Posts

मीम-ए-मदीना मारहरा की क़िस्मत है / Meem-e-Madina Marehra Ki Qismat Hai

मीम-ए-मदीना मारहरा की क़िस्मत है इस गुंबद को उस गुंबद से निस्बत है गर्दिश-ए-दौराँ ! हट जा मेरे रस्ते से मेरे सर पर दस्त-ए-शाह-ए-बरकत है चिश्ती पैमाने में है बग़दाद की मय बरकत वाले साक़ी की ये बरकत है शाह-ए-बरकत मेरे नाना-दादा हैं उन से मुझ को दोहरी दोहरी निस्बत है इन के मुर्शिद इन के ऊपर नाज़ करें हाँ हाँ ये भी शान-ए-आ'ला-हज़रत है शहर-ए-बरेली ! तुझ पर फ़ज़्ल है नूरी का आज बना तू मर्कज़-ए-अहल-ए-सुन्नत है ख़ाली झोली ले कर मँगता आए हैं हज़रत-ए-क़ासिम की जानिब से दा'वत है दस्त-ए-करम दाता का लो अब उठता है माँगो माँगो दिल में जो भी हसरत है मुर्शिद दामन भर भर कर लौटाएँगे यही तो उन की प्यारी प्यारी 'आदत है देखो ये कैसा नूरानी चेहरा है मुर्शिद का दीदार भी एक 'इबादत है नज़्मी ! तुम भी पाँव पकड़ लो मुर्शिद के इन क़दमों के नीचे ही तो जन्नत है याँ से जो ख़ाली लौटा ख़ाली ही रहा हाँ हाँ ऐसा शख़्स बड़ा बद-क़िस्मत है शायर: सय्यिद हसनैन मियाँ बरकाती (नज़्मी मारहरवी) ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी meem-e-madina maarehra ki qismat hai is gumbad ko us gumbad se...

कोई मायूस क्यूँ हो अपनी हाजत माँग कर तुझ से / Koi Mayoos Kyun Ho Apni Hajat Mang Kar Tujh Se

कोई मायूस क्यूँ हो अपनी हाजत माँग कर तुझ से मुरादें पाते हैं सब साकिनान-ए-बहर-ओ-बर तुझ से कोई मायूस क्यूँ हो अपनी हाजत माँग कर तुझ से जिसे जो कुछ मुनासिब था वही तू ने उसे बख़्शा किसी ने फ़क़्र पाया और किसी ने माल-ओ-ज़र तुझ से कोई मायूस क्यूँ हो अपनी हाजत माँग कर तुझ से किसी शय से उमीद-ओ-ख़ौफ़ होती ही नहीं उस को समझ में जिस की आ जाए कि है नफ़'-ओ-ज़रर तुझ से कोई मायूस क्यूँ हो अपनी हाजत माँग कर तुझ से मेरे आ'माल को मत देख, देख अपनी 'इनायत को यही इक 'अर्ज़ है, मौला ! मेरी शाम-ओ-सहर तुझ से कोई मायूस क्यूँ हो अपनी हाजत माँग कर तुझ से वो दिल मुझ को 'अता कर जिस में तू हो और न हो कुछ भी तेरा सौदा हो जिस में माँगता हूँ मैं वो सर तुझ से कोई मायूस क्यूँ हो अपनी हाजत माँग कर तुझ से उठाए पलकों से दस्त-ए-दु'आ आठों पहर क्यूँ है तुझे मा'लूम है जो माँगती है चश्म-ए-तर तुझ से कोई मायूस क्यूँ हो अपनी हाजत माँग कर तुझ से दो-'आलम में सिवा तेरे नहीं हाजत-रवा कोई बता फिर किस से माँगूँ मैं न माँगूँ मैं अगर तुझ से कोई मायूस क्यूँ हो अपनी हाजत माँग कर तुझ से रशीद -ए-ख़...

बुलबुल तेरे होंटों पे ये किस का तराना है / Bulbul Tere Honton Pe Ye Kis Ka Tarana Hai

बुलबुल तेरे होंटों पे ये किस का तराना है 'उश्शाक़ की आमद है, मौसम भी सुहाना है बुलबुल तेरे होंटों पे ये किस का तराना है सरकार की आमद है, मौसम भी सुहाना है पूछा न करे कोई ये किस का ज़माना है आक़ा की नुबुव्वत है, आक़ा का ज़माना है सूरज भी पलट आया और चाँद हुआ टुकड़े सरकार की उँगली का क्या ख़ूब निशाना है पैग़ाम-ए-मोहब्बत यूँ आक़ा ने दिया हम को अख़्लाक़ के फूलों से दिल अपना सजाना है दामन में छुपा लेंगे जो हम को सर-ए-महशर वो जान हैं रहमत की, हसनैन के नाना हैं ना'त-ख़्वाँ: क़ारी सरताज आलम सुल्तानपुरी इंतिसाफ़ बस्तवी अलविदा ख़ातून bulbul tere honTo.n pe ye kis ka taraana hai 'ushshaaq ki aamad hai, mausam bhi suhaana hai bulbul tere honTo.n pe ye kis ka taraana hai sarkaar ki aamad hai, mausam bhi suhaana hai poochha na kare koi ye kis ka zamaana hai aaqa ki nubuwwat hai, aaqa ka zamaana hai sooraj bhi palaT aaya aur chaand huaa Tuk.De sarkaar ki ungli ka kya KHoob nishaana hai paiGaam-e-mohabbat yu.n aaqa ne diya ham ko aKHlaaq ke phoolo.n se dil apna ...

मोहे सपना मा दर्शन दिखाए गयो रे मोरे ग़ौस-उल-वरा / Mohe Sapna Ma Darshan Dikhaye Gayo Re More Ghaus-ul-wara

मोहे सपना मा दर्शन दिखाए गयो रे मोरे ग़ौस-उल-वरा मोरा सोते में भाग जगाए गयो रे मोरे ग़ौस-उल-वरा चश्मा बग़दाद का जब लगा आँख पर देखा तयबा नगर जानिब-ए-मक्का जब भी उठी है नज़र देखा तयबा नगर मोरे मन मा मदीना बसाए गयो रे मोरे ग़ौस-उल-वरा ग़म का तूफ़ान था, मैं परेशान था मुझ को बख़्शा सुकूँ टूटी पतवार थी और मैं हैरान था मुझ को बख़्शा सुकूँ मोरी डूबती नय्या तिराए गयो रे मोरे ग़ौस-उल-वरा ग़म की ज़ुल्मत हटी, रात काली कटी और उजाला हुआ रास्ते से मुसीबत की ज़ुल्मत छटी और उजाला हुआ मोरी आशा का दीप जलाए गयो रे मोरे ग़ौस-उल-वरा लब पे या ग़ौस या ग़ौस या ग़ौस है हर नफ़स हर क़दम ये 'अक़ीदत की आवाज़ बे-लौस है हर नफ़स हर क़दम अहल-ए-सुन्नत का ना'रा सिखाए गयो रे मोरे ग़ौस-उल-वरा चाँदनी मुझ को, ए'जाज़ ! फीकी लगे ऐसे अच्छे हैं वो और किरन मुझ को सूरज की धुँदली लगे ऐसे अच्छे हैं वो कैसा नूरी मुखड़वा दिखाए गयो रे मोरे ग़ौस-उल-वरा शायर: अल्लामा सईद एजाज़ कामटवी ना'त-ख़्वाँ: सय्यिद अमीन-उल-क़ादरी मुईनुद्दीन बुलबुल-ए-मुस्तजाब महबूब-ए-मुस्तजाब mohe sapna ma darshan dikhaay...

हम मदीने से अल्लाह क्यूँ आ गए / Hum Madine Se Allah Kyun Aa Gaye

हम मदीने से अल्लाह क्यूँ आ गए क़ल्ब-ए-हैराँ की तस्कीं वहीं रह गई दिल वहीं रह गया, जाँ वहीं रह गई ख़म उसी दर पे अपनी जबीं रह गई याद आते हैं हम को वो शाम-ओ-सहर वो सुकून-ए-दिल-ओ-जान-ओ-रूह-ओ-नज़र ये उन्ही का करम है, उन्ही की 'अता एक कैफ़ियत-ए-दिल-नशीं रह गई अल्लाह अल्लाह ! वहाँ का सुजूद-ओ-क़याम अल्लाह अल्लाह ! वहाँ का दुरूद-ओ-सलाम अल्लाह अल्लाह ! वहाँ का वो कैफ़-ए-दवाम वो सलात-ए-सुकूँ आफ़रीं रह गई जिस जगह सज्दा-रेज़ी की लज़्ज़त मिली जिस जगह हर क़दम उन की रहमत मिली जिस जगह नूर रहता है शाम-ओ-सहर वो फ़लक रह गया, वो ज़मीं रह गई पढ़ के नस्रु-म्मिनल्लाहि-फ़त्हुन-क़रीब जब हुए हम रवाँ सू-ए-कू-ए-हबीब बरकतें, रहमतें साथ चलने लगीं बेबसी ज़िंदगी की यहीं रह गई ज़िंदगानी वहीं, काश ! होती बसर काश, बहज़ाद ! आते न हम लौट कर और पूरी हुई हर तमन्ना मगर ये तमन्ना-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं रह गई शायर: बहज़ाद लख़नवी ना'त-ख़्वाँ: ज़ुल्फ़िक़ार अली हुसैनी ज़ोहैब अशरफ़ी फ़रहान अली क़ादरी ham madine se allah kyu.n aa gae qalb-e-hairaa.n ki taskee.n wahi.n reh gai dil wahi.n reh gaya, jaa.n wahi.n r...

सरापा ख़ता हूँ निगाह-ए-करम हो | मैं सब से बुरा हूँ निगाह-ए-करम हो / Sarapa Khata Hoon Nigah-e-Karam Ho | Main Sab Se Bura Hoon Nigah-e-Karam Ho

सरापा ख़ता हूँ, निगाह-ए-करम हो मैं सब से बुरा हूँ, निगाह-ए-करम हो मुझे माँगने का सलीक़ा नहीं है मगर माँगता हूँ, निगाह-ए-करम हो मैं क्यूँ दर-ब-दर ठोकरें खाऊँ जा कर मैं बे-आसरा हूँ, निगाह-ए-करम हो कहाँ दर-ब-दर ठोकरें खाऊँ जा कर तुम्हारा गदा हूँ, निगाह-ए-करम हो हुज़ूर ! आप से आप को माँगता हूँ फ़क़ीर आप का हूँ, निगाह-ए-करम हो किसी और से मुझ को निस्बत नहीं है मैं सिर्फ़ आप का हूँ, निगाह-ए-करम हो मुनीर आप से और गुज़ारिश करूँ क्या यही चाहता हूँ, निगाह-ए-करम हो मेरी दास्ताँ मुख़्तसर हो रही है मैं बुझता दिया हूँ, निगाह-ए-करम हो निगाह-ए-करम, ऐ पनाह-ए-दो-'आलम ! अमाँ चाहता हूँ, निगाह-ए-करम हो यक़ीनन तेरी रहमतों ने सँभाला मैं जब भी गिरा हूँ, निगाह-ए-करम हो तुम्हारी ही निस्बत है सरमाया मेरा मैं सिर्फ़ आप का हूँ, निगाह-ए-करम हो मुझे अपने क़दमों में बुलवा लो, आक़ा ! करम, शाह-ए-वाला ! निगाह-ए-करम हो 'अता कीजिए हाज़री का क़रीना मदीने चला हूँ, निगाह-ए-करम हो मुझे ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से बेदार कर दो मैं सोया पड़ा हूँ, निगाह-ए-करम हो ना'त-ख़्वाँ: मरग़ूब अहमद हमदानी हाजी मुश्ताक़ अत्तारी ...

अर्श-ए-हक़ है मसनद-ए-रिफ़अत रसूलुल्लाह की / Arsh-e-Haq Hai Masnad-e-Rifat Rasoolullah Ki

'अर्श-ए-हक़ है मसनद-ए-रिफ़'अत रसूलुल्लाह की देखनी है हश्र में 'इज़्ज़त रसूलुल्लाह की क़ब्र में लहराएँगे ता-हश्र चश्मे नूर के जल्वा फ़रमा होगी जब तल'अत रसूलुल्लाह की काफ़िरों पर तेग़-ए-वाला से गिरी बर्क़-ए-ग़ज़ब अब्र आसा छा गई हैबत रसूलुल्लाह की ला-व-रब्बिल-'अर्श जिस को जो मिला उन से मिला बटती है कौनैन में ने'मत रसूलुल्लाह की वो जहन्नम में गया जो उन से मुस्तग़नी हुआ है ख़लीलुल्लाह को हाजत रसूलुल्लाह की सूरज उल्टे पाँव पलटे, चाँद इशारे से हो चाक अंधे नज्दी ! देख ले क़ुदरत रसूलुल्लाह की तुझ से और जन्नत से क्या मतलब, वहाबी ! दूर हो हम रसूलुल्लाह के, जन्नत रसूलुल्लाह की ज़िक्र रोके, फ़ज़्ल काटे, नुक़्स का जूयाँ रहे फिर कहे मर्दक कि हूँ उम्मत रसूलुल्लाह की नज्दी ! उस ने तुझ को मोहलत दी कि इस 'आलम में है काफ़िर-ओ-मुर्तद पे भी रहमत रसूलुल्लाह की हम भिकारी, वो करीम, उन का ख़ुदा उन से फ़ुज़ूँ और ना कहना नहीं 'आदत रसूलुल्लाह की अहल-ए-सुन्नत का है बेड़ा पार, असहाब-ए-हुज़ूर नज्म हैं और नाओ है 'इत्रत रसूलुल्लाह की ख़ाक हो कर 'इश्क़ में आराम से सोना मिला जान की इ...

हर शान तेरी शान पे क़ुर्बान है मौला / Har Shaan Teri Shaan Pe Qurban Hai Maula

हर शान तेरी शान पे क़ुर्बान है, मौला ! क्या ख़ूब बुज़ुर्गी की तेरी शान है, मौला ! ताबिंदा है क़िंदील-ए-फ़लक से ये ज़माना और उस में तेरे नूर का फ़ैज़ान है, मौला ! हर सम्त तेरे हुस्न के जल्वे की धमक है क्या दश्त-ओ-चमन, कोह-ओ-बयाबान है, मौला ! ख़ैरात मिले मुझ को तेरी शान के लाइक़ मैं साइल-ए-ख़स्ता हूँ, तू सुल्तान है, मौला ! हम चाह के भी फ़ज़्ल तेरा गिन नहीं सकते बे-लौस तेरा ख़ल्क़ पे एहसान है, मौला ! वल्लाह मेरी चाह नहीं शोहरत-ए-तलबी बस तेरी रज़ा ज़ीस्त का 'उनवान है, मौला ! अब बाद-ए-मदीना से गुल-ए-दिल को खिला दे मुरझाया मेरे क़ल्ब का गुलदान है, मौला ! बस अपने करम से तू मुझे बख़्श दे, या रब ! मैं बंदा-ए-'आसी हूँ, तू रहमान है, मौला ! सरकार के जल्वों से अब अय्यूब के दिल को आबाद तू फ़रमा कि ये वीरान है, मौला ! शायर: मुहम्मद अय्यूब रज़ा अमजदी ना'त-ख़्वाँ: साबिर रज़ा अज़हरी सुरत har shaan teri shaan pe qurbaan hai, maula ! kya KHoob buzurgi ki teri shaan hai, maula ! taabinda hai qindeel-e-falak se ye zamaana aur us me.n tere noor ka faizaan hai, maula ! har samt ...

दिल को उन से ख़ुदा जुदा न करे / Dil Ko Un Se Khuda Juda Na Kare

दिल को उन से ख़ुदा जुदा न करे बेकसी लूट ले ख़ुदा न करे इस में रौज़े का सज्दा हो कि तवाफ़ होश में जो न हो वो क्या न करे ये वही हैं कि बख़्श देते हैं कौन इन जुर्मों पर सज़ा न करे सब तबीबों ने दे दिया है जवाब आह 'ईसा अगर दवा न करे दिल कहाँ ले चला हरम से मुझे अरे तेरा बुरा ख़ुदा न करे 'उज़्र उम्मीद-ए-'अफ़्व गर न सुनें रू-सियाह और क्या बहाना करे   दिल में रौशन है शम'-ए-'इश्क़-ए-हुज़ूर काश ! जोश-ए-हवस हवा न करे हश्र में हम भी सैर देखेंगे मुन्किर आज उन से इल्तिजा न करे ज़ो'फ़ माना मगर ये ज़ालिम दिल उन के रस्ते में तो थका न करे जब तेरी ख़ू है सब का जी रखना वही अच्छा जो दिल बुरा न करे दिल से इक ज़ौक़-ए-मय का तालिब हूँ कौन कहता है इत्तिक़ा न करे ले, रज़ा ! सब चले मदीने को मैं न जाऊँ अरे ख़ुदा न करे शायर: इमाम अहमद रज़ा ख़ान ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी dil ko un se KHuda juda na kare bekasi looT le KHuda na kare is me.n rauze ka sajda ho ki tawaaf hosh me.n jo na ho wo kya na kare ye wahi hai.n ki baKHsh dete hai.n kaun in jurmo.n par saza...

करम की इक नज़र हम पर ख़ुदारा या रसूलल्लाह / Karam Ki Ik Nazar Hum Par Khudara Ya Rasool Allah

करम की इक नज़र हम पर ख़ुदा-रा, या रसूलल्लाह ! तुम्ही हो बे-सहारों का सहारा, या रसूलल्लाह ! ग़रीबों के हैं दाता, बेकसों के आप वाली हैं मोहब्बत आप की दिल में है लेकिन हाथ ख़ाली हैं इधर भी अपनी रहमत का इशारा, या रसूलल्लाह ! पुकारा है मदद को, या नबी ! हम ग़म के मारों ने तुम्हारे दर पे जा कर भीक माँगी बादशाहों ने हमें भी आसरा है बस तुम्हारा, या रसूलल्लाह ! बने बिगड़ी हमारी, हम भी हैं क़िस्मत के मारों में तुम्हें उम्मत है प्यारी और तुम अल्लाह के प्यारों में बचा लो टूटने से दिल हमारा, या रसूलल्लाह !  ना'त-ख़्वाँ: मसूद राना अल्हाज ख़ुर्शीद अहमद ग़ुलाम साबिर यूसुफ़ी karam ki ik nazar ham par KHuda-ra, ya rasoolallah ! tumhi ho be-sahaaro.n ka sahaara, ya rasoolallah ! Gareebo.n ke hai.n daata, bekaso.n ke aap waali hai.n mohabbat aap ki dil me.n hai lekin haath KHaali hai.n idhar bhi apni rahmat ka ishaara, ya rasoolallah ! pukaara hai madad ko, ya nabi ! ham Gam ke maaro.n ne tumhaare dar pe ja kar bheek maangi baadshaaho.n ne hame.n bhi aasra hai bas tumhaara, y...

फ़िराक़-ए-मदीना में दिल ग़म-ज़दा है / Firaq-e-Madina Mein Dil Ghamzada Hai

फ़िराक़-ए-मदीना में दिल ग़म-ज़दा है जिगर टुकड़े टुकड़े हुआ जा रहा है छुड़ा कर मदीना, मेरा चैन छीना बता नफ़्स-ए-ज़ालिम तुझे क्या मिला है दिखाया है दिन ये मुक़द्दर ने मुझ को न शिकवा किसी से, न कोई गिला है मेरी आँख से छीना तयबा का मंज़र ये किस बात का तू ने बदला लिया है रहूँ बस इसी ग़म में बेचैन, सरवर ! मुक़द्दर ने जो दाग़-ए-फ़ुर्क़त दिया है मुक़द्दर से जिस जा रहूँ पर, शहा ! हो नज़र में मदीना, मेरी इल्तिजा है सुकूँ था मुझे कूचा-ए-मुस्तफ़ा में वतन में मेरा सब सुकूँ लुट गया है मेरे दिल के अरमाँ रहे दिल ही दिल में यही ग़म मेरे दिल को तड़पा रहा है न दुनिया की फ़िक्रें, न ग़म था वहाँ पर यहाँ आ के दिल आफ़तों में गिरा है पहाड़ों की दिलकश क़तारों के जल्वे वो मंज़र मुझे आज याद आ रहा है उन्हें चूमना हाथ लहरा के पैहम वो मंज़र मुझे आज याद आ रहा है 'अक़ीदत से ख़ाक-ए-मदीना उठा कर उसे चूमना आज याद आ रहा है कभी दीद-ए-सरवर की हसरत में मिम्बर को तकना वो छुप छुप के याद आ रहा है कभी देख कर सब्ज़ गुंबद का मंज़र झुकाना नज़र आज याद आ रहा है न छूटे मेरे हाथ से उन का दामन जियूँ जब तलक, या ख़ुदा ! ये दु'आ है म...

मेरी ज़िंदगी के रहबर बड़े पीर ग़ौस-ए-आज़म / Meri Zindagi Ke Rahbar Bade Peer Ghaus-e-Azam

मेरी ज़िंदगी के रहबर, बड़े पीर ग़ौस-ए-आ'ज़म ! नहीं तुम सा कोई बेहतर, बड़े पीर ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मेरे दिल की आरज़ू है, तेरे आस्ताँ पे आ कर रहूँ बन के तेरा नौकर, बड़े पीर ग़ौस-ए-आ'ज़म ! अब तो जगा दो क़िस्मत, अपनी दिखा दो सूरत ऐ औलिया के सरवर बड़े पीर ग़ौस-ए-आ'ज़म ! शेर-ए-बबर को फाड़ा कुत्ते ने एक पल में तेरा करम था उस पर, बड़े पीर ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मैं ने पुकारा जब भी, फ़ौरन मदद को आए फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा से, अख़्तर ! बड़े पीर ग़ौस-ए-आ'ज़म शायर: अख़्तर परवाज़ नईमी ना'त-ख़्वाँ: अख़्तर परवाज़ नईमी मुफ़्ती आरिफ़ रज़ा क़ुरैशी meri zindagi ke rahbar, ba.De peer Gaus-e-aa'zam ! nahi.n tum sa koi behtar, ba.De peer Gaus-e-aa'zam ! mere dil ki aarzoo hai, tere aastaa.n pe aa kar rahu.n ban ke tera naukar, ba.De peer Gaus-e-aa'zam ! ab to jaga do qismat, apni dikha do soorat ai auliya ke sarwar ba.De peer Gaus-e-aa'zam ! sher-e-babar ko phaa.Da kutte ne ek pal me.n tera karam tha us par, ba.De peer Gaus-e-aa'zam ! mai.n ne pukaara jab bhi, fauran madad k...

जो इश्क़-ए-नबी के जल्वों को सीनों में बसाया करते हैं / Jo Ishq-e-Nabi Ke Jalwon Ko Seenon Mein Basaya Karte Hain

जो 'इश्क़-ए-नबी के जल्वों को सीनों में बसाया करते हैं अल्लाह की रहमत के बादल उन लोगों पे साया करते हैं जब अपने ग़ुलामों की आक़ा तक़दीर जगाया करते हैं जन्नत की सनद देने के लिए रौज़े पे बुलाया करते हैं मख़्लूक़ की बिगड़ी बनती है, ख़ालिक़ को भी प्यार आ जाता है जब बहर-ए-दु'आ महबूब-ए-ख़ुदा हाथों को उठाया करते हैं ऐ दौलत-ए-'इरफ़ाँ के मँगतो ! उस दर पे चलो जिस दर पे सदा दिन-रात ख़ज़ाने रहमत के सरकार लुटाया करते हैं गिर्दाब-ए-बला में फँस के कोई तयबा की तरफ़ जब तकता है सुल्तान-ए-मदीना ख़ुद आ कर कश्ती को तिराया करते हैं वो नज़'अ की सख़्ती हो, ऐ दिल ! या क़ब्र की मुश्किल मंज़िल हो वो अपने ग़ुलामों की अक्सर इमदाद को आया करते हैं है शुग़्ल हमारा शाम-ओ-सहर और नाज़, सिकंदर ! क़िस्मत पर महफ़िल में रसूल-ए-अकरम की हम ना'त सुनाया करते हैं शायर: सिकंदर लखनवी ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी jo 'ishq-e-nabi ke jalwo.n ko seeno.n me.n basaaya karte hai.n allah ki rahmat ke baadal un logo.n pe saaya karte hai.n jab apne Gulaamo.n ki aaqa taqdeer jagaaya karte hai.n jannat...

ख़ुश्बूओं से दर-ओ-दीवार सँवर जाते हैं / Khushbuon Se Dar-o-Deewar Sanwar Jate Hain

ख़ुश्बूओं से दर-ओ-दीवार सँवर जाते हैं जिस गली से मेरे सरकार गुज़र जाते हैं महफ़िल-ए-आल-ए-नबी घर में सजाते रहिए ज़िक्र-ए-शब्बीर से हालात सँवर जाते हैं अपनी बख़्शिश की सनद मैं ने उन्हें माना है ज़िक्र-ए-सरकार में लम्हें जो गुज़र जाते हैं शहर-ए-सरकार की नूरानी फ़िज़ा ज़िंदाबाद रौशनी लेने जहाँ शम्स-ओ-क़मर आते हैं बिल-यक़ीं ना'त के अश'आर वही हैं सच्चे कान में पढ़ते ही जो दिल में उतर जाते हैं 'अज़मत-ए-शहर-ए-मदीना हो बयाँ कैसे जहाँ नूरी क़ुदसी भी समेटे हुए पर आते हैं ना'त-ख़्वाँ: मुमताज़ टांडवी KHushbuo.n se dar-o-deewaar sanwar jaate hai.n jis gali se mere sarkaar guzar jaate hai.n mehfil-e-aal-e-nabi ghar me.n sajaate rahiye zikr-e-shabbir se haalaat sanwar jaate hai.n apni baKHshish ki sanad mai.n ne unhe.n maana hai zikr-e-sarkaar me.n lamhe.n jo guzar jaate hai.n shehr-e-sarkaar ki nooraani fiza zindaabaad raushani lene jahaa.n shams-o-qamar aate hai.n bil-yaqee.n naa't ke ash'aar wahi hai.n sachche kaan me.n pa.Dhte hi jo dil me.n utar jaate...

महबूब के दर पर जाऊँ वो वक़्त-ए-मुबारक आए / Mahboob Ke Dar Par Jaun Wo Waqt-e-Mubarak Aaye

महबूब के दर पर जाऊँ, वो वक़्त-ए-मुबारक आए तक़दीर अपनी चमकाऊँ, वो वक़्त-ए-मुबारक आए जब पेश-ए-नज़र हों मेरे, मीनार-ओ-गुंबद तेरे मैं ग़श खा कर गिर जाऊँ, वो वक़्त-ए-मुबारक आए फिर ज़ेर-ए-गुंबद-ए-ख़ज़रा, रो रो के दस्त-बस्ता सब हाल मैं उन को सुनाऊँ, वो वक़्त-ए-मुबारक आए दिल को अपने समझा कर, दीदार की आस दिला कर रो रो के मैं सो जाऊँ, वो वक़्त-ए-मुबारक आए वो ख़्वाब में मेरे आएँ, ऐ काश ! करम फ़रमाएँ मैं क़दमों में गिर जाऊँ, वो वक़्त-ए-मुबारक आए है दिल का, 'उबैद ! ये अरमाँ, फिर बन कर उन का मेहमाँ दरबार में ना'त सुनाऊँ, वो वक़्त-ए-मुबारक आए शायर: ओवैस रज़ा क़ादरी ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी mahboob ke dar par jaau.n wo waqt-e-mubaarak aae taqdeer apni chamkaau.n wo waqt-e-mubaarak aae jab pesh-e-nazar ho.n mere meenaar-o-gumbad tere mai.n Gash kha kar gir jaau.n wo waqt-e-mubaarak aae phir zer-e-gumbad-e-KHazra ro ro ke dast-basta sab haal mai.n un ko sunaau.n wo waqt-e-mubaarak aae dil ko apne samjha kar deedaar ki aas dila kar ro ro ke mai.n so jaau.n w...

कू-ए-जानाँ में यार जा न सका / Koo-e-Janan Mein Yaar Ja Na Saka

कू-ए-जानाँ में, यार ! जा न सका ज़ख़्म दिल के उन्हें दिखा न सका साँस थी आख़री मेरी उस दम दास्तान-ए-अलम सुना न सका इक फ़क़त उस मदीने वाले के नाज़ मेरे कोई उठा न सका जुर्म इतने थे बा-ख़ुदा मेरे कोई उन के सिवा छुपा न सका जिस ने देखा वो गुंबद-ए-ख़ज़रा अपनी नज़रों को फिर हटा न सका दाग़-ए-'इस्याँ हैं इतने चेहरे पर रुख़ से पर्दा कभी हटा न सका तज़्किरा कब हुआ था कर्बल का आज तक मैं उसे भुला न सका उस को कहते हैं फ़ातमा ज़हरा जिस पे उँगली कोई उठा न सका जैसा असग़र ने तीर खाया है तीर ऐसा कोई भी खा न सका सुन के ख़ुत्बा वो हुर्र चले आए ख़ुल्द में तो यज़ीद आ न सका जाने क्या होगा तेरा महशर में नज्दिया गर उन्हें मना न सका ये करम है मेरे रज़ा खाँ का सुन्नियत को कोई हिला न सका ज़ात-ए-अख़्तर रज़ा के जैसी अभी ये ज़माना मिसाल ला न सका कोशिशें कीं बहुत ज़माने ने शम'-ए-ईमाँ मेरी बुझा न सका 'इश्क़ सीने में है मुक़ीम उन का दिल तो दुनिया से मैं लगा न सका ना'त-ख़्वाँ: ज़ाकिर इस्माईली koo-e-jaanaa.n me.n, yaar ! ja na saka zaKHm dil ke unhe.n dikha na saka saans thi aaKHri meri u...

मेहरबाँ मुझ पे नबियों का अगर सरदार हो जाए / Mehrban Mujh Pe Nabiyon Ka Agar Sardar Ho Jaye

मेहरबाँ मुझ पे नबियों का अगर सरदार हो जाए ये दा'वा है कि 'आसी ख़ुल्द का हक़दार हो जाए ज़माने का सताया हूँ, परेशाँ-हाल रहता हूँ करम की इक नज़र मुझ पर मेरे सरकार हो जाए फ़क़त मैं ही नहीं बल्कि सभी 'उश्शाक़ कहते हैं किसी दिन, या रसूलल्लाह ! तेरा दीदार हो जाए मैं पलकों से बुहारूँगा, मेरे आक़ा ! तेरी गलियाँ बुलावा एक दिन मेरा, मेरे सरकार ! हो जाए क़सम अल्लाह की, गलियाँ मदीने की सुहानी हैं वहाँ इक बार जाना हो तो बेड़ा पार हो जाए तमन्ना है दिल-ए- सज्जाद की मुद्दत से, ऐ मौला ! नज़ारा गुंबद-ए-ख़ज़रा मुझे इक बार हो जाए शायर: सज्जाद निज़ामी ना'त-ख़्वाँ: सज्जाद निज़ामी mehrbaa.n mujh pe nabiyo.n ka agar sardaar ho jaae ye daa'wa hai ki 'aasi KHuld ka haqdaar ho jaae zamaane ka sataaya hu.n, pareshaa.n-haal rehta hu.n karam ki ik nazar mujh par mere sarkaar ho jaae faqat mai.n hi nahi.n balki sabhi 'ushshaaq kehte hai.n kisi din, ya rasoolallah ! tera deedaar ho jaae mai.n palko.n se buhaaroonga, mere aaqa ! teri galiyaa.n bulaawa ek din mera, ...