दन कटा रहे हैं जन्नत में जाने का वो रस्ता बना रहे हैं माँ-बाप का जो अपने पाँव दबा रहे हैं अल्लाह ! मेरी उम्मत मेरे हवाले कर दे रो रो के प्यारे आक़ा रब को मना रहे हैं उम्मत का ग़म है कैसा पूछे कोई नबी से सज्दे में प्यारे आक़ा आँसू बहा रहे हैं अल्लाह रे ! ये ताक़त शेर-ए-ख़ुदा की देखो हाथों में अपने बाब-ए-ख़ैबर नचा रहे हैं ग़ौस-उल-वरा की 'अज़मत तू जानता नहीं है फ़रमा के क़ुम बि-इज़्नी मुर्दे जिला रहे हैं साबिर की शान पहले तू देख ले, ऐ नज्दी ! अपना जनाज़ा साबिर ख़ुद ही पढ़ा रहे हैं ऐ काश ! मुझ से कह दे बाद-ए-सबा ये आ कर सक़लैन ! चल मदीना, आक़ा बुला रहे हैं ना'त-ख़्वाँ: सक़लैन वज़ाहत बनारसी kyu.n aaj chaand taare aankhe.n bichha rahe hai.n makka-madine waale tashreef laa rahe hai.n raa

नात पढ़ने की आदत है जो नात पढ़ने की आदत रहेगी / Naat Padhne Ki Aadat Hai Jo Naat Padhne Ki Aadat Rahegi

ना'त पढ़ने की 'आदत है जो, ना'त पढ़ने की 'आदत रहेगी छूटता है तो छूटे कोई, मुस्तफ़ा से मोहब्बत रहेगी उन से हट कर किधर जाएँगे, उन को छोड़ा तो मर जाएँगे मुस्तफ़ा के करम की हमें हर जगह पे ज़रुरत रहेगी हुस्न दुनिया का बर्बाद है, जिस का दिल इस से आबाद है सिर्फ़ आक़ा को दिल में बसा, ज़िंदगी ख़ूबसूरत रहेगी बद्र के और उहुद के शहीद, सब मनाएँगे महशर में 'ईद हर शहादत पे भारी मगर कर्बला की शहादत रहेगी 'इश्क़ का आप इक फूल हैं, जान-ए-रहमत के मक़बूल हैं धूम तो अब क़यामत-तलक आप की, आ'ला हज़रत ! रहेगी न मुसीबत कोई आएगी और ग़ुर्बत कभी आएगी घर के आँगन में जब तक मेरी माँ के क़दमों की बरकत रहेगी पारसा हो या ज़ालिम बने, कोई शो'ऐब ! हाकिम बने हिन्द में ख़्वाजा-ए-हिन्द की देख लेना हुकूमत रहेगी ना'त-ख़्वाँ: शोऐब रज़ा क़ादरी झाँसी naa't pa.Dhne ki 'aadat hai jo, naa't pa.Dhne ki 'aadat rahegi chhooT.ta hai to chhooTe koi, mustafa se mohabbat rahegi un se haT kar kidhar jaaenge, un ko chho.Da to mar jaaenge mustafa ke karam ki hame.n har jagah pe z

जिस पे आक़ा का नक़्श-ए-पा होता / Jis Pe Aaqa Ka Naqsh-e-Pa Hota

जिस पे आक़ा का नक़्श-ए-पा होता मेरा सीना वो रास्ता होता खाते होते मेरे हुज़ूर ख़जूर गुठलियाँ मैं समेटता होता आ रहे होते लेटने को हुज़ूर मैं चटाई बिछा रहा होता मुँह धुलाता मैं सुब्ह-ए-दम उन का शाम को पाँव दाबता होता पेड़ को देखता मैं चलते हुए जब इशारा हुज़ूर का होता मुस्तफ़ा मुस्कुरा रहे होते चाँद क़दमों को चूमता होता ना'त हस्सान पढ़ रहे होते मेरे होंठों पे मरहबा होता मुझ से कहते वो मेरी ना'त पढ़ो काश ! ऐसा कभी हुआ होता मेरी आँखों पे नाज़ करते मलक जब मैं आक़ा को देखता होता मेरे सीने पे हाथ रखते वो जब मेरा दिल तड़प रहा होता उस घड़ी मौत मुझ को आ जाती वक़्त जब भी जुदाई का होता काश ! इमामत मेरे नबी करते जब जनाज़ा मेरा पड़ा होता उन की मीलाद है वजह वर्ना कोई पैदा नहीं हुआ होता उन को कहता कभी न अपनी तरह आईना तू जो देखता होता ना'त-ख़्वाँ: सैफ़ रज़ा कानपुरी jis pe aaqa ka naqsh-e-paa hota mera seena wo raasta hota khaate hote mere huzoor KHajoor guThliyaa.n mai.n sameT.ta hota aa rahe hote leTne ko huzoor mai.n chaTaai bichha raha hota munh dhulaata

जब कर्बला हुसैन का लश्कर निकल गया / Jab Karbala Hussain Ka Lashkar Nikal Gaya

जब कर्बला हुसैन का लश्कर निकल गया जब कर्बला हुसैन का असग़र निकल गया इस्लाम की हयात का नक़्शा बदल गया ज़िक्र-ए-नबी से ज़ीस्त ने पाई है रौशनी नाद-ए-'अली से हर बड़ा तूफ़ान टल गया बोला यज़ीद अब तो मेरी हार हो गई हुर्र लश्कर-ए-हुसैन की जानिब फिसल गया ऐसी नमाज़ जो बनी इस बात की गवाह सब्र-ए-हुसैन ज़ुल्म को ज़िंदा निगल गया तुम तीर मार कर भी गिरे, उठ नहीं सके असग़र तो तीर खा के भी फ़ौरन सँभल गया बच्चों को पलते देखा है माओं की गोद में ज़हरा तुम्हारी गोद में इस्लाम पल गया ज़ैनब तुम्हारे ख़ुत्बे में इक ऐसी आग थी शैतान मुल्क-ए-शाम का पल भर में जल गया ना'त-ख़्वाँ: ज़ैन-उल-आबिदीन कानपुरी jab karbala husain ka lashkar nikal gaya jab karbala husain ka asGar nikal gaya islam ki hayaat ka naqsha badal gaya zikr-e-nabi se zeest ne paai hai raushni naad-e-'ali se har ba.Da toofaan Tal gaya bola yazeed ab to meri haar ho gai hurr lashkar-e-husain ki jaanib phisal gaya aisi namaaz jo bani is baat ki gawaah sabr-e-husain zulm ko zinda nigal gaya tum teer maar kar bhi gire, uT

तेरे नौकर हैं हम या हुसैन / Tere Naukar Hain Hum Ya Hussain

तेरे नौकर हैं हम, या हुसैन ! कर दो नज़र-ए-करम, या हुसैन ! आज तक लोग भूले नहीं तेरे बच्चों का ग़म, या हुसैन ! कर दो नज़र-ए-करम, या हुसैन ! तेरे नौकर हैं हम, या हुसैन ! कर दो नज़र-ए-करम, या हुसैन ! मेरे आक़ा हुसैन ! मेरे मौला हुसैन ! मेरे हादी हुसैन ! मेरे मुर्शिद हुसैन ! शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन सर दाद, न दाद दस्त दर दस्त-ए-यज़ीद हक़्क़ा कि बिना ला इलाह अस्त हुसैन ख़ाक-ए-कर्बल का ए'ज़ाज़ है तेरे नक़्श-ए-क़दम, या हुसैन ! कर दो नज़र-ए-करम, या हुसैन ! तेरे नौकर हैं हम, या हुसैन ! कर दो नज़र-ए-करम, या हुसैन ! मेरे आक़ा हुसैन ! मेरे मौला हुसैन ! मेरे हादी हुसैन ! मेरे मुर्शिद हुसैन ! शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन सर दाद, न दाद दस्त दर दस्त-ए-यज़ीद हक़्क़ा कि बिना ला इलाह अस्त हुसैन तेरे नाना का दीदार हो जब भी निकले ये दम, या हुसैन ! कर दो नज़र-ए-करम, या हुसैन ! तेरे नौकर हैं हम, या हुसैन ! कर दो नज़र-ए-करम, या हुसैन ! मेरे आक़ा हुसैन ! मेरे मौला हुसैन ! मेरे हादी हुसैन ! मेरे मुर्शिद हुसैन ! शाह अस्त हुसैन, बादशाह अस्त हुसैन सर दाद, न दाद दस्त दर दस्त-ए-यज़ीद हक़्क़ा

भटक रहा है क्यूँ आजा हुसैन के दर पर | पता मिलेगा ख़ुदा का हुसैन के दर पर / Bhatak Raha Hai Kyun Aaja Hussain Ke Dar Par | Pata Milega Khuda Ka Hussain Ke Dar Par

कितना सख़ी है दर मेरे आक़ा हुसैन का खाते हैं लोग आज भी सदक़ा हुसैन का मेरे सख़ी हुसैन के सारे गदाओं की रक्खेगा लाज हश्र में नाना हुसैन का भटक रहा है क्यूँ ? आजा हुसैन के दर पर पता मिलेगा ख़ुदा का हुसैन के दर पर भटक रहा है क्यूँ ? आजा किसे पता था फ़ना क्या है और बक़ा क्या है मेरे इमाम ने साबित किया ख़ुदा क्या है यही तो लिक्खा है मौला हुसैन के दर पर पता मिलेगा ख़ुदा का हुसैन के दर पर भटक रहा है क्यूँ ? आजा हुसैन के दर पर भटक रहा है क्यूँ ? आजा हुसैन तेरी 'इबादत पे नाज़ है सब को सर-ए-सिनाँ पे तिलावत पे नाज़ है सब को जभी तो झुकती है दुनिया हुसैन के दर पर पता मिलेगा ख़ुदा का हुसैन के दर पर भटक रहा है क्यूँ ? आजा हुसैन के दर पर भटक रहा है क्यूँ ? आजा नबी के दीन की ख़ातिर सभी लुटा के चले चले जो कर्ब-ओ-बला से तो सर कटा के चले शहादतों का फ़साना हुसैन के दर पर पता मिलेगा ख़ुदा का हुसैन के दर पर भटक रहा है क्यूँ ? आजा हुसैन के दर पर भटक रहा है क्यूँ ? आजा मुहर्रम आता है, लाखों दीवानें इस दर पर ज़माने भर को मिले आब-ओ-दानें इस दर पर नहीं है कोई भी भूका हुसैन के दर पर पता मिलेगा ख़ुद

बहर-ए-हक़ के शनावर पे लाखों सलाम / Bahr-e-Haq Ke Shanawar Pe Lakhon Salam

बहर-ए-हक़ के शनावर पे लाखों सलाम बहर-ए-हिम्मत के गौहर पे लाखों सलाम राकिब-ए-दोश-ए-अनवर पे लाखों सलाम दिलबर-ए-शाह-ए-कौसर पे लाखों सलाम सब्र के 'आली पैकर पे लाखों सलाम या'नी शब्बीर-ओ-शब्बर पे लाखों सलाम कर्बला के मु'अस्कर पे लाखों सलाम सब हुसैनी सिपह-गर पे लाखों सलाम जो मरातिब में हद-दर्जे मुमताज़ हैं अहल-ए-जन्नत के सरवर पे लाखों सलाम शाह-ए-ख़ैबर-शिकन के वो नूर-ए-नज़र सय्यिदा के गुल-ए-तर पे लाखों सलाम दे के सर अपना, बातिल किया सर-निगूँ 'अज़मत-ए-इब्न-ए-हैदर पे लाखों सलाम क़ासिम इब्न-ए-हसन, ग़ाज़ी 'अब्बास पर हम-शबीह-ए-पयम्बर पे लाखों सलाम हम-शबीह-ए-पयम्बर इशारा भी दूँ वो जवाँ-साल अकबर पे लाखों सलाम कौसर-ओ-सलसबील जिस के नाना की मिल्क नन्हे उस प्यासे असग़र पे लाखों सलाम उम्म-ए-'औन-ओ-मुहम्मद की क़ुर्बानियाँ उन के पिसरान-ए-ख़ुशतर पे लाखों सलाम जिन के ख़ुत्बे की हैबत से लर्ज़ां यज़ीद दुख़्तर-ए-मौला-हैदर पे लाखों सलाम जिस ने आल-ए-नबी पर फ़िदा जान की उस के 'आली मुक़द्दर पे लाखों सलाम कर दी सब्र-ओ-रिज़ा की रक़म दास्ताँ उस जवाँ-'अज़्म तेवर पे लाखों सलाम क्या

ये मेरे दिल से पूछिए कहाँ कहाँ हुसैन हैं / Ye Mere Dil Se Puchhiye Kahan Kahan Hussain Hain

ये मेरे दिल से पूछिए कहाँ कहाँ हुसैन हैं जहाँ जहाँ हैं मुस्तफ़ा, वहाँ वहाँ हुसैन हैं लहू जो उन का मिल गया, गुलाब जैसा खिल गया नबी का बाग़ बोल उठा कि बाग़बाँ हुसैन हैं न हर्फ़ कोई आएगा नबी के दीन-ए-पाक पर शरी'अत-ए-मुहम्मदी के पासबाँ हुसैन हैं ज़मीं पे रेंगती हुई यज़ीदियत को क्या ख़बर फ़लक फ़लक को है पता कि आसमाँ हुसैन हैं फ़ना फ़ना यज़ीदियत, बक़ा बक़ा हुसैनियत यज़ीद नार नार है, जिनाँ जिनाँ हुसैन हैं ना'त-ख़्वाँ: असद इक़बाल कलकत्तवी ye mere dil se poochhiye kahaa.n kahaa.n husain hai.n jahaa.n jahaa.n hai.n mustafa, wahaa.n wahaa.n husain hai.n lahu jo un ka mil gaya, gulaab jaisa khil gaya nabi ka baaG bol uTha ki baaGbaa.n husain hai.n na harf koi aaega nabi ke deen-e-paak par sharee'at-e-muhammadi ke paasbaa.n husain hai.n zamee.n pe rengti hui yazeediyat ko kya KHabar falak falak ko hai pata ki aasmaa.n husain hai.n fana fana yazeediyat, baqa baqa husainiyat yazeed naar naar hai, jinaa.n jinaa.n husain hai.n Naat-Khwaan: Asad Iqbal Kalkattavi Y

हुसैन बेहतरीन है / Hussain Behtareen Hai

मुर्शिद हुसैन ! मौला हुसैन ! रहबर हुसैन ! मौला हुसैन ! मेरा ख़ुदा जिसे औज-ए-कमाल देता है उसे बतूल की चौखट पे डाल देता है परखना हो जो किसी को तो या हुसैन कहो ये नाम वो है जो शजरे खँगाल देता है हुसैन बेहतरीन है, हुसैन बेहतरीन है हुसैन बेहतरीन है, हुसैन बेहतरीन है फ़क़त ज़मीन पर नहीं है 'अर्श पर भी तज़्किरा 'अक़ीदा है, यक़ीन है हुसैन बेहतरीन है, हुसैन बेहतरीन है मुर्शिद हुसैन ! मौला हुसैन ! रहबर हुसैन ! मौला हुसैन ! यज़ीदी सोच सोच कर इसी अलम में मर गया कि सर तो मिल गया हमें मगर न साथ मिल सका जहाँ में जिस से पूछिए, यही कहेगा बरमला यज़ीद बद-तरीन है हुसैन बेहतरीन है, हुसैन बेहतरीन है हुसैन इब्न-ए-मुर्तज़ा हुसैन जान-ए-फ़ातिमा हुसैन अख़ी-ए-मुज्तबा हुसैन शाह-ए-कर्बला हुसैन फ़ख़्र-ए-मुस्तफ़ा हुसैन शेर-ए-किब्रिया हुसैन शाह ख़ुल्द का हुसैन दीन की पनाह तो फिर कहें न क्यूँ भला हुसैन हुसैन हुसैन दूसरा नहीं जवान लाडला हुसैन का लहू-लुहान है और इक तरफ़ पड़ा है लाडला जो बे-ज़बान है मगर ज़बान पर शना-ए-ख़ालिक़-ए-जहान है वो शाह-ए-साबिरीन है हुसैन बेहतरीन है, हुसैन बेहतरीन है शाह-ए-कर्बला