बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता ने मुझे रोज़े पे जाने न दिया / Bakht-e-Khufta Ne Mujhe Roze Pe Jaane Na Diya

बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता ने मुझे रोज़े पे जाने न दिया
चश्म-ओ-दिल सीने कलेजे से लगाने न दिया

आह क़िस्मत ! मुझे दुनिया के ग़मों ने रोका
हाए तक़दीर ! के तयबा मुझे जाने न दिया

पाँव थक जाते अगर, पाँव बनाता सर को
सर के बल जाता मगर ज़ोअ'फ़ ने जाने न दिया

सर तो सर जान से जाने की मुझे हसरत है
मौत ने हाए ! मुझे जान से जाने न दिया

हाल-ए-दिल खोल के दिल आह ! अदा कर न सका
इतना मौक़ा ही मुझे मेरी क़ज़ा ने न दिया

मेरे आ'माल का बदला तो जहन्नम ही था
मैं तो जाता मुझे सरकार ने जाने न दिया

मेरे आ'माल-ए-सियाह ने किया जीना दूभर
ज़हर खाता, तेरे इर्शाद ने खाने न दिया

और चमकती सी ग़ज़ल कोई पढ़ो, ए नूरी !
रंग अपना अभी जमने शोअ'रा ने न दिया


शायर:
मौलाना मुस्तफ़ा रज़ा खान नूरी

नातख्वां:
असद रज़ा अत्तारी


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