या मुहम्मद ! निगाह-ए-करम कीजिए / Ya Muhammad ! Nigaah-e-Karam Kijie

या मुहम्मद ! निगाह-ए-करम कीजिए
हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जाएंगे
आप ही का सहारा है या मुस्तफ़ा !
गर सहारा न दोगे तो मर जाएंगे

हक़ ने तख़्लीक़ फ़रमाए कौन-ओ-मकाँ
आप ही के लिए सरवर-ए-दो-जहाँ
आप का वास्ता दे के माँगेंगे जो
उन के दामन मुरादों से भर जाएंगे

या मुहम्मद ! निगाह-ए-करम कीजिए
हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जाएंगे
आप ही का सहारा है या मुस्तफ़ा !
गर सहारा न दोगे तो मर जाएंगे


पुल-सिरात उन के नज़दीक है सख़्त-तर
आप से जिन को निस्बत नहीं है, मगर
ये ग़ुलाम आप के या हबीब-ए-ख़ुदा !
आप का ज़िक्र करते गुज़र जाएंगे

या मुहम्मद ! निगाह-ए-करम कीजिए
हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जाएंगे
आप ही का सहारा है या मुस्तफ़ा !
गर सहारा न दोगे तो मर जाएंगे


आँख का'बा बनेगी मेरी देखना !
दिल मदीना बनेगा मेरा देखना !
आँख की राह से सरवर-ए-अम्बिया
जिस घड़ी मेरे दिल में उतर जाएंगे

या मुहम्मद ! निगाह-ए-करम कीजिए
हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जाएंगे
आप ही का सहारा है या मुस्तफ़ा !
गर सहारा न दोगे तो मर जाएंगे

हाथ फैलाए, दामन पसारे हुए
बोझ फ़ुर्क़त का सर से उतारे हुए
अपना बिगड़ा मुक़द्दर सँवारे हुए
इक न इक रोज़ हम उन के घर जाएंगे

या मुहम्मद ! निगाह-ए-करम कीजिए
हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जाएंगे
आप ही का सहारा है या मुस्तफ़ा !
गर सहारा न दोगे तो मर जाएंगे

आओ ! शब्बीर ! शहर-ए-मदीना चलें
दर्द-ओ-ग़म के फ़साने उन्हीं से कहें
और कहें इक निगाह-ए-करम या नबी !
वर्ना फ़ुर्क़त के मारे किधर जाएंगे

या मुहम्मद ! निगाह-ए-करम कीजिए
हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जाएंगे
आप ही का सहारा है या मुस्तफ़ा !
गर सहारा न दोगे तो मर जाएंगे


नातख्वां:
ज़ुहैब अशरफ़ी




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