ए आल-ए-नबी, ख़्वाजा ! औलाद-ए-अली, ख़्वाजा ! (बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !) / Ai Aal-e-Nabi. Khwaja ! Aulaad-e-Ali, Khwaja ! (Bigdi Ke Banaane Mein Kyun Der Lagi, Khwaja !)
ए आल-ए-नबी, ख़्वाजा ! औलाद-ए-अली, ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली, ख़्वाजा !
हाथों में तुम्हारे हो मन, शाह-ए-वली ! ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
दिन-रात बनाते हो खोटी को खरी, ख़्वाजा !
चौखट पे तेरी किस की झोली न भरी, ख़्वाजा !
बरगश्ता नसीबों की तक़दीर फिरी, ख़्वाजा !
आँखें मेरी अब तक है चौखट पे धरी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
ए आल-ए-नबी, ख़्वाजा ! औलाद-ए-अली, ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली, ख़्वाजा !
हाथों में तुम्हारे हो मन, शाह-ए-वली ! ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
भर लेते हैं उस दर पर झोली को सभी, ख़्वाजा !
महरूम नहीं जाता कोई भी कभी, ख़्वाजा !
ले लूँगा मैं मुँह-माँगा चौखट पे अभी, ख़्वाजा !
उट्ठेगा तो उट्ठेगा सर मेरा जभी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
ए आल-ए-नबी, ख़्वाजा ! औलाद-ए-अली, ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली, ख़्वाजा !
हाथों में तुम्हारे हो मन, शाह-ए-वली ! ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
क्या शान तुम्हारी है, 'अल्लाहु-ग़नी' ! ख़्वाजा !
दुनिया के धनी, ख़्वाजा ! उक़्बा के धनी, ख़्वाजा !
ज़र्रे को बनाते हो ला'ल-ए-यमनी, ख़्वाजा !
क्या बात है जो अब तक मेरी न बनी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
ए आल-ए-नबी, ख़्वाजा ! औलाद-ए-अली, ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली, ख़्वाजा !
हाथों में तुम्हारे हो मन, शाह-ए-वली ! ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
किस शान से महफ़िल की रौनक़ हो सजी, ख़्वाजा !
ना-शाद की जाती है दिन-रात ग़मी, ख़्वाजा !
देखो ज़रा सय्यिद की आँखों की नमी, ख़्वाजा !
किस चीज़ की आख़िर है इस दर पे कमी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
ए आल-ए-नबी, ख़्वाजा ! औलाद-ए-अली, ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली, ख़्वाजा !
हाथों में तुम्हारे हो मन, शाह-ए-वली ! ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
नात-ख़्वाँ:
डॉ. निसार अहमद मार्फ़ानी
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली, ख़्वाजा !
हाथों में तुम्हारे हो मन, शाह-ए-वली ! ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
दिन-रात बनाते हो खोटी को खरी, ख़्वाजा !
चौखट पे तेरी किस की झोली न भरी, ख़्वाजा !
बरगश्ता नसीबों की तक़दीर फिरी, ख़्वाजा !
आँखें मेरी अब तक है चौखट पे धरी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
ए आल-ए-नबी, ख़्वाजा ! औलाद-ए-अली, ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली, ख़्वाजा !
हाथों में तुम्हारे हो मन, शाह-ए-वली ! ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
भर लेते हैं उस दर पर झोली को सभी, ख़्वाजा !
महरूम नहीं जाता कोई भी कभी, ख़्वाजा !
ले लूँगा मैं मुँह-माँगा चौखट पे अभी, ख़्वाजा !
उट्ठेगा तो उट्ठेगा सर मेरा जभी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
ए आल-ए-नबी, ख़्वाजा ! औलाद-ए-अली, ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली, ख़्वाजा !
हाथों में तुम्हारे हो मन, शाह-ए-वली ! ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
क्या शान तुम्हारी है, 'अल्लाहु-ग़नी' ! ख़्वाजा !
दुनिया के धनी, ख़्वाजा ! उक़्बा के धनी, ख़्वाजा !
ज़र्रे को बनाते हो ला'ल-ए-यमनी, ख़्वाजा !
क्या बात है जो अब तक मेरी न बनी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
ए आल-ए-नबी, ख़्वाजा ! औलाद-ए-अली, ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली, ख़्वाजा !
हाथों में तुम्हारे हो मन, शाह-ए-वली ! ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
किस शान से महफ़िल की रौनक़ हो सजी, ख़्वाजा !
ना-शाद की जाती है दिन-रात ग़मी, ख़्वाजा !
देखो ज़रा सय्यिद की आँखों की नमी, ख़्वाजा !
किस चीज़ की आख़िर है इस दर पे कमी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
ए आल-ए-नबी, ख़्वाजा ! औलाद-ए-अली, ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली, ख़्वाजा !
हाथों में तुम्हारे हो मन, शाह-ए-वली ! ख़्वाजा !
हसनैन के गुलशन हो, ज़हरा की कली ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
बिगड़ी के बनाने में क्यूँ देर लगी, ख़्वाजा !
नात-ख़्वाँ:
डॉ. निसार अहमद मार्फ़ानी
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