Posts

या नबी नुस्ख़ा-ए-तस्ख़ीर को मैं जान गया / Ya Nabi Nuskha-e-Taskheer Ko Main Jaan Gaya

या नबी ! नुस्ख़ा-ए-तस्ख़ीर को मैं जान गया उस को सब मान गए, आप को जो मान गया हर मकाँ वाले को करता हुआ हैरान गया ला-मकाँ में मेरा पैग़ंबर-ए-ज़ीशान गया डूबते डूबते जब उन की तरफ़ ध्यान गया ले के साहिल की तरफ़ ख़ुद मुझे तूफ़ान गया हर बुलंदी मुझे पस्ती की तरह आई नज़र जब मेरा गुंबद-ए-ख़ज़रा की तरफ़ ध्यान गया ग़ैब का जानने वाला उन्हें जब मैं ने कहा बात ईमान की थी कुफ़्र बुरा मान गया 'इश्क़-ए-सरकार-ए-दो-'आलम के सिवा कुछ भी नहीं ज़िंदगी ! तेरी हक़ीक़त को मैं पहचान गया बस इरादे ही से मौजों का हुआ काम तमाम या नबी कहना ही चाहा था कि तूफ़ान गया शुक्र सद-शुक्र कि मौत आई दर-ए-अहमद पर अब मदीने से कहीं जाने का इमकान गया जैसे बरसों की मुलाक़ात रही हो उन से क़ब्र में देखते ही मैं उन्हें पहचान गया हाथ मलती ही रही देख के दोज़ख़, यारो ! ले के जन्नत में हमें तयबा का सुलतान गया देखो किस शान से कर्बल का वो मेहमान गया नेज़े की नोक पे पढ़ता हुआ क़ुरआन गया ना'त-गोई का मैं ममनून-ए-करम हूँ, ए'जाज़ ! ख़ुल्द में ले के मुझे ना'तिया-दीवान गया शायर: मौलाना स'ईद ए'जाज़ कामटवी ना'त-ख़्वाँ: अ...

या रसूलल्लाह या हबीबल्लाह इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना / Ya Rasoolallah Ya Habiballah Ek Nazar-e-Karam Farma Jana

या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना दिन रात तड़पता हूँ लिल्लाह दीदार का जाम पिला जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना तेरे हिज्र में दिल भी जलता है आँखों से ख़ून उबलता है कहीं डूब न जाऊँ तूफ़ाँ में बेकस को पार लगा जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना जीना भी सज़ा है बिन तेरे मरना भी सज़ा है बिन तेरे दुनिया के ग़मों से, मेरे नबी ! बिस्मिल की जान छुड़ा जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना जिस वक़्त नज़ा' का 'आलम हो तक़दीर का चेहरा बरहम हो उस वक़्त अपने दीवाने को अपना दीदार करा जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना मेरी हर कोशिश नाकाम हुई राह तकते 'उम्र तमाम हुई जब मर जाऊँ तो तुर्बत में इक अपनी झलक दिखला जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना ऐ मेरे यारो ग़म-ख़्वारो ! इक मेरी नसीहत लिख लेना मुझे जब दफ़ना के जाने लगो सरकार की ना'त सुना जाना या रसूलल्लाह ! या हबीबल्लाह ! इक नज़र-ए-करम फ़रमा जाना तेरी ना'त कहाँ, मेरी बात कहाँ लाचार श...

वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं / Wo Shehr-e-Mohabbat Jahan Mustafa Hain

वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है वो सोने से कंकर, वो चाँदी सी मिट्टी नज़र में बसाने को जी चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है क़दम जिस ज़मीं पर रखे हैं नबी ने वहाँ खोल रक्खे हैं दर रौशनी ने वो गलियाँ जहाँ चलते थे मेरे आक़ा वहाँ दिल बिछाने को जी चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है जो पूछा नबी ने कि कुछ घर भी छोड़ा तो सिद्दीक़-ए-अकबर के होंटों पे आया वहाँ माल-ओ-दौलत की क्या है हक़ीक़त जहाँ दिल लुटाने को जी चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है जो देखा है रू-ए-जमाल-ए-रिसालत तो बोले 'उमर, मुस्तफ़ा जान-ए-रहमत ! बड़ी आप से दुश्मनी थी मगर अब ग़ुलामी में आने को जी चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है जिहाद-ए-मोहब्बत की आवाज़ गूँजी कहा हन्ज़ला ने ये दुल्हन से अपनी इजाज़त अगर दो तो जाम-ए-शहादत लबों से लगाने को जी चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को जी चाहता है उधर दीद-ए-आक़ा में हर-दम...

मर्तबा ऐसा है आलीशान ज़ुन्नूरैन का / Martaba Aisa Hai Aalishaan Zunnoorain Ka

मर्तबा ऐसा है 'आलीशान ज़ुन्नूरैन का ख़ुद ख़ुदा है मदह-गो 'उस्मान ज़ुन्नूरैन का अल्लाह अल्लाह मर्तबा 'उस्मान ज़ुन्नूरैन का मुस्तफ़ा उन के हैं, ख़ुद रहमान ज़ुन्नूरैन का सारे 'आलम में जिधर, जिस सम्त भी डालो नज़र बट रहा है चार-सू फ़ैज़ान ज़ुन्नूरैन का मन्क़बत की शक्ल में नज़्र-ए-'अक़ीदत के लिए मैं ने, अर्फ़क़ ! चुन लिया 'उनवान ज़ुन्नूरैन का शायर: अर्फ़क़ मियाँ ना'त-ख़्वाँ: मीलाद रज़ा अत्तारी martaba aisa hai 'aalishaan zunoorain ka KHud KHuda hai mad.h-go 'usmaan zunoorain ka allah allah martaba 'usmaan zunoorain ka mustafa un ke hai.n, KHud rahmaan zunoorain ka saare 'aalam me.n jidhar, jis samt bhi Daalo nazar baT raha hai chaar-soo faizaan zunoorain ka manqabat ki shakl me.n nazr-e-'aqeedat ke liye mai.n ne, Arfaq ! chun liya 'unwaan zunoorain ka Poet: Arfaq Miyan Naat-Khwaan: Milad Raza Attari Martaba Aisa Hai Aalishaan Zunnoorain Ka Lyrics | Martaba Aisa Hai Aalishaan Zunnoorain Ka Lyrics in Hindi | Manqabat...

उस्मान उस्मान दिल आप पे क़ुर्बान | अल्लाह का प्यारा है जो दामाद-ए-नबी है / Usman Usman Dil Aap Pe Qurban | Allah Ka Pyara Hai Jo Damad-e-Nabi Hai

ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! ज़ुन्नूरैन ! 'उस्मान ! उस्मान ! दिल आप पे क़ुर्बान 'उस्मान ! उस्मान ! दिल आप पे क़ुर्बान 'उस्मान बिन 'अफ़्फ़ान मेरी जान मेरी जान है कामिलुल-हयाइ-वल-ईमान तेरी शान अल्लाह का प्यारा है, जो दामाद-ए-नबी है 'उस्मान-ए-ग़नी है मेरा 'उस्मान-ए-ग़नी है ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी 'उस्माँ ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी 'उस्माँ ग़नी सरकार-ए-मदीना भी हया करते थे तुझ से ऐ हज़रत-ए-'उस्मान ! तेरी शान बड़ी है 'उस्मान बिन 'अफ़्फ़ान मेरी जान मेरी जान है कामिलुल-हयाइ-वल-ईमान तेरी शान 'उस्मान ! उस्मान ! दिल आप पे क़ुर्बान 'उस्मान ! उस्मान ! दिल आप पे क़ुर्बान करता है ज़माने पे हमेशा वो हुकूमत ख़ैरात जिसे हज़रत-ए-'उस्माँ से मिली है 'उस्मान बिन 'अफ़्फ़ान मेरी जान मेरी जान है कामिलुल-हयाइ-वल-ईमान तेरी शान ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी 'उस्माँ ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी ग़नी 'उस्माँ ग़नी ये राफ़ज़ी क्या जाने भला शान-ए-ग़नी को हैदर से ज़रा पूछो कि क्या शान-ए-ग़नी है 'उस्मान बिन 'अफ़्फ़ान मेरी जान मेरी जान है काम...

फ़िदा कर इश्क़-ए-नबी पर जान | ज़माना याद करेगा / Fida Kar Ishq-e-Nabi Par Jaan | Zamana Yaad Karega

फ़िदा कर 'इश्क़-ए-नबी पर जान मुकम्मल कर ले तू ईमान ज़माना याद करेगा, ज़माना याद करेगा दिन-रात तड़प ये रहती है, ऐ काश ! मदीना जाऊँ मैं अल्ताफ़-ओ-करम की वादी से ता-'उम्र न वापस आऊँ मैं मेरे दिल का है यही अरमान निछावर कर दूँ उन पर जान ज़माना याद करेगा, ज़माना याद करेगा जब याद नबी की आती है, इक कैफ़ का 'आलम होता है जब ज़िक्र-ए-नबी छिड़ जाता है, इक वज्द का मौसम होता है यही तो कहता है क़ुरआन कि आक़ा हैं जान-ए-ईमान ज़माना याद करेगा, ज़माना याद करेगा सरकार से तू है दूर मगर, सरकार तो तुझ से दूर नहीं क्यूँ खोया खोया रहता है, मुख़्तार है तू मजबूर नहीं नबी को पहले दिल से मान नबी पे सब कुछ कर क़ुर्बान ज़माना याद करेगा, ज़माना याद करेगा अस्लाफ़ की है तारीख़ यही, साहिल पे जला दी है कश्ती दौड़ाए हैं घोड़े दरिया पर, क्या 'इश्क़-ए-नबी की मस्ती थी तुम्ही हो वो मर्द-ए-मैदान ज़रा ढूँडो अपनी पहचान ज़माना याद करेगा, ज़माना याद करेगा जो बात थी आ'ला हज़रत में, वो आज किसी हज़रत में नहीं वो 'इश्क़-ए-नबी का पैकर थे, थर्राते थे उन से दुश्मन भी दिया हम को कंज़ुल-ईमान ये है हम पर उन का एहसान ज़मा...

तेरे होते जनम लिया होता / Tere Hote Janam Liya Hota

तेरे होते जनम लिया होता फिर कभी तो तुझे मिला होता काश ! मैं संग-ए-दर तेरा होता तेरे क़दमों को चूमता होता तू चला करता मेरी पलकों पर काश ! मैं तेरा रास्ता होता ज़र्रा होता जो तेरी राहों का तेरे तलवों को छू लिया होता लड़ता फिरता मैं तेरे आ'दा से तेरी ख़ातिर मैं मर गया होता तेरे मस्कन के गिर्द शाम-ओ-सहर बन के मँगता मैं फिर रहा होता तू कभी तो मुझे भी तक लेता तेरे तकने पे बिक गया होता तू कभी तो मेरी ख़बर लेता तेरे कूचे में घर किया होता तू जो आता मेरे जनाज़े पर तेरे होते मैं मर गया होता चाँद होता मैं आसमानों पर तेरी उँगली से कट गया होता होता ताहिर तेरे फ़क़ीरों में तेरी दहलीज़ पर पड़ा होता शायर: डॉ. मुहम्मद ताहिर-उल-क़ादरी ना'त-ख़्वाँ: मीलाद रज़ा क़ादरी मुहम्मद अफ़ज़ल नोशाही अज़मत रज़ा भागलपुरी सक़लैन रशीद tere hote janam liya hota phir kabhi to tujhe mila hota kaash ! mai.n sang-e-dar tera hota tere qadmo.n ko choomta hota tu chala karta meri palko.n par kaash ! mai.n tera raasta hota zarra hota jo teri raaho.n ka tere talwo.n ko chhoo liya hota l...

ऐ सबा नबी से कहना जो मदीने को तू जाए / Aye Saba Nabi Se Kehna Jo Madine Ko Tu Jaye

ऐ सबा ! नबी से कहना जो मदीने को तू जाए तेरे दर की आरज़ू में ये दीवाना मर न जाए तेरे ग़म में काश सरवर ! मेरी ज़िंदगी ये गुज़रे मुझे मौत भी जो आए तेरे शहर में ही आए तपती हुई ज़मीं पर हज़रत बिलाल बोले छूटे न उन का दामन, ये जान जाए जाए कोई मिस्ल-ए-इब्न-ए-हैदर न हुआ है और न होगा जो सितम के तीर खाए और सज्दे में भी जाए बेटी वो मुस्तफ़ा की कितनी 'अज़ीम-तर है जो 'इशा में सर झुकाए और फ़ज्र में उठाए जब ज़िक्र जन्नतों का वा'इज़ के लब पे आए तेरे 'आशिक़ों को, आक़ा ! तेरा शहर याद आए सरकार की नज़र की, क्या बात है 'उमर की वो जिधर जिधर से गुज़रें शैतान भाग जाए जिसे मुस्तफ़ा दु'आ दें, आब-ए-दहन लगा दें फिर शेर वो ख़ुदा का ख़ैबर उखाड़ आए जब ख़ुदकुशी के आगे सूरत नज़र न आए ये मशवरा है मेरा, सज्दे में सर झुकाए वालिद नहीं रहे अब तन्हा मैं रह गया हूँ अब और चाहता हूँ तेरी रहमतों के साए हर 'आशिक़-ए-नबी से कहता है ये शबाहत जिसे देखनी हो जन्नत, वो मदीना देख आए शायर: सय्यिद शबाहत हुसैन ना'त-ख़्वाँ: मुहम्मद अली फ़ैज़ी अहमदुल फ़त्ताह ai saba ! nabi se kehna jo madine ko...

मुक़द्दर जाग उट्ठा है हरम की ख़ाक सर पर है / Muqaddar Jaag Uttha Hai Haram Ki Khak Sar Par Hai

मुक़द्दर जाग उट्ठा है, हरम की ख़ाक सर पर है ज़बाँ पर हम्द-ए-बारी है, नज़र में का'बे का दर है लब्बैक लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक ला शरीका लका लब्बैक इन्नल-ह़म्दा व-न्नि'अमता लका वल्-मुल्क ला शरीका लक अदब से चूमता हूँ संग-ए-अस्वद मैं कि महशर में बताएगा मुनाफ़िक़ कौन है और कौन हक़ पर है लब्बैक लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक ला शरीका लका लब्बैक इन्नल-ह़म्दा व-न्नि'अमता लका वल्-मुल्क ला शरीका लक हतीम-ए-पाक है मीज़ाब है और बंदा-ए-'आसी 'इनायत है शह-ए-दीं की 'अता-ए-रब्ब-ए-अकबर है लब्बैक लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक ला शरीका लका लब्बैक इन्नल-ह़म्दा व-न्नि'अमता लका वल्-मुल्क ला शरीका लक हुआ महसूस जब बोसा लिया रुक्न-ए-यमानी का कि ख़ुश्बू-ए-मुहम्मद से अभी तक ये मु'अत्तर है लब्बैक लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक ला शरीका लका लब्बैक इन्नल-ह़म्दा व-न्नि'अमता लका वल्-मुल्क ला शरीका लक मेरी हर इक दु'आ, मौला ! इजाबत का शरफ़ पाए इजाबत की है मंज़िल और दु'आ-ए-क़ल्ब-ए-मुज़्तर है लब्बैक लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक ला शरीका लका लब्बैक इन्नल-ह़म्दा व-न्नि'अमता लका ...

रब के हुज़ूर सर को झुकाने का वक़्त है / Rab Ke Huzoor Sar Ko Jhukane Ka Waqt Hai

रब के हुज़ूर सर को झुकाने का वक़्त है ऐ मोमिनो ! ख़ुदा को मनाने का वक़्त है मिस्ल-ए-यज़ीद ज़ुल्म किए जाता है पलीद मिस्ल-ए-हुसैन सर को कटाने का वक़्त है उम्मत ये ख़स्ता-हाल तेरी राह तकती है ऐ आमिना के ला'ल ! ये आने का वक़्त है गुस्ताख़ियाँ जो करते हैं शान-ए-रसूल में औक़ात उन को फिर से बताने का वक़्त है जो भौंकते हैं हर घड़ी इस्लाम के ख़िलाफ़ दो चार हाथ उन को लगाने का वक़्त है सदक़ा 'अता हो सय्यिदा ज़हरा के नाम का आक़ा हुज़ूर ! हम को बचाने का वक़्त है ये दौर आप का है, मेरे पीर दस्त-गीर ! नज़र-ए-करम बस एक उठाने का वक़्त है उट्ठो, ऐ मेरी क़ौम के जाँ-बाज़ रहबरो ! नाम-ए-नबी पे सर को कटाने का वक़्त है राजा है तू ही हिन्द का, ऐ ख़्वाजा-ए-मु'ईन ! कुफ़्फ़ार को ये बात बताने का वक़्त है फिर से सता रही है शबाहत को तेरी याद इस को, हुज़ूर ! फिर से बुलाने का वक़्त है शायर: सय्यिद शबाहत हुसैन ना'त-ख़्वाँ: मुहम्मद अली फ़ैज़ी rab ke huzoor sar ko jhukaane ka waqt hai ai momino ! KHuda ko manaane ka waqt hai misl-e-yazeed zulm kiye jaata hai paleed misl-e-husain sar ko kaTaane ka ...