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उर्स आया है वलियों के सुल्तान का मरहबा मरहबा | बटता है सदक़ा ख़्वाजा के फ़ैज़ान का मरहबा मरहबा / Urs Aaya Hai Waliyon Ke Sultan Ka Marhaba Marhaba | Batta Hai Sadqa Khwaja Ke Faizan Ka Marhaba Marhaba

ग़रीब जान के हर इक ने मुझ को टाला है तुम अपने दर से न टालो मुझे, ग़रीब नवाज़ ! 'उर्स आया है वलियों के सुल्तान का, मरहबा मरहबा ! बटता है सदक़ा ख़्वाजा के फ़ैज़ान का, मरहबा मरहबा ! जगमगा उट्ठा फिर दीप ईमान का, मरहबा मरहबा ! क्या हसीं है समाँ उन के ऐवान का, मरहबा मरहबा ! खिल उठा चेहरा हर एक मुसलमान का, मरहबा मरहबा ! 'उर्स आया है वलियों के सुल्तान का, मरहबा मरहबा ! बटता है सदक़ा ख़्वाजा के फ़ैज़ान का, मरहबा मरहबा ! वो 'अता-ए-नबी फ़ज़्ल-ए-रहमान है, वाह क्या शान है इब्न-ए-ज़हरा है, हसनैन की जान है, वाह क्या शान है हिन्द की सर-ज़मीं का वो सुल्तान है, वाह क्या शान है मैं ही क्या उस पे हर एक क़ुर्बान है, वाह क्या शान है फूल है वो 'अली के गुलिस्तान का, मरहबा मरहबा ! 'उर्स आया है वलियों के सुल्तान का, मरहबा मरहबा ! बटता है सदक़ा ख़्वाजा के फ़ैज़ान का, मरहबा मरहबा ! ग़ुस्ल आब-ए-करम से कराया गया, मरहबा मरहबा ! नूरी जोड़े से तन जगमगाया गया, मरहबा मरहबा ! सर पे ताज-ए-विलायत सजाया गया, मरहबा मरहबा ! मेरे ख़्वाजा को दूल्हा बनाया गया, मरहबा मरहबा ! और सदक़ा मिला शाह-ए-जीलान का, मरहबा मर...

अर्श-ए-आज़म तक है शोहरा ख़्वाजा-ए-अजमेर का / Arsh-e-Azam Tak Hai Shohra Khwaja-e-Ajmer Ka

'अर्श-ए-आ'ज़म तक है शोहरा ख़्वाजा-ए-अजमेर का बजता है 'आलम में डंका ख़्वाजा-ए-अजमेर का सय्यिदा ज़हरा 'अली हसनैन के नूर-ए-नज़र पंजतन का है घराना ख़्वाजा-ए-अजमेर का ये क़ुतुब बाबा फ़रीदुद्दीन साबिर और निज़ाम बा-अदब पढ़ते हैं ख़ुत्बा ख़्वाजा-ए-अजमेर का रहमत-ओ-अनवार की बारिश है पैहम सुब्ह-ओ-शाम रौज़ा है 'अक्स-ए-मदीना ख़्वाजा-ए-अजमेर का हर मुसीबत, हर वबा अमराज़ से महफ़ूज़ है जो भी पढ़ता है वज़ीफ़ा ख़्वाजा-ए-अजमेर का हासिदों से हर घड़ी महफ़ूज़ हूँ रब की क़सम फ़ैज़ है मुझ पर पुराना ख़्वाजा-ए-अजमेर का है शरीफ़-ए-क़ादरी पर ख़्वाजा 'उस्माँ की नज़र कहती है दुनिया दिवाना ख़्वाजा-ए-अजमेर का शायर: मुहम्मद शरीफ़ रज़ा पाली ना'त-ख़्वाँ: मुहम्मद शरीफ़ रज़ा पाली सय्यिद अब्दुल क़ादिर अल-क़ादरी 'arsh-e-aa'zam tak hai shohra KHwaja-e-ajmer ka bajta hai 'aalam me.n Danka KHwaja-e-ajmer ka sayyida zahra 'ali hasnain ke noor-e-nazar panjtan ka hai gharaana KHwaja-e-ajmer ka ye qutub baaba fareeduddin saabir aur nizaam baa-adab pa.Dhte hai.n KHutba KHwaja-e-ajmer ka ra...

ख़्वाजा-ए-हिन्द वो दरबार है आला तेरा / Khwaja-e-Hind Wo Darbar Hai Aala Tera

ख़्वाजा-ए-हिन्द ! वो दरबार है आ'ला तेरा कभी महरूम नहीं माँगने वाला तेरा मय-ए-सर-जोश दर-आग़ोश है शीशा तेरा बेख़ुदी छाए न क्यूँ पी के पियाला तेरा ख़ुफ़्तगान-ए-शब-ए-ग़फ़्लत को जगा देता है साल-हा-साल वो रातों का न सोना तेरा है तेरी ज़ात 'अजब बहर-ए-हक़ीक़त, प्यारे ! किसी तैराक ने पाया न किनारा तेरा जौर-ए-पामाली-ए-'आलम से इसे क्या मतलब ख़ाक में मिल नहीं सकता कभी ज़र्रा तेरा किस-क़दर जोश-ए-तहय्युर के अयाँ हैं आसार नज़र आया मगर आईने को तल्वा तेरा गुलशन-ए-हिन्द है शादाब, कलेजे ठंडे वाह ऐ अब्र-ए-करम ! ज़ोर बरसना तेरा क्या महक है कि मु'अत्तर है दिमाग़-ए-'आलम तख़्ता-ए-गुलशन-ए-फ़िरदौस है रौज़ा तेरा तेरे ज़र्रे पे म'आसी की घटा छाई है इस तरफ़ भी कभी, ऐ मेहर ! हो जल्वा तेरा तुझ में हैं तर्बियत-ए-ख़िज़्र के पैदा आसार बहर-ओ-बर में हमें मिलता है सहारा तेरा फिर मुझे अपना दर-ए-पाक दिखा दे, प्यारे ! आँखें पुर-नूर हों फिर देख के जल्वा तेरा ज़िल्ल-ए-हक़ ग़ौस पे है, ग़ौस का साया तुझ पर साया-गुस्तर ! सर-ए-ख़ुद्दाम पे साया तेरा तुझ को बग़दाद से हासिल हुई वो शान-ए-रफ़ी' दंग रह जाते हैं सब ...

अल मदद ख़्वाजा-ए-दीं / Al Madad Khwaja-e-Deen (All Versions)

अल-मदद, ख़्वाजा-ए-दीं ! हिन्द के माह-ए-मुबीं ! इक दश्त को ख़्वाजा ने गुलज़ार बनाया है इक वादी-ए-ज़ुल्मत को ज़ौ-बार बनाया है अल्लाह ने ख़्वाजा को मुख़्तार बनाया है कुल हिन्द के वलियों का सरदार बनाया है अल-मदद, ख़्वाजा-ए-दीं ! हिन्द के माह-ए-मुबीं ! अब क़ल्ब-ओ-नज़र सब कुछ जागीर तुम्हारी है हर दिल की सतह पर अब तस्वीर तुम्हारी है हो कुफ़्र की गर्दन ख़म क्यूँ-कर न तेरे आगे किरदार-ए-मु'अज़्ज़म जब शमशीर तुम्हारी है अल-मदद, ख़्वाजा-ए-दीं ! हिन्द के माह-ए-मुबीं ! गुल बन के महक उठा, जो तुझ से जुड़ा, ख़्वाजा ! वो ग़र्क़ हुवा समझो, जो तुझ से फिरा, ख़्वाजा ! क्यूँ-कर न हों गिरवीदा हम तेरी बुज़ुर्गी पर नाज़ाँ है तेरे ऊपर जब पीर तेरा, ख़्वाजा ! अल-मदद, ख़्वाजा-ए-दीं ! हिन्द के माह-ए-मुबीं ! कश्मीर से तामिल तक उस का ही 'इलाक़ा है भारत का हर इक ज़र्रा उस का ही असासा है कुर्शी पे कोई बैठे, क्या इस से ग़रज़ हम को ता-हश्र मेरा ख़्वाजा इस हिन्द का राजा है अल-मदद, ख़्वाजा-ए-दीं ! हिन्द के माह-ए-मुबीं ! रहमत की फ़ज़ाओं में बा-ख़ैर चले जाओ दुनिया की महाफ़िल से रुख़ फेर चले जाओ मिलना है अगर तुम को भारत के शह...

मैं ख़्वाजा का दीवाना / Main Khwaja Ka Deewana

चराग़-ए-चिश्त शह-ए-औलिया ग़रीब नवाज़ ! मेरे हुज़ूर मेरे पेशवा ग़रीब नवाज़ ! मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना ऐ गर्दिश-ए-ज़माना ! मेरे सामने न आना मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना आल-ए-रसूल-ए-पाक हैं, मौला 'अली के प्यारे हसनैन के हैं दिलबर, दुखियों के हैं सहारे जिस को यक़ीं न आए, दिल से उन्हें पुकारे आता है उन को सब की बिगड़ी हुई बनाना मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना ऐ गर्दिश-ए-ज़माना ! मेरे सामने न आना मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना मशहूर है जहाँ में अजमेर जिन के दम से मिलती है सिलसिले की निस्बत शह-ए-उमम से तब्लीग़-ए-दीन यूँ की अल्लाह के करम से ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ने पाया ईमान का ख़ज़ाना मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना ऐ गर्दिश-ए-ज़माना ! मेरे सामने न आना मैं ख़्वाजा का दीवाना, मैं ख़्वाजा का दीवाना मैं ख़्वाजा का दीव...

रूपम् अनुपम् सुंदर मनोरम् मन मोहनम् है श्रीमंत ख़्वाजा / Roopam Anupam Sundar Manoram Man Mohanam Hai Shreemant Khwaja

हिन्दुस्तान अस्ल में वलियों का देश है शाहों का नहीं बल्कि फ़क़ीरों का देश है सब अपने अपने सूबे के हैं चीफ़ मिनिस्टर अजमेर में रहता है इन का प्राइम मिनिस्टर रूपम् अनुपम् सुंदर मनोरम् मन मोहनम् है श्रीमंत ख़्वाजा प्रकाशरूपी है कंचन काया अति सुंदरम् है श्रीमंत ख़्वाजा शाह-ए-उमम च 'अली हैदरम् फ़ातिमा एवं हसनैन कुल सत्यम् भवत: पवित्रम् कुटुंब पंजतन अति पावनम् है श्रीमंत ख़्वाजा दयालु दयानंद दयावान दानी कृपालु कृपालम् है कृपाल निधि बड़े दान दाता बड़े दुःख-निवारक सख़ी सुंदरम् है श्रीमंत ख़्वाजा जननी पवित्रम् है उम्मुलवरा बी पित्र ग़्यासुद्दीं संजर निवासी सतगुरु प्राप्तम् है उस्मान-ए-हारूँ प्रिय दर्शनम् है श्रीमंत ख़्वाजा ईश्वर के प्रियतम महा दिव्य ज्ञानी रसूलस्य वचनम् कृत प्रतिनिधि भारत की धरती पवित्रम् भवति अभिनंदनम् है श्रीमंत ख़्वाजा छटी शुभ दिवस है अति पावनम् गाओ रे चिश्तियो ! मंगल गीतम् अजमेर नगरी भवत् स्वर्गरूपी शुभ मंगलम् है श्रीमंत ख़्वाजा जीवन का 'आसिम को वरदान दे दो, अपनी लगन का इसे ज्ञान दे दो तुमरी दुवरिया पे आस लगाए नतमस्तकम् है, श्रीमंत ख़्वाजा ! ख़्वाजा-ए-हिन्दल-वली,...

अपने हालात को मैं बताऊँ किसे तेरे होते हुए ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगाँ / Apne Halat Ko Main Bataun Kise Tere Hote Hue Khwaja-e-Khwajgan

अपने हालात को मैं बताऊँ किसे तेरे होते हुए, ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगाँ ! दुख भरी दास्ताँ मैं सुनाऊँ किसे तेरे होते हुए, ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगाँ ! तेरे मय-ख़ाने से जाम पी कर के मैं मस्त ऐसा हुआ, लोग हैरान थे कैफ़ियत दिल की अपने दिखाऊँ किसे तेरे होते हुए, ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगाँ ! एहतिराम करो सारे 'उश्शाक़ का ये कहा है बुर्ज़ुर्गों ने लेकिन सुनो एक दिल है मैं उस दिल में लाऊँ किसे तेरे होते हुए, ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगाँ ! मेरे अशरफ़ पिया का करम ही तो है, जो ग़ुलामी मिली तेरे दर की मुझे दिल में तेरे सिवा मैं बसाऊँ किसे तेरे होते हुए, ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगाँ ! कितना है मस्त अशरफ़ तेरे 'इश्क़ में, सुनता है ही नहीं वो किसी की सदा बस वो कहता है इस दिल में लाऊँ किसे तेरे होते हुए, ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगाँ ! शायर: सय्यिद मुहम्मद अशरफ़ अशरफ़ी ना'त-ख़्वाँ: मुईनुद्दीन बुलबुल-ए-मुस्तजाब apne haalaat ko mai.n bataau.n kise tere hote hue, KHwaja-e-KHwajgaa.n dukh bhari daastaa.n mai.n sunaau.n kise tere hote hue, KHwaja-e-KHwajgaa.n tere mai-KHaane se jaam pi kar ke mai.n aisa mast huaa, log hairaan ...

मेरे मौला मेरे यावर मेरे मुश्किल-कुशा ख़्वाजा / Mere Maula Mere Yawar Mere Mushkil Kusha Khwaja

मेरे मौला मेरे यावर मेरे मुश्किल-कुशा ख़्वाजा ! ग़रीबों का दो 'आलम में तुम्ही हो आसरा, ख़्वाजा ! मेरी औक़ात ही क्या है लिखूँ तेरी सना, ख़्वाजा ! लिखूँ जो भी तेरा रुत्बा है उस से मा-वरा, ख़्वाजा ! रसूलुल्लाह ने तुम को हुकूमत हिन्द की बख़्शी रहोगे तुम क़यामत तक यहाँ फ़रमाँ-रवा, ख़्वाजा ! सदाक़त में, 'अदालत में, सख़ावत में, शुजा'अत में नबी के चार यारों का हैं रौशन आईना ख़्वाजा हुसैन इब्न-ए-'अली हैं दीं, बिना-ए-दीं, पनाह-ए-दीं खुले हम पर तेरे अश'आर से असरार, या ख़्वाजा ! सलातीन-ए-जहाँ दर पर भिकारी बन के आते हैं हुकूमत ले के फिरते हैं तेरे दर के गदा, ख़्वाजा ! तेरे दरबार-ए-आली में दु'आएँ रद नहीं होती इमाम अहमद रज़ा ने अपने फ़तवे में लिखा, ख़्वाजा ! इमाम अहमद रज़ा ने ये ब-ख़त्त-ए-नूर लिक्खा है निशान-ए-ख़ुल्द है तेरा मुबारक ज़ाविया, ख़्वाजा ! इमाम अहमद रज़ा ने सुन्नियों को ये बताया है दिलेरी दबदबा शौकत तेरे औसाफ़, या ख़्वाजा ! वहाबी लाख फ़तवे शिर्क के बक लें मगर सुन्नी मदद के वास्ते तुम को पुकारेंगे सदा, ख़्वाजा ! मुसलमानो ! न घबराओ हुकूमत के मज़ालिम से तुम्हारी ज़िंदगी है और ...

माँ-बाप ने जीने के हमें ढंग सिखाए / Maa Baap Ne Jeene Ke Hamein Dhang Sikhaye

माँ-बाप ने जीने के हमें ढंग सिखाए माँ-बाप के बा'इस ही तो इस दुनिया में आए जब बोल न सकते थे कोई लफ़्ज़ ज़ुबाँ से ये तब भी समझते थे सब एहसास हमारे क्यूँ इन को समझ लेते हैं हम लोग पराए माँ-बाप के बा'इस ही तो इस दुनिया में आए माँ-बाप ने जीने के हमें ढंग सिखाए माँ-बाप के बा'इस ही तो इस दुनिया में आए माँ-बाप ने दुनिया में हमें चलना सिखाया माँ-बाप ने हर हाल में इस्कूल पढ़ाया ज़ालिम है जो माँ-बाप के एहसान भुलाए माँ-बाप के बा'इस ही तो इस दुनिया में आए माँ-बाप ने जीने के हमें ढंग सिखाए माँ-बाप के बा'इस ही तो इस दुनिया में आए आक़ा ने बताई है बहुत इन की फ़ज़ीलत माँ-बाप की ख़िदमत से ख़ुदा देता है जन्नत अल्लाह का ग़ज़ब उस पे है जो इन को सताए माँ-बाप के बा'इस ही तो इस दुनिया में आए माँ-बाप ने जीने के हमें ढंग सिखाए माँ-बाप के बा'इस ही तो इस दुनिया में आए माँ-बाप की मौजूदगी अल्लाह की 'अता है और इन की रज़ा में ही तो ख़ालिक़ की रज़ा है शाहीन भला फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा क्यूँ न कमाए माँ-बाप के बा'इस ही तो इस दुनिया में आए माँ-बाप ने जीने के हमें ढंग सिखाए माँ-बाप के बा...