लौ मदीने की तजल्ली से लगाए हुए हैं / Lau Madine Ki Tajalli Se Lagae Hue Hain

लौ मदीने की तजल्ली से लगाए हुए हैं
दिल को हम मतलए अनवार बनाए हुए हैं

एक जलक आज दिखा गुम्बद-ए-ख़ज़रा के मकीं
कुछ भी हैं दूर से दीदार को आए हुए हैं

सर पे रख दीजिए ज़रा दस्त-ए-तसल्ली आक़ा
ग़म से मारे हैं, ज़माने के सताए हुए हैं

नाम किस मुँह से लें के तेरे कहलाएं
तेरी निस्बत के तक़ाज़ों को भुलाए हुए हैं

घट गया है तेरी तअलीम से रिस्ता अपना
ग़ैर के साथ रह-रस्म बढ़ाए हुए हैं

शर्म-ए-इस्यां से नहीं सामने जाया जाता
ये भी क्या कम है तेरे शहर में आए हुए हैं

तेरी निस्बत ही तो है जिस की बदौलत हम लोग
कुफ्र के दौर में ईमान बचाए हुए हैं

काश दीवाना बनालें वो हमें भी अपना
एक दुनिया को जो दीवाना बनाए हुए हैं

अल्लाह अल्लाह मदीने पे ये जल्वों की फ़वार
बारिश-ए-नूर में सब लोग नहाए हुए हैं

क्यों न पलड़ा तेरे आ'माल का भारी हो नसीर
अब तो मीज़ान पे सरकार भी आए हुए हैं

शायर:
पीर नसीरुद्दीन नसीर

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