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मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा | जमाल-ए-नूर की महफ़िल से परवाना न जाएगा / Madina Chhod Kar Ab Un Ka Deewana Na Jayega | Jamal-e-Noor Ki Mehfil Se Parwana Na Jayega

मर के जीते हैं जो उन के दर पे जाते हैं, हसन ! और जी के मरते हैं जो आते हैं मदीना छोड़ कर मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा जमाल-ए-यार की महफ़िल से परवाना न जाएगा मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा जमाल-ए-नूर की महफ़िल से परवाना न जाएगा मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा बड़ी मुश्किल से आया है पलट कर अपने मर्कज़ पर मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा ये माना ख़ुल्द भी है दिल बहलने की जगह लेकिन मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा नशेमन बाँधना है शाख़-ए-तूबा पर मुक़द्दर का मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा जो आना है तो ख़ुद आए अजल 'उम्रे-ए-अबद ले कर मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा ठिकाना मिल गया है फ़ातिह-ए-महशर के दामन में मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा फ़राज़-ए-'अर्श से अब कौन उतरे फ़र्श-ए-गीती पर मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा दो 'आलम की उमीदों से कहो मायूस हो जाएँ मदीना छोड़ कर अब उन का दीवाना न जाएगा न हो गर दाग़-ए-'इश्क़-ए-मुस्तफ़ा की चाँदनी दिल में ग़ुलाम-ए-बा-वफ़ा महशर में पहचाना न जाएगा हबीब-ए

ज़ात पर उन की नाज़ाँ हैं अहल-ए-नज़र | ख़ूब-रू ख़ूब-सीरत हैं अख़्तर रज़ा | Zaat Par Un Ki Nazan Hain Ahl-e-Nazar | KHoob-roo KHoob-Seerat Hain Akhtar Raza

ज़ात पर उन की नाज़ाँ हैं अहल-ए-नज़र ख़ूब-रू, ख़ूब-सीरत हैं अख़्तर रज़ा पैकर-ए-ज़ोहद-ओ-तक़्वा ज़माना कहे और ताज-ए-शरी'अत हैं अख़्तर रज़ा जो हैं ख़ुद भी वली, जिन के वालिद वली ऐसे नाना कि है नाज़ तक़्वा को भी दादा हामिद रज़ा जिन का सानी नहीं और गुल-ए-आ'ला-हज़रत हैं अख़्तर रज़ा आए गुलशन में वो फूल खिलने लगे कोयल-ओ-क़ुमरी, मैना चहकने लगे डालियाँ, ग़ुंचा-ओ-गुल महकने लगे गुलशन-ओ-गुल की ज़ीनत हैं अख़्तर रज़ा जो भी उन से जुड़ा, रौशनी मिल गई उस के ईमान को ताज़गी मिल गई मिट गई है ख़ुदी, बेख़ुदी मिल गई रहबर-ए-दीन-ओ-मिल्लत हैं अख़्तर रज़ा वो मुसन्निफ़, मुहद्दिस, मुफ़क्किर भी हैं वो मुहक़्क़िक़, मुदब्बिर, मुफ़स्सिर भी हैं वो फ़क़ीह-ए-ज़माँ हैं, मुनाज़िर भी हैं और पीर-ए-तरीक़त हैं अख़्तर रज़ा वो जो महफ़िल में आए समाँ बन गया उन के नूरानी रुख़ से जो पर्दा उठा क्या 'अजम क्या 'अरब हर किसी ने कहा किस-क़दर ख़ूबसूरत हैं अख़्तर रज़ा उन के जैसा न पाओगे मुर्शिद यहाँ छान लो चाहे तुम मिल के सारा जहाँ फ़ख़्र-ए-अज़हर हैं वो, सुन्नियों की वो जाँ और सरापा करामत हैं अख़्तर रज़ा बात उन के जनाज़े की जब भी हुई अल्लाह अल्लाह ! है

दर-ए-नबी पर पड़ा रहूँगा पड़े ही रहने से काम होगा | Dar-e-Nabi Par Pada Rahunga Pade Hi Rehne Se Kaam Hoga

दर-ए-नबी पर पड़ा रहूँगा, पड़े ही रहने से काम होगा कभी तो क़िस्मत खुलेगी मेरी, कभी तो मेरा सलाम होगा किए ही जाऊँगा 'अर्ज़-ए-मतलब, मिलेगा जब तक न दिल का मतलब न शाम-ए-मतलब की सुब्ह होगी, न ये फ़साना तमाम होगा इसी तवक़्क़ो' पे जी रहा हूँ, यही तमन्ना जिला रही है निगाह-ए-लुत्फ़-ओ-करम न होगी, तो मुझ को जीना हराम होगा ख़िलाफ़-ए-मा'शूक़ कुछ हुआ है न कोई 'आशिक़ से काम होगा ख़ुदा भी होगा उधर ही, ऐ दिल ! जिधर वो 'आली-मक़ाम होगा जो दिल से है माइल-ए-पयंबर, ये उस की पहचान है मुक़र्रर कि हर दम उस बे-नवा के लब पर दुरूद होगा सलाम होगा मरीज़-ए-फ़ुर्क़त जिएगा क्यूँकर, जिया तो जीना हराम होगा न चैन होगा, ब-रंग-ए-बिस्मिल तड़प तड़प कर तमाम होगा हुई जो कौसर पे बारयाबी तो कैफ़ -ए-बेकस की धज ये होगी बग़ल में मीना, नज़र में साक़ी, ख़ुशी से हाथों में जाम होगा शायर: आलमगीर ख़ान कैफ़ संदर्भ: दीवान-ए-कैफ़ ना'त-ख़्वाँ: ज़ुल्फ़िक़ार अली हुसैनी dar-e-nabi par pa.Da rahunga, pa.De hi rehne se kaam hoga kabhi to qismat khulegi meri, kabhi to mera salaam hoga kiye hi jaaunga 'arz-e-matl

दर-ए-नबी पर ये उम्र बीते | ये रिफ़अत-ए-ज़िक्र-ए-मुस्तफ़ा है / Dar-e-Nabi Par Ye Umr Beete | Ye Rifat-e-Zikr-e-Mustafa Hai

दर-ए-नबी पर ये 'उम्र बीते, हो हम पे लुत्फ़-ए-दवाम ऐसा मदीने वाले कहें मक़ामी हो उन के दर पर क़याम ऐसा ये रिफ़'अत-ए-ज़िक्र-ए-मुस्तफ़ा है, नहीं किसी का मक़ाम ऐसा जो बा'द ज़िक्र-ए-ख़ुदा है अफ़ज़ल, है ज़िक्र-ए-ख़ैर-उल-अनाम ऐसा जो ग़म-ज़दों को गले लगा ले, बुरों को दामन में जो छुपा ले है दूसरा कौन इस जहाँ में सिवा-ए-ख़ैर-उल-अनाम ऐसा बिलाल तुझ पर निसार जाऊँ कि ख़ुद नबी ने तुझे ख़रीदा नसीब हो तो नसीब ऐसा, ग़ुलाम हो तो ग़ुलाम ऐसा नमाज़ अक़्सा में जब पढ़ाई तो अंबिया और रुसुल ये बोले नमाज़ हो तो नमाज़ ऐसी, इमाम हो तो इमाम ऐसा लबों पे नाम-ए-नबी जब आया, गुरेज़-पा हादिसों को पाया जो टाल देता है मुश्किलों को, मेरे नबी का है नाम ऐसा मुझ ही को देखो वो बे-तलब ही नवाज़ते जा रहे हैं पैहम न कोई मेरा 'अमल है ऐसा, न कोई मेरा है काम ऐसा हुसैन क़ुरआँ के हैं वो क़ारी, जो नोक-ए-नेज़ा पे भी ये बोले सिवा ख़ुदा के न सर झुकाना, दिया जहाँ को पयाम ऐसा हैं जितने 'अक़्ल-ओ-ख़िरद के दा'वे, सब उन की गर्द-ए-सफ़र में गुम हैं कोई भी अब तक समझ न पाया, है मुस्तफ़ा का मक़ाम ऐसा मैं, ख़ालिद ! अपने नबी पे क़ुर्बां, है जिन का

मदीना छोड़ आए हैं / Madina Chhod Aaye Hain | Madina Chor Aaye Hain

मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए, अपनी दुनिया छोड़ आए हैं हमारे पास जितना था असासा छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं ख़ुदा का घर भी छूटा है नबी का आस्ताना भी लगा है दोहरा ग़म, मक्का-मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं अभी तक दिल वहीं पर है, अभी तक जाँ वहीं पर है दिल-ओ-जाँ को वहाँ रोता बिलकता छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीने के दर-ओ-दीवार, रस्ते सब महकते हैं ज़रा सा 'इत्र ले कर मुश्क-ए-नाफ़ा छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं ख़ुदा जाने वो कैसी नूर और किरनों की बस्ती थी अँधेरा है यहाँ पर, हम उजाला छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीना छोड़ आए हैं, मदीना छोड़ आए हैं मदीन

याद जब मुझ को मदीने की फ़ज़ा आती है / Yaad Jab Mujh Ko Madine Ka Faza Aati Hai

याद जब मुझ को मदीने की फ़ज़ा आती है साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है ख़ाक छानें तो रह-ए-'इश्क़-ए-नबी में छानें ज़र्रे ज़र्रे से जहाँ बू-ए-वफ़ा आती है ग़म-ए-अहमद में मेरे दिल से निकलता है धुँवा या उमँडती हुई का'बे से घटा आती है रौज़ा-ए-पाक पे सब ज़ब्त-ए-नफ़स करते हैं इस गुलिस्ताँ में दबे पाँव सबा आती है फ़र्श पर होता है जब ज़िक्र-ए-रसूल-ए-अकरम 'अर्श-ए-हक़ से भी दुरूदों की सदा आती है हूँ ग़ुलामान-ए-मुहम्मद के ग़ुलामों का ग़ुलाम ख़ाक हूँ, ख़ाक को बिछने की अदा आती है दावर-ए-हश्र ने ये कह के मुझे बख़्श दिया ख़ूब तुझ को मेरे प्यारे की सना आती है शायर: अमीर मीनाई ना'त-ख़्वाँ: सय्यिद ज़बीब मसूद yaad jab mujh ko madine ki faza aati hai saans leta hu.n to jannat ki hawa aati hai KHaak chhaane.n to rah-e-'ishq-e-nabi me.n chhane.n zarre zarre se jahaa.n boo-e-wafa aati hai Gam-e-ahmad me.n mere dil se nikalta hai dhunwa ya umanDti hui kaa'be se ghaTa aati hai rauza-e-paak pe sab zabt-e-nafas karte hai.n is gulistaa.n me.n dabe paanw saba aati hai farsh

हाजियो आओ शहंशाह का रौज़ा देखो / Hajiyo Aao Shahanshah Ka Rauza Dekho

हाजियो ! आओ, शहंशाह का रौज़ा देखो का'बा तो देख चुके का'बे का का'बा देखो रुक्न-ए-शामी से मिटी वहशत-ए-शाम-ए-ग़ुर्बत अब मदीने को चलो सुब्ह-ए-दिल-आरा देखो आब-ए-ज़मज़म तो पिया, ख़ूब बुझाईं प्यासें आओ, जूद-ए-शह-ए-कौसर का भी दरिया देखो ज़ेर-ए-मीज़ाब मिले ख़ूब करम के छींटे अब्र-ए-रहमत का यहाँ ज़ोर-ए-बरसना देखो धूम देखी है दर-ए-का'बा पे बेताबों की उन के मुश्ताक़ों में हसरत का तड़पना देखो मिस्ल-ए-परवाना फिरा करते थे जिस शम'अ के गिर्द अपनी उस शम'अ को परवाना यहाँ का देखो ख़ूब आँखों से लगाया है ग़िलाफ़-ए-का'बा क़स्र-ए-महबूब के पर्दे का भी जल्वा देखो वाँ मुती'ओं का जिगर ख़ौफ़ से पानी पाया याँ सियह-कारों का दामन पे मचलना देखो अव्वलीं ख़ाना-ए-हक़ की तो ज़ियाएँ देखीं आख़िरीं बैत-ए-नबी का भी तजल्ला देखो ज़ीनत-ए-का'बा में था लाख 'अरूसों का बनाव जल्वा-फ़रमा यहाँ कौनैन का दूल्हा देखो ऐमन-ए-तूर का था रुक्न-ए-यमानी में फ़रोग़ शो'ला-ए-तूर यहाँ अंजुमन-आरा देखो मेहर-ए-मादर का मज़ा देती है आग़ोश-ए-हतीम जिन पे माँ-बाप फ़िदा याँ करम उन का देखो 'अर्ज़-ए-हाजत में रहा का

फिर मदीने का मुझ को बुलावा मिला | तुम चलो ना चलो मैं चला मैं चला / Phir Madine Ka Mujh Ko Bulawa Mila | Tum Chalo Na Chalo Main Chala Main Chala

मरहबा ! मुक़द्दर आज फिर मुस्कुराया है फिर मुझे मदीने में मेरे शाह ने बुलाया है फिर मदीने का मुझ को बुलावा मिला तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला साया-अफ़्गन हुई रहमत-ए-मुस्तफ़ा तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला फिर मदीने का मुझ को बुलावा मिला तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला कैफ़ सा छा गया, मैं मदीने चला झूमता झूमता मैं मदीने चला तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला फिर मदीने का मुझ को बुलावा मिला तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला मेरे आक़ा का दर होगा पेश-ए-नज़र चाहिए और क्या ? मैं मदीने चला तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला फिर मदीने का मुझ को बुलावा मिला तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला गुंबद-ए-सब्ज़ पर जब पड़ेगी नज़र क्या सुरूर आएगा, मैं मदीने चला तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला फिर मदीने का मुझ को बुलावा मिला तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला सब्ज़-गुंबद का नूर ज़ंग कर देगा दूर पाएगा दिल जिला, मैं मदीने चला तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला फिर मदीने का मुझ को बुलावा मिला तुम चलो ना चलो, मैं चला मैं चला क्या करेगा इधर, बाँध रख़्त-ए-सफ़र चल, 'उबैद-ए-रज़ा ! मैं मदीने चला लुत्फ़ तो

मुद्दआ ज़ीस्त का मैं ने पाया | इक नई नात सुना लूँ तो चलूँ | सय्यिदी अंता हबीबी / Mudda Zeest Ka Main Ne Paya | Ik Nayi Naat Suna Lun To Chalun | Sayyadi Anta Habibi

सय्यिदी अंता हबीबी सय्यिदी अंता हबीबी मुद्द'आ ज़ीस्त का मैं ने पाया रहमत-ए-हक़ ने किया फिर साया मेरे आक़ा ने करम फ़रमाया फिर मदीने का बुलावा आया पहले कुछ अश्क बहा लूँ तो चलूँ इक नई ना'त सुना लूँ तो चलूँ सय्यिदी अंता हबीबी सय्यिदी अंता हबीबी चाँद तारे भी मुझे देखेंगे माह-पारे भी मुझे देखेंगे ख़ुद नज़ारे भी मुझे देखेंगे ग़म के मारे भी मुझे देखेंगे मैं नज़र सब से बचा लूँ तो चलूँ इक नई ना'त सुना लूँ तो चलूँ सय्यिदी अंता हबीबी सय्यिदी अंता हबीबी शुक्र में सर को झुकाने के लिए दाग़ हसरत के मिटाने के लिए बख़्त-ए-ख़्वाबीदा जगाने के लिए उन के दरबार में जाने के लिए अपनी औक़ात बना लूँ तो चलूँ इक नई ना'त सुना लूँ तो चलूँ सय्यिदी अंता हबीबी सय्यिदी अंता हबीबी शुक्र में सर को झुकाने के लिए दाग़ हसरत के मिटाने के लिए बख़्त-ए-ख़्वाबीदा जगाने के लिए उन के दरबार में जाने के लिए इज़्न सरकार से पा लूँ तो चलूँ इक नई ना'त सुना लूँ तो चलूँ सय्यिदी अंता हबीबी सय्यिदी अंता हबीबी दिल ये कहता है मचल जाने दो अश्क कहते हैं कि बह जाने दो सर है बेचैन कि झुक जाने दो रूह कहती ह

आरिज़-ए-शम्स-ओ-क़मर से भी हैं अनवर एड़ियाँ / Aariz-e-Shams-o-Qamar Se Bhi Hain Anwar Ediyan

'आरिज़-ए-शम्स-ओ-क़मर से भी हैं अनवर एड़ियाँ 'अर्श की आँखों के तारे हैं वो ख़ुश-तर एड़ियाँ जा-ब-जा परतव-फ़िगन हैं आसमाँ पर एड़ियाँ दिन को हैं ख़ुर्शीद, शब को माह-ओ-अख़्तर एड़ियाँ नज्म-ए-गर्दूं तो नज़र आते हैं छोटे और वो पाँव 'अर्श पर फिर क्यूँ न हों महसूस लाग़र एड़ियाँ दब के ज़ेर-ए-पा न गुंजाइश समाने को रही बन गया जल्वा कफ़-ए-पा का उभर कर एड़ियाँ उन का मँगता पाँव से ठुकरा दे वो दुनिया का ताज जिस की ख़ातिर मर गए मुन'इम रगड़ कर एड़ियाँ दो क़मर, दो पंजा-ए-ख़ुर, दो सितारे, दस हिलाल उन के तल्वे, पंजे, नाख़ुन, पा-ए-अतहर एड़ियाँ हाए ! उस पत्थर से, उस सीने की क़िस्मत फोड़िए बे-तकल्लुफ़ जिस के दिल में यूँ करें घर एड़ियाँ ताज-ए-रूहुल-क़ुद्स के मोती जिसे सज्दा करें रखती हैं, वल्लाह ! वो पाकीज़ा गौहर एड़ियाँ एक ठोकर में उहुद का ज़लज़ला जाता रहा रखती हैं कितना वक़ार, अल्लाहु अक्बर ! एड़ियाँ चर्ख़ पर चढ़ते ही चाँदी में सियाही आ गई कर चुकी हैं बद्र को टकसाल बाहर एड़ियाँ ऐ रज़ा ! तूफ़ान-ए-महशर के तलातुम से न डर शाद हो ! हैं कश्ती-ए-उम्मत को लंगर एड़ियाँ शायर: इमाम अहमद रज़ा ख़ान ना'त-ख़्वाँ: ओवैस