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हैदर सा ज़माने में सरदार नहीं कोई / Haider Sa Zamane Mein Sardar Nahin Koi

मौला हैदर ! मौला हैदर ! मौला हैदर ! मौला हैदर ! घर घर में ना'रा है, मौला मौला हैदर, मौला मौला हैदर घर घर में ना'रा है या 'अली मोमिन को प्यारा है या 'अली सरताज है ज़हरा का, हसनैन का बाबा है हैदर सा शह-ए-दीं का हुब-दार नहीं कोई हैदर सा ज़माने में सरदार नहीं कोई उस शेर-ए-जली जैसा सालार नहीं कोई हैदर सा ज़माने में सरदार नहीं कोई वो जिस की शुजा'अत पे नाज़ाँ हैं शह-ए-'आलम उस मर्द-ए-क़लंदर सा जर्रार नहीं कोई हैदर सा ज़माने में सरदार नहीं कोई ख़ैबर को जो लर्ज़ा दे, आ'दा को जो तड़पा दे हम ने तो सुनी ऐसी ललकार नहीं कोई हैदर सा ज़माने में सरदार नहीं कोई वो फ़ख़्र-ए-सहाबा है, वो नय्यर-ए-ताबाँ है दुनिया में 'अली जैसा दिलदार नहीं कोई हैदर सा ज़माने में सरदार नहीं कोई हैदर से 'अदावत जो रखता है सुनो लोगो कौनैन में उस जैसा बीमार नहीं कोई हैदर सा ज़माने में सरदार नहीं कोई चौखट से तेरी उठ कर मैं जाऊँ कहाँ, हैदर ! इक तेरे सिवा मेरा ग़म-ख़्वार नहीं कोई मैं शौक़-ए-फ़रीदी हूँ, शैदा-ए-'अली हैदर क़िस्मत का सिकंदर हूँ, नादार नहीं कोई हैदर सा ज़माने में सरदार नहीं ...

क़ल्ब-ओ-जाँ पाते हैं आराम अली कहने से / Qalb-o-Jaan Pate Hain Aaram Ali Kehne Se

शाह-ए-मर्दां, शेर-ए-यज़्दाँ, क़ुव्वत-ए-परवरदिगार ला-फ़ता इल्ला 'अली, ला-सैफ़ इल्ला ज़ुल्फ़िक़ार क़ल्ब-ओ-जाँ पाते हैं आराम 'अली कहने से दूर हो जाते हैं आलाम 'अली कहने से कामयाबी लिया करती है क़दम के बोसे कोई होता नहीं नाकाम 'अली कहने से क़ल्ब-ओ-जाँ पाते हैं आराम 'अली कहने से दूर हो जाते हैं आलाम 'अली कहने से 'अज़मतें करती हैं पेश उस को सलामी पैहम ख़ास हो जाता है हर 'आम 'अली कहने से क़ल्ब-ओ-जाँ पाते हैं आराम 'अली कहने से दूर हो जाते हैं आलाम 'अली कहने से रब ने बख़्शा है उसे काम बनाने का हुनर फिर बने क्यूँ न मेरे काम 'अली कहने से क़ल्ब-ओ-जाँ पाते हैं आराम 'अली कहने से दूर हो जाते हैं आलाम 'अली कहने से बात ये सच है कि अल्लाह ने विलायत वाले औलिया को हैं दिए जाम 'अली कहने से क़ल्ब-ओ-जाँ पाते हैं आराम 'अली कहने से दूर हो जाते हैं आलाम 'अली कहने से फ़र्श-ता-'अर्श हुआ करते हैं उस के चर्चे कोई रहता नहीं गुमनाम 'अली कहने से क़ल्ब-ओ-जाँ पाते हैं आराम 'अली कहने से दूर हो जाते हैं आलाम 'अली कहने से रहमतें लेती...

वफ़ा के पैकर अदा में बरतर लक़ब में हैदर अली अली हैं | हमारे रहबर अली अली हैं / Wafa Ke Paikar Ada Mein Bartar Laqab Mein Haidar Ali Ali Hain | Hamare Rahbar Ali Ali Hain

वफ़ा के पैकर, अदा में बर-तर, लक़ब में हैदर 'अली 'अली हैं नबी की लख़्त-ए-जिगर के शौहर, हमारे रहबर 'अली 'अली हैं तेरा लड़कपन नबी की ख़ातिर, तेरी जवानी निसार उन पर लड़े हैं शेरों के जैसे है सब बहादुरी का मदार उन पर तक़ाज़ा है मेहरबानियों का, ये जान कर दो निसार उन पर ख़िज़ाँ के अक़्वाल दूर रख कर, लुटाऊँ सारी बहार उन पर अकेला लड़ते वो दुश्मनों से कि जैसे लश्कर 'अली 'अली हैं वफ़ा के पैकर, अदा में बर-तर, लक़ब में हैदर 'अली 'अली हैं नबी की लख़्त-ए-जिगर के शौहर, हमारे रहबर 'अली 'अली हैं वो रात हिजरत की सो गए हैं, बे-ख़ौफ़ बिस्तर पे या नबी के चले क़ुबा में अकेले प्यादा, थे पाँव ज़ख़्मी हुए 'अली के ख़ुदा ने उन को बनाया चौथा ख़लीफ़ा ख़ुलफ़ा-ए-राशिदीं में वो हैं ख़लीफ़ा अबू-बकर के, फ़ारूक़-ए-आ'ज़म के और ग़नी के हसन के वालिद, हुसैन के बाबा, बड़ा मुक़द्दर 'अली 'अली हैं वफ़ा के पैकर, अदा में बर-तर, लक़ब में हैदर 'अली 'अली हैं नबी की लख़्त-ए-जिगर के शौहर, हमारे रहबर 'अली 'अली हैं घराना 'आली, मक़ाम आ'ला, है शान ऊँची जुदा 'अली की 'अज़ीम ...

दिल उल्फ़त-ए-सरकार बसाने के लिए है / Dil Ulfat-e-Sarkar Basane Ke Liye Hai

दिल उल्फ़त-ए-सरकार बसाने के लिए है जाँ आप की हुर्मत पे लुटाने के लिए है दिल कहने लगा करते ही रौज़े का नज़ारा ये नक़्श तो आँखों में सजाने के लिए है कितनी बड़ी ने'मत है ये आक़ा का वसीला बंदों को जो मौला से मिलाने के लिए है आती है जो आँखों में नमी ना'त से पहले ये मदह के आदाब सिखाने के लिए है पैग़ाम सुनाती है यही आया-ए-ततहीर 'इज़्ज़त मेरे आक़ा के घराने के लिए है हम उम्मती उन के हैं तो कैसे रहें महरूम जब उन का करम सारे ज़माने के लिए है सरवर ! जो बुलावा नहीं आया कई दिन से ये तेरी तलब और बढ़ाने के लिए है शायर: सरवर हुसैन नक़्शबंदी ना'त-ख़्वाँ: सरवर हुसैन नक़्शबंदी dil ulfat-e-sarkaar basaane ke liye hai jaa.n aap ki hurmat pe luTaane ke liye hai dil kehne laga karte hi rauze ka nazaara ye naqsh to aankho.n me.n sajaane ke liye hai kitni ba.Di ne'mat hai ye aaqa ka waseela bando.n ko jo maula se milaane ke liye hai aati hai jo aankho.n me.n nami naa't se pehle ye mad.h ke aadaab sikhaane ke liye hai paiGaam sunaati hai yahi aaya-e-tat.heer ...

है सदा-ए-ज़मन या हसन या हसन / Hai Sada-e-Zaman Ya Hasan Ya Hasan

हसन को बादशाह-ए-ख़ास-ओ-'आम कहते हैं 'अली का नाइब-ए-क़ाइम-मक़ाम कहते हैं दलील एक ही काफ़ी है उन की 'अज़मत को उन्हें हुसैन भी अपना इमाम कहते हैं है सदा-ए-ज़मन या हसन या हसन ये 'अली का चमन या हसन या हसन राहत-ए-फ़ातिमा, हम-शबीह-ए-नबी मुर्तज़ा की फबन या हसन या हसन लोरियाँ जिस को हूरें सुनाती रहीं क़ुदसियों की लगन या हसन या हसन दुश्मन-ए-जाँ भी ज़ाहिर न होने दिया तू अमीन-ओ-अमन या हसन या हसन छोड़ कर ख़ुत्बा आक़ा उठाएँ जिसे दीन का वो हुसन या हसन या हसन दो गिरोहों की तू ने कराई सुलह 'आफ़ियत का मिशन या हसन या हसन है, ग़नी ! जिस की माँ 'आबिदा ज़ाहिदा बाप ख़ैबर-शिकन या हसन या हसन शायर: मुहम्मद उस्मान ग़नी फ़रीदी ना'त-ख़्वाँ: आज़म क़ादरी hasan ko baadshaah-e-KHaas-o-'aam kehte hai.n 'ali ka naaib-e-qaaim-maqaam kehte hai.n daleel ek hi kaafi hai un ki 'azmat ko unhe.n husain bhi apna imaam kehte hai.n hai sada-e-zaman ya hasan ya hasan ye 'ali ka chaman ya hasan ya hasan raahat-e-faatima, ham-shabih-e-nabi murtaza ki phaban ya ha...

मेरे मालिक तेरी रज़ा के लिए | जान हाज़िर है मुस्तफ़ा के लिए / Mere Malik Teri Raza Ke Liye | Jaan Hazir Hai Mustafa Ke Liye

ख़ुदा की रज़ा चाहते हैं दो 'आलम ख़ुदा चाहता है रज़ा-ए-मुहम्मद मेरे मालिक ! तेरी रज़ा के लिए जान हाज़िर है मुस्तफ़ा के लिए अपने क़दमों प्यारे क़दमों से लिपट कर मुझे मर जाने दे बड़ी हसरत हाई तेडे बूए ते मथा टेकदा टेकदा मर जावाँ तेडे 'इश्क़ दा बाल के मच सोहणा वल सेकदा सेकदा मर जावाँ पेंडा दूरियाँ दा नाल हंजवाँ दे एंज मेचदा मेचदा मर जावाँ होवे वक़्त आख़िर ते मुख सोहणा तेडा वेखदा वेखदा मर जावाँ जान हाज़िर है मुस्तफ़ा के लिए मेरे मालिक ! तेरी रज़ा के लिए नाम सुन के झुका लो सर अपने सय्यिदा ज़हरा की हया के लिए मेरे मालिक ! तेरी रज़ा के लिए खड़े अक़्सा में अंबिया थे सभी दीद-ए-सरदार-ए-अंबिया के लिए मेरे मालिक ! तेरी रज़ा के लिए उन का दीदार ही मैं माँगता हूँ हाथ उठते हैं जब दु'आ के लिए मेरे मालिक ! तेरी रज़ा के लिए ख़ाक-ए-तयबा, तबीबो ! काफ़ी है मिट्टी पाक मदीने दी, मिट्टी पाक मदीने दी अखियाँ दा सुरमा ए सानूँ ख़ाक मदीने दी ख़ाक-ए-तयबा, तबीबो ! काफ़ी है मुझ से बीमार की शिफ़ा के लिए मेरे मालिक ! तेरी रज़ा के लिए कहीं न देखा ज़माने भर में जो कुछ मदीने में जा के देखा तजल्लियों का लगा ह...

भर दो झोली मेरी या मुहम्मद लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली | भर दो झोली मेरी जान-ए-आलम / Bhar Do Jholi Meri Ya Muhammad Laut Kar Main Na Jaunga Khali | Bhar Do Jholi Meri Jaan-e-Aalam

भर दो झोली मेरी, जान-ए-'आलम ! लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली कुछ नवासों का सदक़ा 'अता हो दर पे आया हूँ बन कर सवाली तुम ज़माने के मुख़्तार हो, या नबी ! बेकसों के मददगार हो, या नबी ! सब की सुनते हो अपने हों या ग़ैर हों तुम ग़रीबों के ग़म-ख़्वार हो, या नबी ! भर दो झोली मेरी, जान-ए-'आलम ! लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली हम हैं रंज-ओ-मुसीबत के मारे हुए सख़्त मुश्किल है, ग़म से हैं हारे हुए या नबी ! कुछ ख़ुदा-रा हमें भीक दो दर पे आए हैं दामन पसारे हुए भर दो झोली मेरी, जान-ए-'आलम ! लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली तुम्हारे आस्ताने से ज़माना क्या नहीं पाता कोई भी दर से ख़ाली माँगने वाला नहीं जाता भर दो झोली मेरी, जान-ए-'आलम ! लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली हक़ से पाई वो शान-ए-करीमी मरहबा दोनों-'आलम के वाली ! उस की क़िस्मत का चमका सितारा जिस पे नज़र-ए-करम तुम ने डाली भर दो झोली मेरी, जान-ए-'आलम ! लौट कर मैं न जाऊँगा ख़ाली ज़िंदगी बख़्श दी बंदगी को आबरू दीन-ए-हक़ की बचा ली वो मुहम्मद का प्यारा नवासा जिस ने सज्दे में गर्दन कटा ली जो इब्न-ए-मुर्तज़ा ने किया काम ख़ूब है क़ुर्बानी-ए-हुसैन...

ज़िक्र-ए-अहमद से सीना सजा है | इश्क़ है ये तमाशा नहीं है | ज़िक्र-ए-आक़ा से सीना सजा है / Zikr-e-Ahmad Se Seena Saja Hai | Ishq Hai Ye Tamasha Nahin Hai | Zikr-e-Aaqa Se Seena Saja Hai

ज़िक्र-ए-अहमद से सीना सजा है 'इश्क़ है ये तमाशा नहीं है वो भी दिल कोई दिल है जहाँ में जिस में तस्वीर-ए-तयबा नहीं है ला-मकाँ तक है तेरी रसाई गीत गाती है सारी ख़ुदाई वो जगह ही नहीं दो जहाँ में जिस जगह तेरा चर्चा नहीं है चाँद सूरज सितारों को देखा ख़ुल्द-मंज़र नज़ारों को देखा लौट आई मगर मेरी नज़रें कोई भी तेरे जैसा नहीं है ऐ मेरी मौत ! रुक जा अभी तू फिर चलेंगे जहाँ तू कहेगी अपनी मश्क़-ए-तसव्वुर में तयबा मैं ने जी भर के देखा नहीं है शिद्दत-ए-ग़म से जलता है सीना अब तो हिन्द में मुश्किल है जीना जल्दी, आक़ा ! बुला लो मदीना ज़िंदगी का भरोसा नहीं है हज की दौलत जिसे मिल न पाए जाए जाए वो घर अपने जाए माँ के क़दमों को वो चूम ले जो संग-ए-असवद को चूमा नहीं है ख़ाक-ए-पा-ए-नबी मुँह पे मलना 'इत्र हो मुस्तफ़ा का पसीना उन की चादर का टुकड़ा कफ़न हो और कोई तमन्ना नहीं है हम हुसैनी हैं कर्बल के शैदा दिल कभी भी न होता है मैला कुफ़्र की धमकियों से डरे जो सुन्नियों का कलेजा नहीं है दुश्मन-ए-आ'ला हज़रत से कह दो ख़ैर चाहे तो हम से न उलझे हम ग़ुलामान-ए-अख़्तर रज़ा हैं कोई भी हम से जीता नही...

तेरी चौखट पे मँगता तेरा आ गया | मेरी बिगड़ी बना दे शह-ए-दो-सरा / Teri Chokhat Pe Mangta Tera Aa Gaya | Meri Bigdi Bana De Shah-e-do-sara

तेरी चौखट पे मँगता तेरा आ गया मेरी बिगड़ी बना दे, शह-ए-दो-सरा ! मैं सरापा ख़ता, तू सरापा 'अता मेरी बिगड़ी बना दे, शह-ए-दो-सरा ! मुझ कमीने पे तू ने ये एहसाँ किया माह-ए-रमज़ान में अपना मेहमाँ किया ये तेरा ही करम है तेरी ही 'अता मेरी बिगड़ी बना दे, शह-ए-दो-सरा ! मैं तो क़ाबिल न था, ऐ शह-ए-दो-जहाँ ! मुझ सा 'आसी कहाँ और तेरा दर कहाँ ये तेरा ही करम है तेरी ही 'अता मेरी बिगड़ी बना दे, शह-ए-दो-सरा ! तेरे रौज़े का दीदार जिस ने किया तुझ से मुज़्दा शफ़ा'अत का उस ने लिया मैं भी तो हो गया आज हाज़िर, शहा ! मेरी बिगड़ी बना दे, शह-ए-दो-सरा ! दूर रंज-ओ-अलम सारे कर दे, शहा ! मेरे दामन को भी आज भर दे, शहा ! दर पे आया तेरे भीक लेने गदा मेरी बिगड़ी बना दे, शह-ए-दो-सरा ! तेरे ही सर सजा है शफ़ा'अत का ताज लाज वाले ! तेरे हाथ है मेरी लाज बख़्शवाना मुझे भी ब-रोज़-ए-जज़ा मेरी बिगड़ी बना दे, शह-ए-दो-सरा ! कब पियूँगा मैं शरबत तेरी दीद का अब तो रख ले भरम मेरी उम्मीद का इक झलक ही ख़ुदा-रा दिखा दे, शहा ! मेरी बिगड़ी बना दे, शह-ए-दो-सरा ! बे-सहारा हूँ मैं, ग़म का मारा हूँ मैं लाख पापी ...

तुम से जो गुरेज़ाँ है फ़रज़ाना वो दीवाना / Tum Se Jo Gurezan Hai Farzana Wo Deewana

तुम से जो गुरेज़ाँ है फ़रज़ाना वो दीवाना शैदा जो हुआ तुम पर दीवाना वो फ़रज़ाना आ जा दिल-ए-वीराँ में, तेरा हो ये काशाना लिल्लाह करम फ़रमा, ऐ जल्वा-ए-जानाना ! आँखों से पिला वो मय, सर-मस्त रहूँ जिस से भर दे मेरा पैमाना, ऐ साक़ी-ए-मय-ख़ाना ! वो अब्र-ए-बहार आया, हर शय पे निखार आया ला जल्द, मेरे साक़ी ! दे साग़र-ओ-पैमाना क्या रात के पर्दे से, चुपके से सहर निकली या जान-ए-दिल-आरा ने ज़ुल्फ़ों में किया शाना बद-कार सही लेकिन बंदा हूँ तेरे दर का महरूम न रख मुझ को, ऐ शान-ए-करीमाना ! यूँ थाम के दामन को मचला है सर-ए-महशर देखे कोई अख़्तर का ये नाज़-ए-ग़ुलामाना शायर: मुफ़्ती अख़्तर रज़ा ख़ान ना'त-ख़्वाँ: सय्यिद अब्दुल वसी क़ादरी tum se jo gurezaa.n hai farzaana wo deewana shaida jo huaa tum par deewana wo farzaana aa jaa dil-e-weeraa.n me.n, tera ho ye kaashaana lillah karam farma, ai jalwa-e-jaanaana ! aankho.n se pila wo mai, sar-mast rahu.n jis se bhar de mera paimaana, ai saaqi-e-mai-KHaana ! wo abr-e-bahaar aaya, har shai pe nikhaar aaya laa jald, mere saaqi !...