मीम-ए-मदीना मारहरा की क़िस्मत है / Meem-e-Madina Marehra Ki Qismat Hai
मीम-ए-मदीना मारहरा की क़िस्मत है इस गुंबद को उस गुंबद से निस्बत है गर्दिश-ए-दौराँ ! हट जा मेरे रस्ते से मेरे सर पर दस्त-ए-शाह-ए-बरकत है चिश्ती पैमाने में है बग़दाद की मय बरकत वाले साक़ी की ये बरकत है शाह-ए-बरकत मेरे नाना-दादा हैं उन से मुझ को दोहरी दोहरी निस्बत है इन के मुर्शिद इन के ऊपर नाज़ करें हाँ हाँ ये भी शान-ए-आ'ला-हज़रत है शहर-ए-बरेली ! तुझ पर फ़ज़्ल है नूरी का आज बना तू मर्कज़-ए-अहल-ए-सुन्नत है ख़ाली झोली ले कर मँगता आए हैं हज़रत-ए-क़ासिम की जानिब से दा'वत है दस्त-ए-करम दाता का लो अब उठता है माँगो माँगो दिल में जो भी हसरत है मुर्शिद दामन भर भर कर लौटाएँगे यही तो उन की प्यारी प्यारी 'आदत है देखो ये कैसा नूरानी चेहरा है मुर्शिद का दीदार भी एक 'इबादत है नज़्मी ! तुम भी पाँव पकड़ लो मुर्शिद के इन क़दमों के नीचे ही तो जन्नत है याँ से जो ख़ाली लौटा ख़ाली ही रहा हाँ हाँ ऐसा शख़्स बड़ा बद-क़िस्मत है शायर: सय्यिद हसनैन मियाँ बरकाती (नज़्मी मारहरवी) ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी meem-e-madina maarehra ki qismat hai is gumbad ko us gumbad se...