नेमतें बाँटता जिस सम्त वो ज़ीशान गया / Nematen Bant.ta Jis Samt Wo Zeeshan Gaya
ने'मतें बाँटता जिस सम्त वो ज़ीशान गया साथ ही मुंशी-ए-रहमत का क़लम-दान गया ले ख़बर जल्द कि ग़ैरों की तरफ़ ध्यान गया मेरे मौला मेरे आक़ा ! तेरे क़ुर्बान गया आह ! वो आँख कि नाकाम-ए-तमन्ना ही रही हाए ! वो दिल जो तेरे दर से पुर-अरमान गया दिल है वो दिल जो तेरी याद से मा'मूर रहा सर है वो सर जो तेरे क़दमों पे क़ुर्बान गया उन्हें जाना, उन्हें माना, न रखा ग़ैर से काम लिल्लाहिल-हम्द मैं दुनिया से मुसलमान गया और तुम पर मेरे आक़ा की 'इनायत न सही नज्दियो ! कलमा पढ़ाने का भी एहसान गया आज ले उन की पनाह, आज मदद माँग उन से फिर न मानेंगे क़ियामत में अगर मान गया उफ़ रे मुन्किर ये बढ़ा जोश-ए-त'अस्सुब आख़िर भीड़ में हाथ से कम-बख़्त के ईमान गया जान-ओ-दिल, होश-ओ-ख़िरद सब तो मदीने पहुँचे तुम नहीं चलते, रज़ा ! सारा तो सामान गया शायर: इमाम अहमद रज़ा ख़ान ना'त-ख़्वाँ: सय्यिद फ़सीहुद्दीन सुहरवर्दी ओवैस रज़ा क़ादरी ग़ुलाम नूर-ए-मुजस्सम ne'mate.n baanT.ta jis samt wo zeeshaan gaya saath hi munshi-e-rahmat ka qalam-daan gaya le KHabar jald ki Gairo.n ki taraf dhyaan gaya m