आरज़ूएँ कैसी हैं ! काश ! यूँ हुवा होता / Aarzooen Kaisi Hain ! Kaash ! Yun Huwa Hota

आरज़ूएँ कैसी हैं ! काश ! यूँ हुवा होता
बू-जहल के हाथों में कंकरी बना होता
अपने आक़ा के आगे कलमा तो पढ़ा होता
ग़ैब-दाँ नबी का एक मो'जिज़ा बना होता

आरज़ूएँ कैसी हैं ! काश ! यूँ हुवा होता

काश ! मैं हलीमा की बकरी ही रहा होता
आक़ा मुझ को ले जाते, बन में चर रहा होता
दूध दोहते आक़ा अपने दस्त-ए-अक़्दस से
आज तक मुक़द्दर पर नाज़ कर रहा होता

आरज़ूएँ कैसी हैं ! काश ! यूँ हुवा होता

इक चट्टान की सूरत काश ! मैं रहा होता
आक़ा पाँव रख देते, मोम बन गया होता
नूरी अक्स क़दमों का दिल में भर लिया होता
उन के जां-निसारों के दिल में बस गया होता

आरज़ूएँ कैसी हैं ! काश ! यूँ हुवा होता

नज़्मी ! तुम तो भोले हो, ऐसा क्यूँ हुवा होता !
आल-ए-फ़ातिमा होना रब ने जब लिखा होता
अहल-ए-बैत में होना रब ने जब लिखा होता
आल-ए-मुस्तफ़ा होना रब ने जब लिखा होता

आरज़ूएँ कैसी हैं ! काश ! यूँ हुवा होता

शायर:

नज़्मी मियाँ

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