फ़लक पर चाँद है निकला रबी-उल-अव्वल मुबारक हो / Falak Par Chand Hai Nikla Rabi-ul-Awwal Mubarak Ho
बारह रबी'-उल-अव्वल के दिन आई है ताज़ा बहार
पढ़ते हैं सल्लल्लाहु व सल्लम आज दर-ओ-दीवार
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
अँधेरों के जिगर को चीर कर सुबह नई आई
जहाँ रौशन हुआ सारा, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
आक़ा की आमद ! मरहबा !
दिलबर की आमद ! मरहबा !
सोहणे की आमद ! मरहबा !
मक्की की आमद ! मरहबा ! मरहबा !
न था है न कोई आएगा महबूब-ए-ख़ुदा जैसा
नबी ला-रैब है मेरा, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
हर इक बे-आसरे को मिल गया है आसरा उन का
सहारा ग़म के मारों का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
आक़ा की आमद ! मरहबा !
दिलबर की आमद ! मरहबा !
सोहणे की आमद ! मरहबा !
मक्की की आमद ! मरहबा ! मरहबा !
ख़ुदा-ए-पाक के सारे रसूलों और नबियों से
जुदा है मर्तबा उन का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
हसीं मंज़र है मिलादुन्नबी का हर तरफ़, हस्सान !
हर इक लब पर है ये चर्चा, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
आक़ा की आमद ! मरहबा !
दिलबर की आमद ! मरहबा !
सोहणे की आमद ! मरहबा !
मक्की की आमद ! मरहबा ! मरहबा !
सजी हैं मस्जिदें, ग़ाज़ी ! सजे बाज़ार और गलियाँ
सजा है घर हर 'आशिक़ का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
शायर:
मुहम्मद नदीम ग़ाज़ी
ना'त-ख़्वाँ:
सय्यिद हस्सानुल्लाह हुसैनी
पढ़ते हैं सल्लल्लाहु व सल्लम आज दर-ओ-दीवार
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
अँधेरों के जिगर को चीर कर सुबह नई आई
जहाँ रौशन हुआ सारा, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
आक़ा की आमद ! मरहबा !
दिलबर की आमद ! मरहबा !
सोहणे की आमद ! मरहबा !
मक्की की आमद ! मरहबा ! मरहबा !
न था है न कोई आएगा महबूब-ए-ख़ुदा जैसा
नबी ला-रैब है मेरा, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
हर इक बे-आसरे को मिल गया है आसरा उन का
सहारा ग़म के मारों का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
आक़ा की आमद ! मरहबा !
दिलबर की आमद ! मरहबा !
सोहणे की आमद ! मरहबा !
मक्की की आमद ! मरहबा ! मरहबा !
ख़ुदा-ए-पाक के सारे रसूलों और नबियों से
जुदा है मर्तबा उन का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
हसीं मंज़र है मिलादुन्नबी का हर तरफ़, हस्सान !
हर इक लब पर है ये चर्चा, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
आक़ा की आमद ! मरहबा !
दिलबर की आमद ! मरहबा !
सोहणे की आमद ! मरहबा !
मक्की की आमद ! मरहबा ! मरहबा !
सजी हैं मस्जिदें, ग़ाज़ी ! सजे बाज़ार और गलियाँ
सजा है घर हर 'आशिक़ का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
फ़लक पर चाँद है निकला, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
है आया नूर अल्लाह का, रबी'-उल-अव्वल मुबारक हो
शायर:
मुहम्मद नदीम ग़ाज़ी
ना'त-ख़्वाँ:
सय्यिद हस्सानुल्लाह हुसैनी
baarah rabi'-ul-awwal ke din aai hai taaza bahaar
pa.Dhte hai.n sallallahu wa sallam aaj dar-o-deewaarfalak par chaand nikla hai, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
hai aaya noor allah ka, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
andhero.n ke jigar ko cheer kar sub.h nai aai
jahaa.n raushan huaa saara, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
falak par chaand nikla hai, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
hai aaya noor allah ka, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
aaqa ki aamad ! marhaba !
dilbar ki aamad ! marhaba !
sohne ki aamad ! marhaba !
makki ki aamad ! marhaba ! marhaba !
na tha hai na koi aaega mahboob-e-KHuda jaisa
nabi laa-raib hai mera, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
falak par chaand nikla hai, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
hai aaya noor allah ka, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
har ik be-aasre ko mil gaya hai aasra un ka
sahaara Gam ke maaro.n ka, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
falak par chaand nikla hai, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
hai aaya noor allah ka, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
aaqa ki aamad ! marhaba !
dilbar ki aamad ! marhaba !
sohne ki aamad ! marhaba !
makki ki aamad ! marhaba ! marhaba !
KHuda-e-paak ke saare rasoolo.n aur nabiyo.n se
juda hai martaba un ka, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
falak par chaand nikla hai, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
hai aaya noor allah ka, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
hasee.n manzar hai miladunnabi ka har taraf, Hassaan !
har ik lab par hai ye charcha, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
falak par chaand nikla hai, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
hai aaya noor allah ka, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
aaqa ki aamad ! marhaba !
dilbar ki aamad ! marhaba !
sohne ki aamad ! marhaba !
makki ki aamad ! marhaba ! marhaba !
saji hai.n masjide.n, Gaazi ! saje baazaar aur galiyaa.n
saja hai ghar har 'aashiq ka, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
falak par chaand nikla hai, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
hai aaya noor allah ka, rabi'-ul-awwal mubaarak ho
Poet:
Muhammad Nadeem Ghazi
Naat-Khwaan:
Syed Hassan Ullah Hussaini
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