Posts

रहमतें रब की लुटाने माह-ए-रमज़ाँ आया / Rehmaten Rab Ki Lutane Mah-e-Ramzan Aaya

माह-ए-गुफ़रान ! माह-ए-गुफ़रान ! माह-ए-गुफ़रान ! माह-ए-रमज़ान ! रहमतें रब की लुटाने माह-ए-रमज़ाँ आया जुर्म-ओ-'इस्याँ को मिटाने माह-ए-रमज़ाँ आया माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ आया 'अशरा-ए-रहमत-ए-बारी ने तजल्ली डाली होंगे रहमत के बहाने माह-ए-रमज़ाँ आया रहमतें रब की लुटाने माह-ए-रमज़ाँ आया माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ आया कैसी रौनक़ है मसाजिद में बहार आई है ले के अब दिन ये सुहाने माह-ए-रमज़ाँ आया रहमतें रब की लुटाने माह-ए-रमज़ाँ आया माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ आया आओ ! ए भाईओ आओ ! करो रब को राज़ी बंदों को रब से मिलाने माह-ए-रमज़ाँ आया रहमतें रब की लुटाने माह-ए-रमज़ाँ आया माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ आया बख़्श दे मुझ को, इलाही ! माह-ए-गुफ़राँ के तुफ़ैल मग़्फ़िरत सब को दिलाने माह-ए-रमज़ाँ आया रहमतें रब की लुटाने माह-ए-रमज़ाँ आया माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ आया मुझ को आज़ाद जहन्नम से, इलाही ! कर दे बाग़ जन्नत के दिलाने माह-ए-रमज़ाँ आया रहमतें रब की लुटाने माह-ए-रमज़ाँ आया माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ, माह-ए-रमज़ाँ आया मैंने जो काम ख़ुद हाथों से

अज्जिल अज्जिल या रमदान | अज्जिल अज्जिल या रमज़ान / Ajjil Ajjil Ya Ramadan | Ajjil Ajjil Ya Ramazan

'अज्जिल 'अज्जिल, या रमदान ! जान मेरी तुझ पर क़ुर्बान आ भी जा, माह-ए-सुब्हान ! जल्दी जल्दी आ, रमज़ान ! जब भी आता है रमज़ान जान में आ जाती है जान ख़ूब है रमज़ाँ की भी शान इस में उतरा है क़ुरआन तुझ में बख़्शिश का सामान है ला-रैब मह-ए-ग़ुफ़रान ग्यारह माह का तू सुल्तान फ़ज़्ल-ए-रब से है, रमज़ान ! मौला ! तू बहर-ए-रमज़ान मुझ को बना दे नेक इंसान या रब ! कर दे करम, ईमान नज़'अ में ले न सके शैतान मुझ को बख़्श प-ए-रमज़ान या हन्नानु या मन्नान ! ग़म रमज़ान का दे, रहमान ! अश्क बहाऊँ मैं हर आन मुझ को मदीने में रमज़ान काश, मुयस्सर हो, रहमान ! आ जा, आ भी जा, रमज़ान ! तुझ पे फ़िदा 'अत्तार की जान शायर: मुहम्मद इल्यास अत्तार क़ादरी ना'त-ख़्वाँ: महमूद अत्तारी 'ajjil 'ajjil, ya ramadaan ! jaan meri tujh par qurbaan aa bhi jaa, maah-e-sub.haan ! jaldi jaldi aa, ramzaan ! jab bhi aata hai ramzaan jaan me.n aa jaati hai jaan KHoob hai ramzaa.n ki bhi shaan is me.n utra hai qur.aan tujh me.n baKHshish ka saamaan hai laa-raib mah-e-gufraan gyaarah maa

नज़दीक आ रहा है रमज़ान का महीना / Nazdeek Aa Raha Hai Ramzan Ka Mahina

नज़दीक आ रहा है रमज़ान का महीना साहिल से हाजियों का फिर आ लगा सफ़ीना आक़ा ! न टूट जाए ये दिल का आबगीना बुलवाइए मदीने, दिखलाइए मदीना दिल रो रहे हैं जिन के आँसू छलक रहे हैं उन 'आशिक़ों का सदक़ा, बुलवाइए मदीना हिज्र-ओ-फ़िराक़ में दिल बेताब हो रहे हैं 'उश्शाक़ रो रहे हैं, लो चल दिया सफ़ीना बेताब हो रहा है तयबा की हाज़री को 'आशिक़ तड़प रहा है और फट रहा है सीना रौज़े को देखने को आँखें तरस रही हैं दिखला दो सब्ज़-गुंबद, या सय्यिद-ए-मदीना नज़र-ए-करम ख़ुदा-रा मेरे सियाह दिल पर बन जाएगा ये दम भर में बे-बहा नगीना रंगीनी-ए-जहाँ से दिल टूट जाए मेरा या रब ! मुझे बना दे तू 'आशिक़-ए-मदीना आँसू न थम रहे हों, दिल ख़ून उगल रहा हो जिस वक़्त तेरे दर पर आऊँ, शह-ए-मदीना ! बस आरज़ू यही है क़दमों में जान निकले प्यारे नबी ! हमारा मदफ़न बने मदीना ऐ बेकसों के हमदम ! दुनिया के दूर हों ग़म बस जाए दिल में का'बा, सीना बने मदीना तब्लीग़ सुन्नतों की करता रहूँ हमेशा मरना भी सुन्नतों में हो सुन्नतों में जीना आक़ा ! मेरी हुज़ूरी की आरज़ू हो पूरी हो जाए दूर दूरी, ऐ वाली-ए-मदीना ! उन के दियार में तू कैसे च

सर से पा तक हर अदा है ला-जवाब / Sar Se Paa Tak Har Ada Hai Lajawab

सर से पा तक हर अदा है ला-जवाब ख़ूब-रूयों में नहीं तेरा जवाब हुस्न है बे-मिस्ल, सूरत ला-जवाब मैं फ़िदा तुम आप हो अपना जवाब पूछे जाते हैं 'अमल, मैं क्या कहूँ ? तुम सिखा जाओ, मेरे मौला ! जवाब मेरी हामी है तेरी शान-ए-करीम पुर्सिश-ए-रोज़-ए-क़यामत का जवाब हैं दु'आएँ संग-ए-दुश्मन का 'इवज़ इस क़दर नर्म ऐसे पत्थर का जवाब पलते हैं हम से निकम्मे बेशुमार हैं कहीं इस आस्ताने का जवाब रोज़-ए-महशर एक तेरा आसरा सब सवालों का जवाब-ए-ला-जवाब मैं यद-ए-बैज़ा के सदक़े, ऐ कलीम ! पर कहाँ उन के कफ़-ए-पा का जवाब क्या 'अमल तू ने किए ? उस का सवाल तेरी रहमत चाहिए, मेरा जवाब मेहर-ओ-मह ज़र्रे हैं उन की राह के कौन दे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा का जवाब तुम से उस बीमार को सेहत मिले जिस को दे दें हज़रत-ए-'ईसा जवाब देख, रिज़वाँ ! दश्त-ए-तयबा की बहार मेरी जन्नत का न पाएगा जवाब शोर है लुत्फ़-ओ-'अता का शोर है माँगने वाला नहीं सुनता जवाब जुर्म की पादाश पाते अहल-ए-जुर्म उल्टी बातों का न हो सीधा जवाब पर तुम्हारे लुत्फ़ आड़े आ गए दे दिया महशर में पुर्सिश का जवाब है हसन महव-ए-जमाल-ए-रू-ए-दोस्त ऐ नकीरैन

मैं बंदा-ए-आसी हूँ ख़ता-कार हूँ मौला / Main Banda-e-Aasi Hoon Khata-kar Hoon Maula

बे-नवाओं की नवा सुनता है इल्तिजा सब की ख़ुदा सुनता है हम कि बंदे हैं सना करते हैं वो कि ख़ालिक़ है सदा सुनता है मैं बंदा-ए-'आसी हूँ, ख़ता-कार हूँ, मौला ! लेकिन तेरी रहमत का तलबगार हूँ, मौला ! मैं बंदा-ए-'आसी हूँ, ख़ता-कार हूँ, मौला ! वाबस्ता है उम्मीद मेरी तेरे करम से तेरा हूँ, फ़क़त तेरा परस्तार हूँ, मौला ! मैं बंदा-ए-'आसी हूँ, ख़ता-कार हूँ, मौला ! इक तेरा इशारा हो और आसान हो मुश्किल इक लहर उठे और मैं उस पार हूँ, मौला ! मैं बंदा-ए-'आसी हूँ, ख़ता-कार हूँ, मौला ! इक तेरा इशारा हो और आसान हो मंज़िल इक लहर उठे और मैं उस पार हूँ, मौला ! मैं बंदा-ए-'आसी हूँ, ख़ता-कार हूँ, मौला ! जिन से मैं गुज़र जाऊँ, वो दर खोल दे मुझ में ख़ुद अपने ही रस्ते की मैं दीवार हूँ, मौला ! मैं बंदा-ए-'आसी हूँ, ख़ता-कार हूँ, मौला ! बाहर के उजाले मुझे क्या राह सुझाएँ ! अंदर के अँधेरों में गिरफ़्तार हूँ, मौला ! मैं बंदा-ए-'आसी हूँ, ख़ता-कार हूँ, मौला ! फिर तू मेरे ईमाँ को तवानाई 'अता कर बरसों नहीं सदियों से मैं बीमार हूँ, मौला ! मैं बंदा-ए-'आसी हूँ, ख़ता-कार हूँ, मौला ! ना&

माना कि गुनाहों में गिरफ़्तार हूँ मौला / Mana Ke Gunahon Mein Giraftar Hun Maula

माना कि गुनाहों में गिरफ़्तार हूँ, मौला ! पर तेरी 'अताओं का तलबगार हूँ, मौला ! तू मेरी ख़ताओं को 'अताओं में बदल दे बिन तेरी 'अताओं के मैं लाचार हूँ, मौला ! भटका हुआ राही हूँ, सही राह दिखा दे रंगीनी-ए-दुनिया से मैं बेज़ार हूँ, मौला ! इस रात के सदक़े में ख़ता माफ़ हो मेरी मैं अपनी ख़ताओं पे शरमसार हूँ, मौला ! पहचान, जुनैद ! उन की सना हश्र में होगी निस्बत के बिना उन की मैं बेकार हूँ, मौला ! शायर: जुनैद क़ासमी ना'त-ख़्वाँ: सय्यिद हस्सानुल्लाह हुसैनी maana ki gunaaho.n me.n giraftaar hu.n, maula ! par teri 'ataao.n ka talabgaar hu.n, maula ! tu meri KHataao.n ko 'ataao.n me.n badal de bin teri 'ataao.n ke mai.n laachaar hu.n, maula ! bhaTka huaa raahi hu.n, sahi raah dikha de rangeeni-e-duniya se mai.n bezaar hu.n, maula ! is raat ke sadqe me.n KHata maaf ho meri mai.n apni KHataao.n pe sharamsaar hu.n, maula ! pehchaan, Junaid ! un ki sana hashr me.n hogi nisbat ke bina un ki mai.n bekaar hu.n, maula ! Poet: Junaid Qasmi Naa

मुझे बख़्श दे बे-सबब या इलाही / Mujhe Bakhsh De Be Sabab Ya Ilahi

मुझे बख़्श दे बे-सबब, या इलाही ! न करना कभी भी ग़ज़ब, या इलाही ! गुनाहों ने, हाए ! कहीं का न छोड़ा मैं कब तक फिरूँ ख़्वार अब, या इलाही ! बड़ा हज पे आने को जी चाहता है बुलावा अब आएगा कब, या इलाही ! मैं मक्के में आऊँ, मदीने में आऊँ बना कोई ऐसा सबब, या इलाही ! मैं देखूँ मदीने का गुलशन, दिखा दे तू दश्त-ओ-जिबाल-ए-'अरब, या इलाही ! करम ऐसा कर दे, मदीने में आ कर गुज़ारूँ मैं फिर रोज़-ओ-शब, या इलाही ! जो माँगा वो दे मुझ को, वो भी 'अता कर नहीं कर सका जो तलब, या इलाही ! सभी एक हो जाएँ ईमान वाले पए शाह-ए-'आली-नसब, या इलाही ! ख़ुदाया ! बुरे ख़ातिमे से बचा ले गुनहगार है जाँ ब-लब, या इलाही ! नज़र में मुहम्मद के जल्वे बसे हों चलूँ इस जहाँ से मैं जब, या इलाही ! पस-ए-मर्ग हो रोज़-ए-रौशन की मानिंद मेरी क़ब्र की तीरा-शब, या इलाही ! गुनाहों से 'अत्तार को दे मु'आफ़ी करम हो, न करना ग़ज़ब, या इलाही ! शायर: मुहम्मद इल्यास अत्तार क़ादरी ना'त-ख़्वाँ: महमूद अत्तारी mujhe baKHsh de be-sabab, ya ilaahi ! na karna kabhi bhi Gazab, ya ilaahi ! gunaaho.n ne, h

पाई शब-ए-बरात ये क़िस्मत की बात है | जागूँगा सारी रात इबादत की रात है / Paai Shab-e-Barat Ye Qismat Ki Baat Hai | Jagunga Saari Raat Ibadat Ki Raat Hai

शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! पाई शब-ए-बरात ये क़िस्मत की बात है जागूँगा सारी रात, 'इबादत की रात है पाई शब-ए-बरात ये क़िस्मत की बात है शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! मर्ज़-ए-गुनाह-गारी से तौबा करूँगा मैं फ़रमान-ए-मुस्तफ़ा है, शफ़ा'अत की रात है जागूँगा सारी रात, 'इबादत की रात है पाई शब-ए-बरात ये क़िस्मत की बात है शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! होगी क़बूल सारे तलबगारों की फ़रियाद बस दिल से पुकारो ये समा'अत की रात है जागूँगा सारी रात, 'इबादत की रात है पाई शब-ए-बरात ये क़िस्मत की बात है शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! सज्दे करूँगा, अश्क-ए-नदामत बहाऊँगा सब कुछ मिलेगा मुझ को, 'इनायत की रात है जागूँगा सारी रात, 'इबादत की रात है पाई शब-ए-बरात ये क़िस्मत की बात है शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात ! सारा जहान छोड़ के मस्जिद चलो, नादिम ! रहमत ही रहमतें हैं, ये बरकत की रात है जागूँगा सारी रात, 'इबादत की रात है पाई शब-ए-बरात ये क़िस्मत की बात है शब-ए-बरात ! शब-ए-बरात !

या रब मैं गुनाहगार हूँ तौबा क़बूल हो | तौबा क़बूल हो मेरी तौबा क़बूल हो / Ya Rab Main Gunahgar Hoon Tauba Qabool Ho | Tauba Qabool Ho Meri Tauba Qabool Ho

या रब ! मैं गुनाहगार हूँ, तौबा क़बूल हो 'इस्याँ पे शर्मसार हूँ, तौबा क़बूल हो जाँ-सोज़-ओ-दिल-फ़िगार हूँ, तौबा क़बूल हो सर-ता-पा इंकिसार हूँ, तौबा क़बूल हो तौबा क़बूल हो, मेरी तौबा क़बूल हो तौबा क़बूल हो, मेरी तौबा क़बूल हो गुज़री तमाम 'उम्र मेरी लहव-ओ-ल'अब में नेकी नहीं है कोई 'अमल की किताब में सालेह 'अमल भी कोई नहीं है हिसाब में दस्त-ए-दु'आ बुलंद है तेरी जनाब में तौबा क़बूल हो, मेरी तौबा क़बूल हो तौबा क़बूल हो, मेरी तौबा क़बूल हो 'ऐश-ओ-निशात ही में गुज़ारी है ज़िंदगी हर ज़ाविये से अपनी सँवारी है ज़िंदगी मेरा ख़याल ये था कि जारी है ज़िंदगी लेकिन ये हाल अब है कि भारी है ज़िंदगी तौबा क़बूल हो, मेरी तौबा क़बूल हो तौबा क़बूल हो, मेरी तौबा क़बूल हो तेरे करम को, तेरी 'अता को भुला दिया आ'माल की जज़ा-ओ-सज़ा को भुला दिया ताक़त मिली तो कर्ब-ओ-बला को भुला दिया हर ना-तवाँ की आह-ए-रसा को भुला दिया तौबा क़बूल हो, मेरी तौबा क़बूल हो तौबा क़बूल हो, मेरी तौबा क़बूल हो मैं तो समझ रहा था कि दौलत है जिस के पास उस को न कोई ख़ौफ़ है, उस को न कुछ हरास होगा न ज़िंदगी में किसी वक़्त व

आज रो रो कर तुझे दिल ने पुकारा या ख़ुदा / Aaj Ro Ro Kar Tujhe Dil Ne Pukara Ya Khuda

मेरे मौला ! बख़्श दे, मेरे मौला ! बख़्श दे मेरे मौला ! बख़्श दे, मेरे मौला ! बख़्श दे हो 'अता रहमत का तेरी इक इशारा, या ख़ुदा ! आज रो रो कर तुझे दिल ने पुकारा, या ख़ुदा ! है गुनाहों के समुंदर में फँसी नाव मेरी मेरी कश्ती को 'अता कर दे किनारा, या ख़ुदा ! आज रो रो कर तुझे दिल ने पुकारा, या ख़ुदा ! मेरे मौला ! बख़्श दे, मेरे मौला ! बख़्श दे मेरे मौला ! बख़्श दे, मेरे मौला ! बख़्श दे जो मेरे अपने थे, मौला ! आज बेगाने हैं वो मा-सिवा तेरे नहीं कोई सहारा, या ख़ुदा ! आज रो रो कर तुझे दिल ने पुकारा, या ख़ुदा ! हो 'अता रहमत का तेरी इक इशारा, या ख़ुदा ! आज रो रो कर तुझे दिल ने पुकारा, या ख़ुदा ! सोच कर रोता है दिल कि जो तुझे राज़ी करे है नहीं ऐसा 'अमल कोई हमारा, या ख़ुदा ! आज रो रो कर तुझे दिल ने पुकारा, या ख़ुदा ! ये ग़ुलाम-ए-मुस्तफ़ा और ये जुनैद-ए-क़ासमी देख लें इस शब के सदक़े दर तुम्हारा, या ख़ुदा ! आज रो रो कर तुझे दिल ने पुकारा, या ख़ुदा ! मेरे मौला ! बख़्श दे, मेरे मौला ! बख़्श दे मेरे मौला ! बख़्श दे, मेरे मौला ! बख़्श दे शायर: जुनैद क़ासमी ना'त-ख़्वाँ: हाफ़िज़ ग़ुलाम मुस्तफ़ा

जो रब है मेरा जो सब है मेरा / Jo Rab Hai Mera Jo Sab Hai Mera

अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! सारे जग को उस ने बनाया जो रब है मेरा, जो सब है मेरा मेहर-ओ-माह से उस ने सजाया जो रब है मेरा, जो सब है मेरा अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! उस के सिवा मेरा कोई नहीं है उस पर ईमाँ, उस पर यक़ीं है अपना रस्ता उस ने दिखाया जो रब है मेरा, जो सब है मेरा अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! जिस्म-ओ-मकान-ओ-जिहत से वरा वो 'ऐब और नक़्स से पाक-ओ-जुदा वो माना उसी को अपना ख़ुदाया जो रब है मेरा, जो सब है मेरा अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! सब से बरतर ज़ात है उस की सब से सच्ची बात है उस की मुझ से कमीने को भी निभाया जो रब है मेरा, जो सब है मेरा अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! मैं हूँ बंदा, वो है मौला ज़ात है उस की सब से आ'ला उस ने पाला, उस ने बनाया जो रब है मेरा, जो सब है मेरा अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्लाह ! अल्ला

मरहबा आज चलेंगे शह-ए-अबरार के पास / Marhaba Aaj Chalenge Shah-e-Abrar Ke Paas

मरहबा ! आज चलेंगे शह-ए-अबरार के पास इंशाअल्लाह, पहुँच जाएँगे सरकार के पास पेश करने के लिए कुछ नहीं बद-कार के पास ढेरों 'इस्याँ हैं गुनहगारों के सरदार के पास मिल चुका इज़्न, मुबारक हो मदीने का सफ़र क़ाफ़िले वालो ! चलो चलते हैं सरकार के पास ख़ूब रो रो के वहाँ ग़म का फ़साना कहना ग़म-ज़दो ! आओ चलो अहमद-ए-मुख़्तार के पास मैं गुनहगार गुनाहों के सिवा क्या लाता नेकियाँ होती हैं, सरकार ! निकोकार के पास सर भी ख़म, आँख भी नम, शर्म से पानी पानी क्या करे नज़्र नहीं कुछ भी गुनहगार के पास आँख जब गुंबद-ए-ख़ज़रा का नज़ारा कर ले दम निकल जाए मेरा आप की दीवार के पास 'अर्सा-ए-हश्र में जब रोता बिलकता देखा रहम खाते हुए दौड़ आए वो बद-कार के पास मुजरिमो ! इतना भी घबराओ न महशर में तुम मिल के चलते हैं सभी अपने मददगार के पास दोनों 'आलम की भलाई का सुवाली बन कर इक भिकारी है खड़ा आप के दरबार के पास शाह-ए-वाला ! ये मदीने का बने दीवाना इक भिकारी है खड़ा आप के दरबार के पास अपना ग़म, चश्म-ए-नम और रिक़्क़त-ए-क़ल्बी दीजे इक भिकारी है खड़ा आप के दरबार के पास उल्फ़त-ए-नाब मिले और दिल-ए-बेताब मिले इक भिकारी है