या नबी नुस्ख़ा-ए-तस्ख़ीर को मैं जान गया / Ya Nabi Nuskha-e-Taskheer Ko Main Jaan Gaya
या नबी ! नुस्ख़ा-ए-तस्ख़ीर को मैं जान गया उस को सब मान गए, आप को जो मान गया हर मकाँ वाले को करता हुआ हैरान गया ला-मकाँ में मेरा पैग़ंबर-ए-ज़ीशान गया डूबते डूबते जब उन की तरफ़ ध्यान गया ले के साहिल की तरफ़ ख़ुद मुझे तूफ़ान गया हर बुलंदी मुझे पस्ती की तरह आई नज़र जब मेरा गुंबद-ए-ख़ज़रा की तरफ़ ध्यान गया ग़ैब का जानने वाला उन्हें जब मैं ने कहा बात ईमान की थी कुफ़्र बुरा मान गया 'इश्क़-ए-सरकार-ए-दो-'आलम के सिवा कुछ भी नहीं ज़िंदगी ! तेरी हक़ीक़त को मैं पहचान गया बस इरादे ही से मौजों का हुआ काम तमाम या नबी कहना ही चाहा था कि तूफ़ान गया शुक्र सद-शुक्र कि मौत आई दर-ए-अहमद पर अब मदीने से कहीं जाने का इमकान गया जैसे बरसों की मुलाक़ात रही हो उन से क़ब्र में देखते ही मैं उन्हें पहचान गया हाथ मलती ही रही देख के दोज़ख़, यारो ! ले के जन्नत में हमें तयबा का सुलतान गया देखो किस शान से कर्बल का वो मेहमान गया नेज़े की नोक पे पढ़ता हुआ क़ुरआन गया ना'त-गोई का मैं ममनून-ए-करम हूँ, ए'जाज़ ! ख़ुल्द में ले के मुझे ना'तिया-दीवान गया शायर: मौलाना स'ईद ए'जाज़ कामटवी ना'त-ख़्वाँ: अ...