हसरत कहे आँखों की और दिल कहे मस्ताना | तज़मीन - बे-ख़ुद किए देते हैं अंदाज़-ए-हिजाबाना / Hasrat Kahe Aankhon Ki Aur Dil Kahe Mastaana | Tazmeen of Be-Khud Kiye Dete Hain Andaaz-e-Hijabana
हसरत कहे आँखों की और दिल कहे मस्ताना
दीवाने की आहों को क्या ठीक है तड़पाना !
मुश्किल हुआ जाता है जज़्बात को समझाना
बे-ख़ुद किए देते हैं अंदाज़-ए-हिजाबाना
आ दिल में तुझे रख लूँ, ए जल्वा-ए-जानाना !
चौदह सौ बरस पहले छलका था जो पैमाना
बग़दाद में, कलियर में उस का है नशा-ख़ाना
कहते हैं सभी तेरा है काम करीमाना
इतना तो करम करना, ए नर्गिस-ए-मस्ताना !
जब जान लबों पर हो, तुम सामने आ जाना
बे-बस को यतीमों को सीने से लगाया है
दुनिया ने गिराया था, आक़ा ने उठाया है
कहता हुआ इक आशिक़ दरबार में आया है
दुनिया में मुझे तुम ने जब अपना बनाया है
महशर में भी कह देना ये है मेरा दीवाना
ए याद-ए-नबी ! तेरा ग़म हँस के पीए जाऊँ
वो दिन न कभी आए, बिन तेरे जिए जाऊँ
हर हाल में इक तेरा बस नाम लिए जाऊँ
क्या बात हो महशर में, मैं शिकवे किए जाऊँ
वो हँस के कहे जाएँ दीवाना है दीवाना
कुछ ऐसी सलासत से उल्फ़त से मिले आँखें
मग़्मूम मेरे दिल का क़ासिद यूँ बने आँखें
दरबार में आक़ा के हर हाल कहें आँखें
जी चाहता है दे दूँ तोहफ़े में उन्हें आँखें
दर्शन का तो दर्शन हो, नज़राने का नज़राना
बटते हैं ज़मीं पर जो सदक़े हैं इसी दर के
अफ़लाक पे रौशन वो ज़र्रे हैं इसी दर के
हासिल है मुझे जो कुछ रुत्बे हैं इसी दर के
बेदम ! तेरी क़िस्मत में सज्दे हैं इसी दर के
छूटा है न छूटेगा संग-ए-दर-ए-जानाना
जिस से थी ख़िरद 'आजिज़ वो 'इश्क़ ने कहलाई
ये मुफ़्ती-ए-आज़म ने है बात भी समझाई
की, नूर ! फ़हम वालों ने इस की पज़ीराई
संग-ए-दर-ए-जानाँ पर करता हूँ जबीं-साई
सज्दा न समझ, नजदी ! सर देता हूँ नज़राना
कलाम:
बेदम शाह वारसी
तज़मीन:
ग़ुलाम नूर-ए-मुजस्सम
नात-ख़्वाँ:
ग़ुलाम नूर-ए-मुजस्सम - शुऐब रज़ा वारसी
दीवाने की आहों को क्या ठीक है तड़पाना !
मुश्किल हुआ जाता है जज़्बात को समझाना
बे-ख़ुद किए देते हैं अंदाज़-ए-हिजाबाना
आ दिल में तुझे रख लूँ, ए जल्वा-ए-जानाना !
चौदह सौ बरस पहले छलका था जो पैमाना
बग़दाद में, कलियर में उस का है नशा-ख़ाना
कहते हैं सभी तेरा है काम करीमाना
इतना तो करम करना, ए नर्गिस-ए-मस्ताना !
जब जान लबों पर हो, तुम सामने आ जाना
बे-बस को यतीमों को सीने से लगाया है
दुनिया ने गिराया था, आक़ा ने उठाया है
कहता हुआ इक आशिक़ दरबार में आया है
दुनिया में मुझे तुम ने जब अपना बनाया है
महशर में भी कह देना ये है मेरा दीवाना
ए याद-ए-नबी ! तेरा ग़म हँस के पीए जाऊँ
वो दिन न कभी आए, बिन तेरे जिए जाऊँ
हर हाल में इक तेरा बस नाम लिए जाऊँ
क्या बात हो महशर में, मैं शिकवे किए जाऊँ
वो हँस के कहे जाएँ दीवाना है दीवाना
कुछ ऐसी सलासत से उल्फ़त से मिले आँखें
मग़्मूम मेरे दिल का क़ासिद यूँ बने आँखें
दरबार में आक़ा के हर हाल कहें आँखें
जी चाहता है दे दूँ तोहफ़े में उन्हें आँखें
दर्शन का तो दर्शन हो, नज़राने का नज़राना
बटते हैं ज़मीं पर जो सदक़े हैं इसी दर के
अफ़लाक पे रौशन वो ज़र्रे हैं इसी दर के
हासिल है मुझे जो कुछ रुत्बे हैं इसी दर के
बेदम ! तेरी क़िस्मत में सज्दे हैं इसी दर के
छूटा है न छूटेगा संग-ए-दर-ए-जानाना
जिस से थी ख़िरद 'आजिज़ वो 'इश्क़ ने कहलाई
ये मुफ़्ती-ए-आज़म ने है बात भी समझाई
की, नूर ! फ़हम वालों ने इस की पज़ीराई
संग-ए-दर-ए-जानाँ पर करता हूँ जबीं-साई
सज्दा न समझ, नजदी ! सर देता हूँ नज़राना
कलाम:
बेदम शाह वारसी
तज़मीन:
ग़ुलाम नूर-ए-मुजस्सम
नात-ख़्वाँ:
ग़ुलाम नूर-ए-मुजस्सम - शुऐब रज़ा वारसी
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Masha allah kya khoob tazmeen likha noor e mujassam sahab ne Masha allah
ReplyDeleteMashaallah dil khush ho gya mashaallah
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