अली वाले जहाँ बैठे वहीं जन्नत बना बैठे / Ali Wale Jahan Baithe Wahin Jannat Bana Baithe
फ़क़ीरों का है क्या चाहे जहाँ बस्ती बसा बैठे 'अली वाले जहाँ बैठे वहीं जन्नत बना बैठे फ़राज़-ए-दार हो, मक़्तल हो, ज़िंदाँ हो कि सहरा हो जहाँ ज़िक्र-ए-'अली छेड़ा वहाँ दीवाने आ बैठे कोई मौसम, कोई भी वक़्त, कोई भी 'इलाक़ा हो जली 'इश्क़-ए-'अली की शम'अ और परवाने आ बैठे 'अली वालों का मरना भी कोई मरने में मरना है चले अपने मकाँ से और 'अली के दर पे जा बैठे इधर रुख़्सत किया सब ने, उधर आए 'अली लेने यहाँ सब रो रहे थे हम वहाँ महफ़िल सजा बैठे अभी मैं क़ब्र में लेटा ही था इक नूर सा फैला मेरी बालीं पे ख़ुद आ कर 'अली-ए-मुर्तज़ा बैठे ये कौन आया कि इस्तिक़बाल को सब अंबिया उट्ठे न बैठेगा कोई तब तक, न जब तक मुस्तफ़ा बैठे शायर: रज़ा सिरसीवी ना'त-ख़्वाँ: ग़ुलाम मुस्तफ़ा क़ादरी सय्यिद हस्सानुल्लाह हुसैनी हाफ़िज़ अहसन क़ादरी faqeero.n ka hai kya chaahe jahaa.n basti basa baiThe 'ali waale jahaa.n baiThe wahi.n jannat bana baiThe faraaz-e-daar ho, maqtal ho, zindaa.n ho ki sahra ho jahaa.n zikr-e-'ali chhe.Da wahaa.n deewane aa baiThe koi mausam, k...