वो जिस के लिए महफ़िल-ए-कौनैन सजी है फ़िरदौस-ए-बरीं जिस के वसीले से बनी है वो हाश्मी, मक्की, मदनी-उल-'अरबी है वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है अल्लाह का फ़रमाँ, अलम् नश्रह़् लक स़द्रक मंसूब है जिस से, व-रफ़'अना लक ज़िक्रक जिस ज़ात का क़ुरआन में भी ज़िक्र-ए-जली है वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है अहमद है, मुहम्मद है, वो ही ख़त्म-ए-रुसूल है मख़दूम-ओ-मुरब्बी है, वो ही वाली-ए-कुल है उस पर ही नज़र सारे ज़माने की लगी है वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है व-श्शम्सुद्दुहा चेहरा-ए-अनवर की झलक है वलैल सजा गेसू-ए-हज़रत की लचक है 'आलम को ज़िया जिस के वसीले से मिली है वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है मुज़म्मिल-ओ-यासीन व मुदद्स़्स़िर-ओ-त़ाहा क्या क्या नए अल्क़ाब से मौला ने पुकारा क्या शान है उस की, कि जो उम्मी-लक़बी है वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है यासीन-ओ-मुज़म्मिल-ओ-मुदद्स़्स़िर और त़ाहा क्या क्या नए अल्क़ाब से मौला ने पुकारा क्या शान है उस की, कि जो उम्मी-लक़बी है वो मेरा नबी, मेरा नबी, मेरा नबी है वो ज़ात कि जो मज़हर-ए-लौलाक-लमा है जो साहिब-ए-रफ़रफ़ शब-ए-मे'राज हुआ है
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