सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ / Sarkar Ka Naukar Hun Koi Aam Nahin Hun
इतना काफी है ज़िन्दगी के लिये
रखलें सरकार जो नौकरी के लिये
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
दुनियां के किसी शोअबे में नाकाम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
मेरी निजात का यहीं रस्ता दिखाई दे
अल्लाह मुझको मक्का मदीना दिखाई दे
रोज़ा-ए-मुस्तफ़ा है जहां पर ए मोमिनों
आशिक़ वहीं पे जीता-ओ-मरता दिखाई दे
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
दुनियां के हुक्मरानों से डरता नहीं कभी
दौलर से या रियाल से बिकता नहीं कभी
जिस ज़हन में समाया फ़क़त दस्ते-करबला
मोमिन वो सर कटाता है, झुकता नहीं कभी
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
आक़ा का फ़ैसला वहीं क़ुदरत का फ़ैसला
महशर में होगा उनकी शफ़ाअत का फ़ैसला
कैसे भला वो जाए जहन्नम की आग में
कर लें हुज़ूर जिसकी हिमायत का फ़ैसला
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
पाबंदी क्या लगेगी दुरूदो-सलाम पर
क्यूँ डालते हो पेहरा इबादत के काम पर
बातिल को कह दो आशिक़ों का इम्तिहान ले
हम जान देंगे अपनी मुहम्मद के नाम पर
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
मेहरी समाअतों में वो सच की अज़ान है
आक़ा जवामिउल-कलीम की ऊँची शान है
अल्लाह ने हुज़ूर को वो लहज़ा दे दिया
अहले-ज़बान जितने हैं सब बेज़बान हैं
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
इंजीनियर, वकील या ताज़िर हो डॉक्टर
सब कुछ तो हो मगर तुम्हें इतनी भी है ख़बर
हक़ मुस्तफ़ा का हम पे उजागर है उम्रभर
ज़िल्लत का जीना छोड़के इज़्ज़त की मौत मर
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
शायर:
निसार अली उजागर
नातख्वां:
हाफ़िज़ ताहिर क़ादरी
रखलें सरकार जो नौकरी के लिये
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
दुनियां के किसी शोअबे में नाकाम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
मेरी निजात का यहीं रस्ता दिखाई दे
अल्लाह मुझको मक्का मदीना दिखाई दे
रोज़ा-ए-मुस्तफ़ा है जहां पर ए मोमिनों
आशिक़ वहीं पे जीता-ओ-मरता दिखाई दे
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
दुनियां के हुक्मरानों से डरता नहीं कभी
दौलर से या रियाल से बिकता नहीं कभी
जिस ज़हन में समाया फ़क़त दस्ते-करबला
मोमिन वो सर कटाता है, झुकता नहीं कभी
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
आक़ा का फ़ैसला वहीं क़ुदरत का फ़ैसला
महशर में होगा उनकी शफ़ाअत का फ़ैसला
कैसे भला वो जाए जहन्नम की आग में
कर लें हुज़ूर जिसकी हिमायत का फ़ैसला
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
पाबंदी क्या लगेगी दुरूदो-सलाम पर
क्यूँ डालते हो पेहरा इबादत के काम पर
बातिल को कह दो आशिक़ों का इम्तिहान ले
हम जान देंगे अपनी मुहम्मद के नाम पर
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
मेहरी समाअतों में वो सच की अज़ान है
आक़ा जवामिउल-कलीम की ऊँची शान है
अल्लाह ने हुज़ूर को वो लहज़ा दे दिया
अहले-ज़बान जितने हैं सब बेज़बान हैं
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
इंजीनियर, वकील या ताज़िर हो डॉक्टर
सब कुछ तो हो मगर तुम्हें इतनी भी है ख़बर
हक़ मुस्तफ़ा का हम पे उजागर है उम्रभर
ज़िल्लत का जीना छोड़के इज़्ज़त की मौत मर
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
सरकार का नौकर हूँ, कोई आम नहीं हूँ
शायर:
निसार अली उजागर
नातख्वां:
हाफ़िज़ ताहिर क़ादरी
مشا اللہ بھائی سھاب بہت خوب
ReplyDeleteMasha allah
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