वाह ! क्या जूद-ओ-करम है शह-ए-बत़्ह़ा ! तेरा / Waah ! Kya Jood-o-Karam Hai Shah-e-Bat.haa ! Tera

वाह ! क्या जूद-ओ-करम है शह-ए-बत़्ह़ा ! तेरा
नहीं सुनता ही नहीं माँगने वाला तेरा

धारे चलते हैं अ़त़ा के वो है क़त़रा तेरा
तारे खिलते हैं सख़ा के वो है ज़र्रा तेरा

फ़ैज़ है या शह-ए-तसनीम ! निराला तेरा
आप प्यासों के तजस्सुस में है दरिया तेरा

अग़्निया पलते हैं दर से वो है बाड़ा तेरा
अस्फ़िया चलते हैं सर से वोह है रस्ता तेरा

फ़र्श वाले तेरी शौकत का उ़लू क्या जानें !
ख़ुस्रवा अ़र्श पे उड़ता है फरेरा तेरा

आस्मां ख़्वान, ज़मीं ख़्वान, ज़माना मेहमान
साह़िब-ए-ख़ाना लक़ब किस का है तेरा तेरा

मैं तो मालिक ही कहूंगा कि हो मालिक के ह़बीब
या’नी मह़बूबो मुह़िब में नहीं मेरा तेरा

तेरे क़दमों में जो हैं ग़ैर का मुंह क्या देखें
कौन नज़रों पे चढ़े देख के तल्वा तेरा

बह़्‌र-ए-साइल का हूं साइल, न कुंएं का प्यासा
ख़ुद बुझा जाए कलेजा मेरा, छींटा तेरा

चोर ह़ाकिम से छुपा करते हैं यां इस के ख़िलाफ़
तेरे दामन में छुपे चोर अनोखा तेरा

आँखें ठन्डी हों, जिगर ताज़े हों, जानें सैराब
सच्चे सूरज वो दिल-आरा है उजाला तेरा

दिल अ़बस ख़ौफ़ से पत्ता सा उड़ा जाता है
पल्ला हलका सही भारी है भरोसा तेरा

एक मैं क्या ! मेरे इ़स्यां की ह़क़ीक़त कितनी !
मुझ से सो लाख को काफ़ी है इशारा तेरा

मुफ़्त पाला था कभी काम की अ़ादत न पड़ी
अब अ़मल पूछते हैं हाए निकम्मा तेरा

तेरे टुकड़ों से पले ग़ैर की ठोकर पे न डाल
झिड़कियां खाएं कहां छोड़ के सदक़ा तेरा

ख़्वार-ओ-बीमार-ओ-ख़त़ावार-ओ-गुनहगार हूं मैं
राफ़ेअ़-ओ-नाफे़अ़-ओ-शाफे़अ़ लक़ब आक़ा ! तेरा

मेरी तक़्दीर बुरी हो तो भली कर दे, कि है
मह़्‌व-ओ-इस्बात के दफ़्तर पे कड़ोड़ा तेरा

तू जो चाहे तो अभी मैल मेरे दिल के धुलें
कि ख़ुदा दिल नहीं करता कभी मैला तेरा

किस का मुंह तकिए, कहां जाइए, किस से कहिए
तेरे ही क़दमों पे मिट जाए येह पाला तेरा

तूने इस्लाम दिया, तूने जमाअ़त में लिया
तू करीम अब कोई फिरता है अ़त़िय्या तेरा

मौत सुनता हूं सितम तल्ख़ है ज़हराबए नाब
कौन ला दे मुझे तल्वों का ग़साला तेरा

दूर क्या जानिए बदकार पे कैसी गुज़रे
तेरे ही दर पे मरे बे-कस-ओ-तन्हा तेरा

तेरे सदक़े मुझे इक बूंद बहुत है तेरी
जिस दिन अच्छों को मिले जाम छलक्ता तेरा

ह़-रम-ओ-त़यबा-ओ-बग़दाद जिधर कीजे निगाह
जोत पड़ती है तेरी, नूर है छनता तेरा

तेरी सरकार में लाता है रज़ा उस को शफ़ीअ़
जो मेरा ग़ौस है और लाडला बेटा तेरा


शायर:
इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी
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