ताजदार-ए-मदीना के जल्वे जिन के दिल में समाए हुए हैं / Tajdar-e-Madina Ke Jalwe Jin Ke Dil Mein Samae Hue Hain
ताजदार-ए-मदीना के जल्वे जिन के दिल में समाए हुए हैं दूर रह कर वो क़ुर्ब-आश्ना हैं, दिल मदीना बनाए हुए हैं मेरे आक़ा की जिन पर नज़र है, दोनों 'आलम की उन को ख़बर है जिन का मक़्सूद उन का ही दर है, सारे असरार पाए हुए हैं जिन को उन की तवज्जोह ने पाला, उन की रहमत ने जिन को नवाज़ा उन गदाओं का क्या पूछते हो, वो ज़माने पे छाए हुए हैं आल-ए-अतहर का सदक़ा 'अता हो, मुफ़्लिसी का हमारी भला हो ऐ सख़ी ! आप के दर पे हम भी दामन-ए-दिल बिछाए हुए हैं मेरी औक़ात कुछ भी नहीं है, ख़ुद मेरी ज़ात कुछ भी नहीं है मेरे सरकार का ये करम है, बात मेरी बनाए हुए हैं आरज़ू-ए-करम दिल में ले कर, ख़ालिद ! उन के सख़ी आस्ताँ पर अग़निया, औलिया, अस्फ़िया सब अपने कासे बढ़ाए हुए हैं शायर: ख़ालिद महमूद नक़्शबंदी ना'त-ख़्वाँ: ज़ुल्फ़िक़ार अली हुसैनी हसनैन रज़ा अत्तारी taajdaar-e-madina ke jalwe jin ke dil me.n samaae hue hai.n door reh kar wo qurb-aashna hai.n, dil madina banaae hue hai.n mere aaqa ki jin par nazar hai, dono 'aalam ki un ko KHabar hai jin ka maqsood un ka hi dar hai, saare asraar paae h