दुरूदे-मिन्हाज (अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन) / Durood e Minhaj (Allahumm Salli Ala Sayyidina Va Maulana Muhammadin)

अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन
व अ़ला आलिहि व स़हबिहि व बारिक व सल्लिम

अल्लाह पढ़ता है दुरूद अपने हबीब पर
रेहमान जो करता है वो तुम भी किया करो

अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन
व अ़ला आलिहि व स़हबिहि व बारिक व सल्लिम

सरवर कहूं के मालिको-मौला कहूं तुझे
बाग़े-ख़लील का गुले ज़ैबा कहूं तुझे

अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन
व अ़ला आलिहि व स़हबिहि व बारिक व सल्लिम

रुख़े-मुस्तफ़ा वो किताब है, जो मुहब्बतों का निसाब है
यही पेशे-नज़र रहे मेरे, यही रात-दिन मैं पढ़ा करूं

अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन
व अ़ला आलिहि व स़हबिहि व बारिक व सल्लिम

है ये आरज़ू जो हो सुर्ख़रू, मिले दो जहान की आबरू
मैं कहूं ग़ुलाम हूं आप का, वो कहें के हम को क़बूल है

अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन
व अ़ला आलिहि व स़हबिहि व बारिक व सल्लिम

मैंने दरे-रसूल पे सर को झुका दिया
मेरा नसीब, मेरे नबी ने जगा दिया

अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन
व अ़ला आलिहि व स़हबिहि व बारिक व सल्लिम

ऐसा करीम, ऐसा सख़ी और कौन है
मंगता जो आया मांगने सुल्तां बना दिया

अल्लाहुम्म स़ल्लि अ़ला सय्यिदिना व मौलाना मुह़म्मदिन
व अ़ला आलिहि व स़हबिहि व बारिक व सल्लिम

नातख्वां:
ज़हीर बिलाली (मिन्हाज नात काउन्सिल)

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