ख़ास कलाम - एक साथ हम्द, नात और मन्क़बत / Special Medley of Hamd, Naat & Manqabat

या अल्लाह या रहमान
या अल्लाह या रहमान
या अल्लाह अल्लाह अल्लाह अल्लाह अल्लाह

तू ही मालिके बहरोबर है, या अल्लाहु या अल्लाह
तू ही ख़ालिक़े जिन्नो-बशर है, या अल्लाहु या अल्लाह

या अल्लाह या रहमान
या अल्लाह या रहमान
या अल्लाह अल्लाह अल्लाह अल्लाह अल्लाह

ताजदारे अम्बिया हमारे मुस्तफा
शाहकारे किब्रिया हमारे मुस्तफा

नबी नबी नबी नबी, नबी नबी नबी नबी
नबी नबी नबी नबी, नबी नबी नबी नबी

सब से औला व आ’ला हमारा नबी
सब से बाला व वाला हमारा नबी

अपने मौला का प्यारा हमारा नबी
दोनों अ़ालम का दूल्हा हमारा नबी

क्या ख़बर कितने तारे खिले छुप गए
पर न डूबे न डूबा हमारा नबी

बुझ गईं जिस के आगे सभी मश्अ़लें
शम्अ़ वोह ले कर आया हमारा नबी

ख़ल्क़ से औलिया औलिया से रुसुल
और रसूलों से आ’ला हमारा नबी

जैसे सब का ख़ुदा एक है वैसे ही
इन का उन का तुम्हारा हमारा नबी

मुल्के कौनैन में अम्बिया ताजदार
ताजदारों का आक़ा हमारा नबी

जिस की दो बूंद हैं कौसरो सल-सबील
है वोह रह़मत की दरिया हमारा नबी

कौन देता है देने को मुंह चाहिये
देने वाला है सच्चा हमारा नबी

ग़मज़दों को रज़ा मुज़्दा दीजे कि है
बे कसों का सहारा हमारा नबी

मुल्के कौनैन में अम्बिया ताजदार
ताजदारों का आक़ा हमारा नबी

ताजदारे अम्बिया हमारे मुस्तफा
शाहकारे किब्रिया हमारे मुस्तफा

हक़ चार, हक़ चार, हक़ चार, हक़ चार

नबी के पहरेदार, वफ़ा के अलमदार
जिन को है इन से प्यार वो मिल के बोले यार

हक़ चार यार, हक़ चार यार
हक़ चार यार, हक़ चार यार

हर सहाबी-ए-नबी जन्नती जन्नती
हर सहाबी-ए-नबी जन्नती जन्नती

सहाबा सहाबा हमारे सहाबा
नबी चाँद हैं और सितारे सहाबा

हक़ चार यार, हक़ चार यार
हक़ चार यार, हक़ चार यार

एक नाम चार यारों में शेरे ख़ुदा का है
एक नाम पंजतन में भी मुश्किल-कुशा का है

पंज नारा पंजतनी, बे-हिसाब नारा हैदरी

हैदर मौला अली अली, अली अली मौला
हैदर मौला अली अली, अली अली मौला

हुब्बे अली का मुन्किर, दुश्मन है ज़िंदगी का
ये भी है इक तरीका इन्सां की ख़ुदकुशी का
मैं दुश्मने अली से क्यूँ राहो-रब्त रखूं
वो किस बिरादरी का मैं किस बिरादरी का

हमारा तो बस एक नारा, हैदर, हैदर, हैदर, हैदर

हैदर मौला अली अली, अली अली मौला
हैदर मौला अली अली, अली अली मौला

पीराने-पीर, रोशन ज़मीर
ऐ शाहे-जीलां ! मैं हूँ क़ादरी फ़क़ीर

सर पे विलायत का है ताज आला
नूरे नबी का है काँधे पे दोशाला
पंजतनी रुख पे है जलाल मीरां

मसलके-रज़ा, हक़ की है सदा
हश्र तलक जारी रहे फैज़े रज़ा

रज़ा रज़ा रज़ा रज़ा, रज़ा रज़ा रज़ा रज़ा
रज़ा रज़ा रज़ा रज़ा, रज़ा रज़ा रज़ा रज़ा

नबी का जां निसार है, जलाल-ए-चार-यार है
कभी वो मिस्ले-प्यार है, कभी वो बर्क़-बार है
कलम में ऐसी धार है, अली की ज़ुल्फ़िक़ार है
ग़ज़ब में मूसवी असा, मेरा रज़ा मेरा रज़ा

रज़ा रज़ा रज़ा रज़ा, रज़ा रज़ा रज़ा रज़ा
रज़ा रज़ा रज़ा रज़ा, रज़ा रज़ा रज़ा रज़ा

नातख्वां:
हाफ़िज़ ताहिर क़ादरी और हाफ़िज़ अहसन क़ादरी

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