दिल-ओ-निगाह की दुनिया नई नई हुई है / Dil-o-Nigaah Ki Duniya Nai Nai Hui Hai
दिल-ओ-निगाह की दुनिया नई नई हुई है
दुरूद पढ़ते ही ये कैसी रौशनी हुई है
मैं बस यूँ ही तो नहीं आ गया हूँ महफ़िल में
कहीं से इज़्न मिला है तो हाज़री हुई है
जहान-ए-कुन से उधर क्या था ? कौन जानता है ?
मगर वो नूर के जिस से ये ज़िंदगी हुई है
हज़ार शुक्र ! ग़ुलामान-ए-शाह-ए-बत़हा में
शुरुअ' दिन से मेरी हाज़री लगी हुई है
बहम थे दामन-ए-रहमत से जब तो चैन से थे
जुदा हुए हैं तो अब जान पर बनी हुई है
ये सर उठाए जो मैं जा रहा हूँ जानिब-ए-ख़ुल्द
मेरे लिए मेरे आक़ा ने बात की हुई है
मुझे यक़ीं है वो आएँगे वक़्त-ए-आख़िर भी
मैं कह सकूँगा ज़ियारत अभी अभी हुई है
शायर:
इफ़्तिख़ार हुसैन आरिफ़
दुरूद पढ़ते ही ये कैसी रौशनी हुई है
मैं बस यूँ ही तो नहीं आ गया हूँ महफ़िल में
कहीं से इज़्न मिला है तो हाज़री हुई है
जहान-ए-कुन से उधर क्या था ? कौन जानता है ?
मगर वो नूर के जिस से ये ज़िंदगी हुई है
हज़ार शुक्र ! ग़ुलामान-ए-शाह-ए-बत़हा में
शुरुअ' दिन से मेरी हाज़री लगी हुई है
बहम थे दामन-ए-रहमत से जब तो चैन से थे
जुदा हुए हैं तो अब जान पर बनी हुई है
ये सर उठाए जो मैं जा रहा हूँ जानिब-ए-ख़ुल्द
मेरे लिए मेरे आक़ा ने बात की हुई है
मुझे यक़ीं है वो आएँगे वक़्त-ए-आख़िर भी
मैं कह सकूँगा ज़ियारत अभी अभी हुई है
शायर:
इफ़्तिख़ार हुसैन आरिफ़
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